Chilblains Problem in Winter चिलब्लेन : बचाव के लिए रखें ख्याल
ठंड में, खास तौर पर गृहिणियों के हाथों-पैरों में सूजन, दर्द, लालिमा व खुजली जैसी समस्या हो जाती है। जिसे चिलब्लेन कहा जाता है। ऐसा ठंडे वातावरण के बाद एकदम हीटर या गर्म पानी के एक्सपोजर से होता है। चिलब्लेन की चपेट में न आयें इसके लिए जरूरी है कि कम टेंप्रेचर व एक्सपोजर से बचा जाये।
डॉ. मधुसूदन शर्मा
आजकल उत्तर भारत में सर्दियां अपने चरम पर हैं। बर्फ़ीली हवाओं और कड़ाके की ठंड के चलते कुछ लोगों के हाथों और पैरों की उंगलियों में सूजन आ जाती है और उसमें लालिमा, जलन और खुजली होने लगती है। कभी-कभी प्रभावित क्षेत्र में छाले और जख्म भी हो जाते हैं और पीड़ित व्यक्ति को इसमें बहुत दर्द होता है। इस समस्या को चिकित्सा की भाषा में चिलब्लेन कहा जाता है। किचन में काम करने वाली महिलाएं इससे अधिक ग्रस्त होती हैं। चिलब्लेन केवल शीत ऋतु की स्वास्थ्य समस्या है। सर्दियां समाप्त होते ही गर्मियों के दिनों में यह रोग स्वयं ही समाप्त हो जाता है। चिलब्लेन अकसर तब होता है जब हम कड़ाके की ठंड में से आकर एकदम गर्म तापमान वाली जगह में अचानक पहुंचते हैं । अकसर ठंडे पानी में या हवा में हाथ-पैर सुन्न होते हैं और हम एकदम गर्म पानी का उपयोग कर लें या फिर आग ताप लें। इसका असर रक्त वाहिका बंद होने के कारण होता है जो एक्सपोज़र के कई घंटों बाद पता चलता है। ठंड के कारण त्वचा में छोटी धमनियां और नसें सिकुड़ जाती हैं और तेजी से गर्म होने से रक्त वाहिकाओं का तेजी से या अत्यधिक फैलाव होता है, जिससे रक्त वाहिकाओं से आसपास के ऊतकों में तरल पदार्थ का रिसाव होता है। यही रिसाव चिलब्लेन के रूप में त्वचा पर दिखता है। ठंड के संपर्क में आने के 12-24 घंटों के भीतर कुछ अंगों में विशेषकर हाथ-पैरों की उंगलियों, होंठ, एड़ी और कान के पीछे दर्दभरी सोजिश, खुजली और लाल रंग के धब्बे उभर आते हैं।
बचने के उपाय
विंटर सीजन में चिलब्लेन की चपेट में आने से बचने के लिए कई तरह के एहतियात अपना सकते हैं। जानिये ठंड में अंगों की सूजन से सुरक्षा के कुछ उपाय : जहां तक हो सके तो ठंडे, नम वातावरण से बचना चाहिये। यदि बाहर जाना भी पड़े तो वापसी में आकर एकदम आग जलने या हीटर चलने से बढ़े तापमान में एंटर न करें तो बेहतर है। दरअसल चिलब्लेन शरीर के एकदम बदले तापमान के प्रति तुरंत प्रतिक्रिया का परिणाम होते हैं। हाथों में दस्ताने, गरम मोजे पहन कर रखें। रोज धूप में तेल मालिश करें जिससे रक्त का प्रवाह बनने से रक्त न जमे। नियमित व्यायाम करें। वहीं टाइट फिटिंग के मोजे व जूते पहनने से भी बचें। खासकर महिलाएं ध्यान रखें कि अधिक देर तक ठंडे पानी में काम करने के कारण भी उंगलियों में चिलब्लेन हो सकता है। इसलिए किचन में बर्तन आदि की सफाई व कपड़े धोते समय जहां तक संभव हो, गर्म पानी का प्रयोग करें।
अगर चिलब्लेन हो जायें तो..
यूं तो सावधानी व परहेज बेहतर है। लेकिन तमाम बचाव के उपाय अमल में लाने के बाद भी चिलब्लेन हो जायें तो प्रभावित क्षेत्र को नाखून से न खुजलाएं। सीधी गर्मी से बचे यानी आग के पास या फिर हीटर के पास बैठकर न सेकें। राहत पाने के लिए हल्का गर्म पानी लेकर उसमें चुटकी भर नमक मिला लें और अपने हाथों-पैरों की सूजी हुई उंगलियों को उसमें डाले। खास सवाधानी यह कि इस समस्या में धूम्रपान करने से बहुत नुकसान होता है, तो अगर आप बीड़ी-सिगरेट आदि पीते हैं, तो उसे बंद कर दे। आमतौर पर यह समस्या एक से तीन सप्ताह के अंदर स्वयं ही ठीक हो जाती है। बस आवश्यकता है थोड़ी सावधानी बरतने की। फिर भी यदि रोग के लक्षण ज्यादा परेशान कर रहे हों ,तो चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।