सस्ता हवाई सफर अब भी दूर का सपना
सुषमा रामचंद्रन
भारतीय हवाई यात्रा उद्योग कोविड-19 महामारी में बनी मंदी के बाद तेजी से पुनर्स्थापित हो रहा है, पिछले दो सालों में यात्रियों की संख्या में गुणात्मक बढ़ोतरी हुई है। इस पुनःप्राप्ति के दौरान दो बड़े प्रसंग भी घटे, एक है एयर इंडिया का निजीकरण और दूसरा, भारतीय विमानन कंपनियों द्वारा 970 नए हवाई जहाजों का भारी क्रय- आदेश। हालांकि अनेकानेक रुकावटों की वजह से इस क्षेत्र की राह इतनी आसान भी नहीं रही। ऐसा एक प्रसंग है हाल ही में विस्तारा विमानन कंपनी को दरपेश पायलट संकट, यह कंपनी टाटा और सिंगापुर एयरलाइन का संयुक्त उपक्रम है। इससे उड़ानों की संख्या पर फर्क पड़ा और इसके ग्राहक अन्य कंपनियों का रुख करने लगे। हवाई यात्रा की मुश्किलों में आगे इजाफा हुआ, जब इंडिगो जैसी विमानन कंपनी को मरम्मत संबंधी कारणों से अपनी उड़ान संख्या घटानी पड़ी, तिस पर नए जहाजों की आमद भी धीमी है। उक्त प्रसंग पिछले साल गो फर्स्ट जैसी कम हवाई भाड़े वाली कंपनी को पेश आई समस्या के समांतर घटित हुए। प्रैट एंड व्हिटनी के बने इंजनों में आ रही समस्या के चलते गो-फर्स्ट को पहले आधी उड़ानें रद्द करनी पड़ी और अंततः खुद को दिवालिया घोषित करने की अर्जी दाखिल करनी पड़ी।
घरेलू विमानन उद्योग में उथल-पुथल वैश्विक विमानन क्षेत्र में मची खलबली की झलक है। जिसमें बोइंग कंपनी के उच्चतम स्तर का प्रशासक मंडल सुरक्षा संबंधी कमियों का हल निकालने में बेतरह उलझा पड़ा है। जनवरी माह में कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को इस्तीफा देना पड़ गया, जिसके पीछे मुख्य वजह रही अलास्का एयरलाइंस के मैक्स 737 विमान के दरवाजे का नियंत्रण पैनल खराब होना। जहां एक ओर कारणों की जांच अभी जारी है वहीं पूर्व में बोइंग के मैक्स 737 जहाज गिरने और कुछ हालिया घटनाओं के चलते, विमानों की सुरक्षा को लेकर बनी चिंताओं के कारण कंपनी को लगातार समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। एयर इंडिया और अलास्का एयरलाइंस ने इस नामी विमान निर्माता कंपनी से कम-से-कम 400 नए हवाई जहाज खरीदने का करार किया है। बोइंग की मुश्किलों पर नजदीकी निगाहें लगी हैं क्योंकि सैकड़ों यात्रियों की जान को जोखिम वाले कारण की वजह से व्यावसायिक हवाई जहाजों में सुरक्षा को उच्चतम तरजीह देना सर्वोपरि होता है।
टाटा के मामले में स्थिति और भी जटिल है, वह एयर इंडिया को समाहित करके एक संयुक्त कंपनी बनाने के भारी-भरकम काम में पहले से उलझी पड़ी है। विस्तारा, जिसे वर्तमान में उथल-पुथल का सामना करना पड़ा रहा है, उसे भी एयर इंडिया में शामिल कर लिया गया है, लेकिन यह करने पर इसके ‘जटिल रुतबे’ पर असर पड़ा, क्योंकि इसके अधिकांश ग्राहक बिजनेस क्लास में चलने वाले अमीर यात्री हैं। देश में किफायती हवाई सफर की मांग में भारी उछाल के बावजूद विस्तारा ने एक संपूर्ण-सेवा प्रदान करने वाली एयरलाइंस बने रहकर अपना एक अलग उच्च मुकाम कायम रखा था। अब कार्यरत स्टाफ को अन्यत्र स्थानांतरित करना पड़ेगा, वह भी वैकल्पिक वेतनमान और प्रदर्शन मानकों सहित। हालांकि यह रणनीति अब तक कारगर नहीं रही। हाल-फिलहाल, विस्तारा उड़ानों की संख्या में हेर-फेर से अपनी उड़ान-सारिणी पर पूर्ववत अमल करने की कोशिशें कर रही हैं लेकिन उसको अपने अमीर ग्राहकों पर आधारित यदि उच्च दर्जे वाला रुतबा कायम रखना है तो दीर्घकाल में एक अधिक व्यावहारिक नीति की जरूरत पड़ेगी।
