मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

दंड के बजाय न्याय यकीनी बनाने को बदलाव

07:55 AM Dec 23, 2023 IST

प्रमोद भार्गव

अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे औपनिवेशिक कानूनों से आखिरकार जनता को मुक्ति मिल गई। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुलामी के प्रतीक माने जाने वाले तीन प्रमुख कानूनों में आमूल-चूल बदलाव के विधेयक लोकसभा एवं राज्यसभा से पारित करा लिए। इनमें परिवर्तन की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी, क्योंकि फिरंगी हुकूमत के समय वजूद में आये ये कानून स्वतंत्रता सेनानियों को अधिकतम दंड देने की मानसिकता से बनाए गए थे। जबकि कोई भी विधि सम्मत प्रक्रिया दंड की अपेक्षा न्याय के सरोकारों से जुड़ी होनी चाहिए। शाह ने इन विधेयकों पर संसद में चर्चा करते कहा कि इन कानूनों के लागू होने के बाद दुनिया में सर्वाधिक आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की होगी, क्योंकि अब इनकी आत्मा में भारतीयता निहित कर दी है। उन्होंने अंग्रेजों के और अब के कानून में फर्क बताते हुए कहा कि अंग्रेजों के जमानों में बने कानून का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की रक्षा करना था। इसलिए इसमें दंड को मूल में रखा गया था, किंतु अब न्याय पर जोर होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले से दिए संबोधन में पांच प्रण किए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना था। कानून संबंधी पारित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। इन नए कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। ये नए कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। अब नए कानून में नाबालिग से दुष्कर्म और माॅब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा दी जाएगी। राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया जा रहा है। कुछ प्रचलित धाराओं की संख्या भी बदली गई है। जैसे धोखाधड़ी 420 धारा के अंतर्गत थी, इसे अब धारा 316 के रूप में जाना जाएगा। बलात्कार की धारा 376 को 63 में बदला जाएगा।
प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूल-चूल परिवर्तन किए गए हैं। साल 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। कुल 313 धाराएं बदली गई हैं। इनमें चार धाराएं सबसे ज्यादा असरकारी साबित होंगी। एक, राजद्रोह कानून से ‘राजद्रोह’ शब्द विलोपित कर दिया जाएगा। नए प्रारूप में धारा 150 के तहत आरोपी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। दो, माॅब लिंचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है। इसे पंथ निरपेक्ष रखा गया है। क्योंकि कभी-कभी चोर को भी भीड़ मार देती है। कई क्षेत्रों में महिलाओं को डायन बताकर समूह मार देता है। इन हत्याओं पर अब माॅब लिंचिंग कानून लागू होगा। तीन, नाबालिग से दुष्कर्म या पहचान छिपाकर किए गए दुष्कर्म के आरोप में 20 साल का कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। विरोध नहीं करने के अर्थ का आशय सहमति नहीं निकाला जाएगा। मौजूदा स्थिति में नाबालिग से दुष्कर्म पर न्यूनतम सजा में सात साल की व्यवस्था है। इसी तरह राज्यों को अब असली पहचान छिपाकर संबंध बनाने वाले अपराधियों के लिए ‘लव जिहाद’ जैसा पृथक कानून बनाने की जरूरत नहीं। प्रस्तावित कानून में गलत पहचान बताकर नौकरी, पदोन्नति और अन्य प्रलोभन दिलाने के झूठे वादे कर दुष्कर्म के अंजाम को सजा के दायरे में लाया गया है। चौथा, छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का क्रांतिकारी प्रावधान किया गया है।
सबसे बड़ा परिवर्तन 1860 में अस्तित्व में आए औपनिवेशिक कानून ‘राजद्रोह’ में किया गया है। इसके औचित्य पर लगातार संसद में व बाहर भी सवाल उठते रहे हैं। संप्रग सरकार के दौरान 2012 में राज्यसभा में प्रस्तुत निजी विधेयक में सांसद डी राजा ने कहा था कि ‘स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों के दमन और उन पर अत्याचार के लिए फिरंगी हुकूमत ने 1860 में देशद्रोह का कानून बनाया था। इसे और कठोर 1870 में धारा 124-ए को दण्ड प्रक्रिया संहिता में शामिल कर लिया गया था, लिहाजा इस कानून में अब बदलाव की जरूरत है।’ लेकिन इस निजी विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हालांकि सरकार ने तब संसद में यह भी स्पष्ट किया था कि समुचित दायरे में रहकर सरकार की आलोचना करने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन जब आपत्तिजनक तरीकों का सहारा लिया जाए, तब यह धारा प्रभावी हो सकती है।’ तब बहस में भाजपा समेत कई दलों के सांसदों ने सरकार के इस रुख का समर्थन किया था।
साल 1962 में शीर्ष न्यायालय के सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने ‘केदारनाथ बनाम बिहार राज्य’ प्रकरण में, राजद्रोह के संबंध में ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि ‘विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध अव्यवस्था फैलाने या फिर कानून या व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने या फिर हिंसा को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति या मंशा हो तो उसे राजद्रोह माना जाएगा।’
नए कानून में पहली बार आतंकवाद की इबारत को परिभाषित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को संकट में डालने के इरादे से कोई कृत्य करता है तो उसे नए कानून के हिसाब से सजा मिलेगी। अतएव देश के अस्तित्व को चुनौती देने वाले बाहरी या भीतरी असामाजिक तत्व कानूनी शिकंजे से बचने न पाएं, इसकी व्यवस्था के प्रावधान किए गए हैं। भारत के विरुद्ध सांप्रदायिक कट्टरता फैलाने और सरकार के लिए नफरत के हालात बनाने में भारत विरोधी विदेशी ताकतें सोशल मीडिया का मनचाहा एवं गलत दुरुपयोग करती हैं, इसलिए नए कानून में ऐसी ताकतों पर अंकुश के लिए कठोर कानूनी प्रावधान हैं।

Advertisement

Advertisement