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खूब खिले बचपन खेत खलिहानों में

08:49 AM Jul 03, 2024 IST
खूब खिले बचपन खेत खलिहानों में
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शिखर चंद जैन
सेहत ,सुख, सरस संबंध और सहजता अगर कहीं है तो प्रकृति और हरीतिमा के बीच प्रदूषणमुक्त वातावरण में है , जहां मन शांत और तन दुरुस्त रहता है। जाहिर है ऐसा वातावरण कल-कारखानों ,वाहनों और कंक्रीट के जंगलों के बीच शहर में तो नहीं मिल सकता। यह तो गांव में ही उपलब्ध हो सकता है।

ग्राम्य परिवेश की मस्ती, खेलकूद

कृत्रिमता से दूर हरे-भरे खेत खलिहानों, पेड़-पौधों और नदी-तालाबों से घिरी ग्रामीण धरा हमारे बुजुर्गों को तो सदा से लुभाती ही रही है, हमारे साहित्यकारों को भी इसने सदैव प्रभावित किया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा भी है, आह ग्राम्य जीवन भी क्या है/ क्यों न इसे सबका मन चाहे/ थोड़े में निर्वाह यहां है/ऐसी सुविधा और कहां है। इसी प्रकार रामेश्वर दयाल दुबे ने लिखा है- चलें गांव की ओर जहां पर हरे खेत लहराते/मेड़ों पर है कृषक घूमते, सुख से बिरहा गाते। चलें गांव की ओर जहां झोपड़ी झुके धरती में तरु के नीचे/ खेल रहे हैं बच्चे निज मस्ती में ।

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गांव के बच्चों की सेहत के प्रमाण

दुनिया भर के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों ने भी समय-समय पर किए गए अपने अध्ययन में पाया है कि ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग सुखी ,प्रसन्न और स्वस्थ रहते हैं। इतना ही नहीं गांव में जन्मे , पले और बढ़े बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास भी तेजी से होता है। उनकी लंबाई भी शहरी बच्चों की तुलना में ज्यादा होती है और वे उनके मुकाबले स्वस्थ भी होते हैं।

तेज शारीरिक विकास

हाल ही दुनिया भर के विभिन्न देशों में बच्चों, किशोरों और युवाओं की लंबाई, वजन और बॉडी मास इंडेक्स का गहन विश्लेषण लंदन के इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने किया। इसकी रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित की गई है। इसमें लिखा गया है कि ज्यादातर देशों में शहरी क्षेत्र के बच्चों की लंबाई, पोषण और वजन कम पाया गया जबकि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों का शारीरिक विकास उनकी तुलना में तेजी से हुआ।

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अध्ययन के निष्कर्ष

इस विश्वस्तरीय अध्ययन की मुखिया लंदन इंपीरियल कॉलेज के स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ की डॉ. अनु मिश्रा और सह लेखक वरिष्ठ मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. ए रामचंद्रन हैं। इसमें दुनिया भर के 1500 से ज्यादा शोधकर्ताओं और चिकित्सकों ने मिलकर आंकड़े जुटाएं। इसके लिए दुनिया भर के 200 देश के 71 मिलियन बच्चों और किशोर का शारीरिक माप, वजन, स्वास्थ्य आदि जांचा गया। अध्ययन में 5 वर्ष के से 19 वर्ष तक के शहरी और ग्रामीण बच्चों को शामिल किया गया ।

संतोषजनक पोषण

ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों में न्यूट्रीशन डेफिशिएंसी, शहरी क्षेत्र की तुलना में बेहद कम पाई गई। शोधकर्ताओं ने 2020 में पाया कि ज्यादातर देशों में बीएमआई औसत में इजाफा हुआ। अफ्रीका के सहारा क्षेत्र और दक्षिण एशिया के ग्रामीण क्षेत्रों में यह और भी ज्यादा था।

डायबिटीज का कम जोखिम

जहां तक स्वास्थ्य का मसला है ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों और युवाओं को शहरी जनसंख्या की तुलना में सेहतमंद पाया गया। 2021 में आईसीएमआर और इंडिया बी द्वारा मधुमेह और कार्डियोमेटाबॉलिक संबंधी विकारों पर किए गए अध्ययन में देखा गया कि ग्रामीण क्षेत्र से शहर में प्रवास करने वाले 15 फ़ीसदी लोगों में डायबिटीज का जोखिम था। जबकि शहरी क्षेत्र में रहने वाले 13 फ़ीसदी और शहर से ग्राम में प्रवास शुरू करने वालों में यह जोखिम 13 फीसदी था। वहीं शुरू से ग्राम्य जीवन का आनंद लेने वालों में डायबिटीज का जोखिम मात्र 8 फ़ीसदी पाया गया। ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में प्रवास करने वाले लोगों में तोंद निकलने और मोटापे के 51 फ़ीसदी मामले देखे गए। इसी प्रकार गांव से शहर बस जाने वाले लोगों में हाइपरटेंशन, शारीरिक शिथिलता, थकान, फल सब्जी खाने की आदत कम होने जैसी समस्याओं में करीब 2 गुना ज्यादा जोखिम देखा गया।

स्वच्छ वातावरण की दरकार

शहरी क्षेत्र के बच्चों को न तो स्वच्छ वातावरण मिलता है, न खेलने कूदने या फिजिकली एक्टिव रहने के लिए पर्याप्त स्पेस मिलता है। साथ ही वे संक्रामक रोगों से भी आसानी से पीड़ित हो जाते हैं। शहर के बच्चे दालों, फलों, सब्जियों और दही के बदले सस्ते जंक फूड खाने के ज्यादा अभ्यस्त हो जाते हैं। ऐसी आदतों, वातावरण और परिस्थितियों के कारण वह अक्सर बीमार रहते हैं और मोटापे के शिकार हो जाते हैं।

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