विमानन कंपनियों का विलय करने पर दरपेश तंत्रगत जटिलताएं तब भी देखने को मिली थीं जब वर्ष 2007 में दो सरकारी विमानन कंपनियों, एयर एंडिया और इंडियन एयरलाइंस, को मिलाकर कर एक संयुक्त इकाई बनाया गया था। वह निर्णय विशेष कारगर नहीं रहा। यह काम तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की अगुवाई में हुआ था, जिन पर बाद में बेमेल मुनाफा बनाने वाली कंपनियों को एक करने का इल्जाम लगा था। उन्होंने एक स्वस्थ और मुनाफादायक घरेलू विमानन कंपनी इंडियन यानी एयरलाइंस को बीमारू और घाटे में चलने वाली अंतर्राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया के साथ मिलाकर, एक संयुक्त इकाई बना दिया। इस एकीकृत इकाई को एक दक्ष एवं मुनाफा-प्रदत्त कंपनी बनाने में असंख्य मुश्किलें पेश आईं।
लेकिन एयर इंडिया-विस्तारा के विलय को इस पिछले प्रसंग की तरह लेना सही नहीं होगा और यह तुलना भी ठीक नहीं है। कंपनी पायलटों के फ्लाइट रोस्टर को लेकर बनी समस्याओं को सुलझाने में प्रयासरत है। उम्मीद करें कि इसका दीर्घकाल उद्देश्य होगा कि विस्तारा को एयर इंडिया के बैनर तले एक संपूर्ण सेवा प्रदाता बनाए रखा जाएगा, क्योंकि इससे ग्राहकों को चुनाव के लिए बृहद विकल्प मिल सकेंगे। जहां तक इंडिगो की बात है, यह विमानन कंपनी भारतीय नभ पर चहुंओर छायी हुई है। नागरिक उड्डयन क्षेत्र के विकास के लिए यह स्थिति सामान्य तौर पर और उपभोक्ता के लिए विशेष तौर पर चिंताजनक है। उड़ानों के मामले में अपनी सर्व-व्यापक उपस्थिति और पहुंच एवं यात्रियों की सबसे बड़ी संख्या पाकर, इसने सुनिश्चित किया कि किफायती एयरलाइन वाले मूल सिद्धांत से धीरे-धीरे परे हटा जाए। जहां इसकी फ्लाइटों में सीट चयन में अतिरिक्त शुल्क भरना पड़ता है वहीं केबिन में मिलने वाली खाने-पीने की वस्तुएं बहुत महंगी हैं। सीजन के मुताबिक किराए में तीखी वृद्धि, जैसा कि इस वक्त चल रहा है, और अतिरिक्त शुल्क चुकाने का मतलब है कि इसको अब इसको बजट एयरलाइंस कहना मुश्किल है।
अपाहिज यात्री के साथ एयरलाइंस स्टाफ द्वारा की गई बदसलूकी जैसी खबरों से यात्रियों के संत्रास में अतिरिक्त वृद्धि होती है– हालांकि ऐसे प्रसंग केवल इस सबसे बड़ी हवाई सेवा प्रदाता कंपनी तक सीमित नहीं हैं। विद्रूपता यह कि हवाई भाड़ा तय करने का सर्वाधिकार बाज़ार शक्तियों के हवाले करने के बावजूद यात्रियों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करवाने को नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को जब-तब दखल देना पड़ता है। ऐसा ही एक हालिया प्रसंग है जब हवाई पट्टी के किनारे बैठकर भोजन करते यात्रियों की तस्वीरें काफी वायरल हुईं। आवाजाही से सबसे महंगे साधन का उपयोग करने वालों के साथ किसी विमानन कंपनी द्वारा ऐसे बर्ताव किए जाने का संबंध वर्तमान में उड्डयन उद्योग पर इसकी लगभग-एकाधिकार वाली स्थिति से जुड़ा हुआ है।
नागरिक उड्डयन उद्योग की सेहत सुधारने के संबंध में उपभोक्ताओं की चिंताएं जुड़ी हैं। कोविड महामारी में लगभग ठप्प पड़ने वाली हालत के बरअक्स, वर्ष 2023 में 15.2 करोड़ लोगों ने हवाई यात्रा की। यह उससे पिछले साल से 23 प्रतिशत का इजाफा है और यह महामारी पूर्व 2019 में दर्ज 14.2 करोड़ यात्रियों की संख्या से अधिक है। हवाई जहाज में प्रयुक्त ईंधन की कीमतों में भारी बढ़ोतरी से मुनाफे पर असर के बावजूद उड्डयन क्षेत्र का स्वास्थ्य बेहतर हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, सरकार का यह आश्वासन कि वह हवाई यात्रा का खर्च सामान्य लोगों के लिए वहनयोग्य बनाना चाहती है, अभी हकीकत बनने से दूर है और महत्वाकांक्षी अंतर क्षेत्रीय हवाई-संपर्क योजना का विस्तार आरंभिक उम्मीद से कहीं धीमा चल रहा है। बहरहाल, एक कंपनी विशेष की लगभग-एकाधिकार वाली स्थिति मजबूत होने ने इतना जरूर पक्का करवा दिया कि इस कथित बजट एयरलाइंस से आवाजाही औसत भारतीय यात्री की पहुंच से बाहर हो गई। इसका शुद्ध परिणाम यह है कि चोटी की विमानन कंपनियां चांदी कूट रही हैं किंतु उपभोक्ता की किफायती हवाई यात्रा जरूरतों की तरफ कोई ध्यान नहीं।
लेखिका वित्तीय मामलों की वरिष्ठ पत्रकार हैं।