दु:ख-दर्द बांटने और देने के आनंद का उत्सव
राजेंद्र कुमार शर्मा
प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर वैश्विक स्तर पर एक विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है। ईसाई समुदाय ने इसे क्रिसमस के रूप में स्वीकार किया है। हिंदुओं में जहां दिवाली, प्रकाश का पर्व है, वहीं ईसाइयों में क्रिसमस प्रकाश-पर्व है। परमपिता परमात्मा की वास्तविकता प्रकाश और आवाज़ ही है।
वास्तविक मुक्ति
संतों ने शब्द भक्ति द्वारा अपने अंदर विद्यमान ईश्वर अंश के दर्शन किए और प्रत्येक इंसान में भगवान के उसी अंश को देखा। हमारे अंदर जीवन-रूपी ज्योति उसी का अंश है और इस ज्योति को उसी परमपिता परमात्मा में मिल जाना ही वास्तविक मुक्ति है।
नाद, शब्द और लोगोज़ में संबंध
हिंदू धर्मग्रंथों में ‘नाद’ की हर जगह चर्चा है। बाइबल में इसे ‘लोगोज़’ कहकर संबोधित किया है। कहीं इसे ‘शब्द’ कहा गया है तो कोई इसे ‘धुर की वाणी’ कहकर संबोधित करता है। जब कुछ नहीं था तब भी ये ‘शब्द’ या ‘नाद’ या ‘लोगोज़’ था और जब कुछ नहीं रहेगा तब भी ये रहेगा अर्थात् ये शाश्वत है। लोगोज़ को मोटे तौर पर ईश्वर के शब्द या दैवीय कारण और रचनात्मक आदेश के सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया गया है।
‘लोगोज़’ ही यीशु
‘लोगोज़’ की अवधारणा का दार्शनिक और ईसाई विचारों पर महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव पड़ा है। इस ‘शब्द’ का एक लंबा इतिहास है। विश्व के साथ देवता के संबंध को समझना सभी धार्मिक दर्शन का लक्ष्य रहा है। जबकि दैवीय अभिव्यक्ति के बारे में अलग-अलग विचारों की कल्पना की गई है।
ईसाई धर्मग्रंथ, न्यू टेस्टामेंट के अनुसार ‘आरंभ में शब्द था, शब्द भगवान के साथ था और शब्द भगवान था। वह शुरुआत में भगवान के साथ था। सब वस्तुएं उसी द्वारा उत्पन्न हुईं, और जो कुछ उत्पन्न हुआ, वह उसके बिना उत्पन्न न हुआ। उसमें जीवन था, और जीवन मनुष्यों की ज्योति था।’ यहां यह स्पष्ट है कि ‘शब्द’ या ‘लोगोज़’ यीशु मसीह का संदर्भ है।
यीशु के गुणों की अभिव्यक्ति :
यूनानी दर्शनशास्त्र ने इस शब्द का उपयोग दैवीय कारण के संदर्भ में किया होगा, लेकिन जॉन ने इसका उपयोग यीशु के कई गुणों को व्यक्त करने के लिए किया था।
देने के शुद्ध आनंद को अभिव्यक्त
आरंभिक चर्च के लिए, क्रिसमस मूलतः हमारे बीच ईश्वर की उपस्थिति के एक नए अनुभव की सुबह थी। ईसाई धर्मशास्त्र शब्दों में, यीशु ईश्वर का संस्कार है। हम वास्तव में क्रिसमस तभी मनाते हैं जब हम उस खुशी का अनुभव करते हैं जो हमारे दर्द और पीड़ा को दूर कर देती है।
हममें से बहुत से लोग किसी न किसी तरह की शारीरिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक पीड़ा का अनुभव करते हैं, जो अक्सर हमें कड़वाहट देती है। क्रिसमस हमें उस आंतरिक दर्द को खुशी में बदलने की अनुमति और अवसर देता है। बुरे कर्मों के पश्चाताप की खुशी का मार्ग प्रशस्त करता है। दूसरों द्वारा कष्ट पहुंचाने की पीड़ा, क्षमा करने में सक्षम होने की खुशी देता है। जब अभावग्रस्त लोगों का दर्द और पीड़ा हम आंतरिक रूप से अनुभव करते हैं, वह देने के शुद्ध आनंद को जन्म देती है। यही यीशु के जन्म का वास्तविक जश्न होता है। हम देने वाले का सम्मान पाते हैं तब, हम वास्तव में कह सकते हैं कि ‘शब्द’ या ‘लोगोज़’ वास्तव में देहधारी हो गया है। अर्थात् यीशु देहधारी हो गया।