आपराधिक लापरवाही के शिकार बच्चे
तंत्र की नाकामी
गुजरात के राजकोट में गेमजोन और दिल्ली के बेबी केयर अग्निकांड के अपराध में न केवल संस्थाओं के मालिक बल्कि सरकार भी बराबर जिम्मेदार है। व्यवस्था में बैठे जिम्मेदार लोगों ने समय रहते अग्निशमन प्रबंधों का जायजा लिया होता तो ऐसे हादसों से बचा जा सकता था। संस्थान के मालिक अपने फायदे के लिए बिना एनओसी के ऐसे संस्थान चलाते हैं। यह सब प्रशासन में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों की कमजोरी है। इसके लिए कड़े नियम, सख्ती, नियमित जांच और शीघ्र सज़ा का प्रावधान अपेक्षित है।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
अधिकारी जिम्मेदार
हाल ही में राजकोट के गेमजोन में बच्चों के जलकर मौत के मुंह में समा जाना तथा दिल्ली के बेबी केयर होम में नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत की घटनाएं आपराधिक लापरवाही तथा तंत्र की कमजोरी को ही दर्शाती हैं। ऐसी दुःखदायी घटनाओं के बाद आमतौर पर अपराधी को दंडित करने, गहराई से जांच करने तथा मुआवजे आदि की घोषणाएं कर दी जाती हैं। लेकिन विभागों के उन अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कानूनी कार्रवाई की जरूरत है जिन अधिकारियों की जिम्मेदारी इस प्रकार की संस्थाओं की समय समय पर जांच करते रहने की बनती है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
कठोर सज़ा मिले
राजकोट के गेमजोन में बच्चों व दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में शिशुओं की अकाल मृत्यु से आपराधिक लापरवाही सरकारी सुरक्षा तंत्र पर सवालिया निशान लगाती है। सरकार की ओर से सांत्वना घोषणा की जाती है कि दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी व परिवार के सदस्यों को आर्थिक सहायता दी जाएगी। ये केवल घाव पर मरहम लगाना है। संतान बिछोह असहनीय टीस की क्षतिपूर्ति असंभव है। ये हादसे डबवाली अग्निकांड की याद ताजा करवाते हैं। दोषियों को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए। ऐसे हादसों के प्रति चौकसी रखते हुए कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त बनानी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
अनुशासित हो कार्य
राजकोट गेम जोन और दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में अग्निकांड से मासूम जिंदगियां स्वाह हो गई। यह लापरवाही की पराकाष्ठा है। बच्चों से जुड़े संस्थानों में संवेदनशील ढंग से सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जाती है। शिक्षा मंत्रालय ने कोचिंग संस्थानों के लिए नये दिशा-निर्देश जारी किए थे। लेकिन व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार व अधिकारियों की लापरवाही, लालफीताशाही के कारण अधिकतर नियम-कानून अपने परवान नहीं चढ़ पाते। कार्रवाई के नाम पर लीपापोती की जाती है। प्रशासन व व्यवस्था ढंग से अनुशासित होकर सक्रियता से काम करें तो बहुत कुछ संभव हो सकता है।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
अधिकारियों पर नकेल
राजकोट और दिल्ली अग्निकांड वास्तव में आपराधिक लापरवाही की घटनाएं हैं। ऐसी घटनाएं सरकारी सुरक्षा तंत्र की कार्यशैली पर सवाल उठाती हैं। हादसे के बाद आरोपियों की धरपकड़ और मृतकों को मुआवजा देकर सरकार-प्रशासन अपना पल्ला झाड़ लेता है। क्या इसके बाद ऐसी कोई घटना नहीं होगी? किसी के पास इसका जवाब नहीं। वास्तव में तो वे भ्रष्ट अधिकारी दोषी हैं जो बिना जांच-पड़ताल और मानकों के ऐसी संस्थाओं को एनओसी प्रदान करते हैं। ऐसे लोगों पर जब तक नकेल नहीं कसी जायेगी, तब तक ऐसी दुर्घटनाएं जारी रहेंगी।
सौरभ बूरा, जीजेयू, हिसार
पुरस्कृत पत्र
आपराधिक लापरवाही
निगरानी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और संवेदनशून्यता की आग ने इस बार गुजरात और दिल्ली में 19 बच्चों समेत 35 लोगों के जीवन को निगल लिया। हमेशा की तरह दुर्घटना के बाद प्रभावित इमारतों के मालिकों और कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया गया, दुर्घटना की जांच के आदेश जारी हो गए और देर-सवेर दुर्घटनाग्रस्त परिसरों के मालिकों को सजा का ऐलान भी कर दिया जाएगा। लेकिन निगरानी तंत्र के वो अधिकारी जिन्होंने सुरक्षा मानकों की अनुपालना करवाने की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, सजा से साफ़ बच जाएंगे। ऐसी आपराधिक लापरवाही करने वाले अधिकारियों को चिन्हित करके जब तक दंडित करने का सिलसिला शुरू नहीं होता, तब तक ऐसी दुर्घटनाओं में मासूम बच्चों और निर्दोष लोगों की बलि चढ़ती रहेगी।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल