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भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृतियों का उत्सव

06:47 AM Dec 28, 2023 IST
भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृतियों का उत्सव
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पंकज चतुर्वेदी

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तमिलनाडु से काशी आने का मतलब है महादेव के एक घर से उनके दूसरे घर तक आना। यानी मदुरै मीनाक्षी के स्थान से काशी विशालाक्षी के स्थान तक आना। प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘मुझे यकीन है, काशी के लोगों की मेहमाननवाजी के बाद जब आप जाएंगे तो अपने साथ बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद, काशी का स्वाद, संस्कृति और यादें भी लेकर जायेंगे।’ काशी तमिल संगम के दूसरे संस्करण के शुभारम्भ पर यह बात उभरी कि यह पहल हमारे देश के विभिन्न अंचलों के साझा ज्ञान, साझा परम्पराओं को सशक्त करने का सूत्र है।
भारत में राज्यों का विभाजन पहले भाषा और उसके बाद स्थानीय संस्कृति के आधार पर हुआ, लेकिन दुखद है कि बहुत से राज्य, देश के ही अन्य हिस्सों को भलीभांति समझा नहीं पाए। हालांकि हमारे देश में ढेर सारी विविधता के बावजूद अतीत-सूत्र सभी को साथ बांधते हैं। बनारस में तमिलनाडु का 15 दिन का उत्सव उस समय को उत्खनित करता है, जिसकी जानकारी के अभाव में कभी तमिलनाडु में हिंदी या उत्तर भारतीय विरोधी स्वर देखा जाता था। जैस-जैसे बेंगलुरु-हैदराबाद में बहुराष्ट्रीय कंपनियां आईं और वहां देशभर के लोग नौकरी के लिए पहुंचने लगे, भाषा ही नहीं, संस्कृति, पर्व-त्योहार, मान्यताओं के कई अनछुए पहलू सामने आए।
इस बार काशी संगमम में भाग लेने के लिए छह समूह बनाए गए हैं। शिक्षकों के दल को यमुना नाम दिया गया है तो पेशेवर लोग के दल को गोदावरी। अध्यात्म से जुड़े लोग सरस्वती समूह में हैं और किसान और कारीगर के समूह का नाम नर्मदा है। सिन्धु नदी के दल में लेखक शामिल हैं और व्यापारी गण के लिए कावेरी दल बनाया गया है। इस तरह दक्षिण-उत्तर की नदियों को एकसाथ प्रस्तुत कर जल की तरह सांस्कृतिक प्रवाह की संकल्पना की गई है।
सदियों से बनारस शिक्षा, धर्म और व्यापार के लिए दुनियाभर के लोगों के आगमन का केंद्र रहा है। यहां आज भी तमिलनाडु से कोई 200 साल पहले आकर बसे कई सौ परिवार हैं जो अब काशी के कण-कण में रच पग गए हैं। सुब्रह्मण्यम भारती जैसे दिग्गज काशी में रहे, उन्होंने संस्कृत व हिंदी सीखी और स्थानीय संस्कृति को समृद्ध किया। तमिल में व्याख्यान दिए। काशी संगमम जैसे आयोजन भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृतियों का उत्सव है। यह विभिन्न राज्यों के समान सांस्कृतिक संबंधों की खोज और एक भारत, श्रेष्ठ भारत के संदेश को बढ़ाने के लिए दिशा प्रदान करता है। इन दो धाराओं के सम्बन्ध पांड्यों के प्राचीन काल से लेकर काशी के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक बीएचयू की नींव तक रहे हैं।
मानव सभ्यता की विकास यात्रा में काशी व तमिलनाडु दोनों ही शिक्षा और शोध, सजीव भाषाई परंपरा के विकास और अध्यात्म के प्रसार में समान सहभागी रहे हैं। 15वीं शताब्दी में, शिवकाशी की स्थापना करने वाले राजवंश के वंशज राजा अधिवीर पांडियन ने दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु के तेनकासी में उन भक्तों के लिए शिव मंदिर बनवाया, जो काशी की यात्रा नहीं कर सकते थे। उसके बाद, 17वीं शताब्दी में तिरुनेलवेली में पैदा हुए श्रद्धेय संत कुमारगुरुपारा ने काशी पर कविताओं की व्याकरणिक रचना ‘काशी कलमबकम’ लिखी और कुमारस्वामी मठ की स्थापना की। इस आदान-प्रदान ने न केवल दो क्षेत्रों के लोगों को अलग-अलग रीति-रिवाजों से परिचित कराया, बल्कि इसने परंपराओं के बीच की सीमाओं को इतना सहज और गतिशील बना दिया, जिससे वे एक-दूसरे में समाहित होते थे। काशी और तमिलनाडु दोनों महत्वपूर्ण मंदिरों के शहरों के रूप में उभरे हैं, जिनमें काशी का विश्वनाथ मंदिर और रामनाथ स्वामी मंदिर जैसे सबसे शानदार मंदिर शामिल हैं।
सुखद संयोग है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह में दक्षिण से महान वैज्ञानिक सीवी रमन उपस्थित थे और भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन इसके कुलपति थे। काशी और चेन्नई दोनों को यूनेस्को द्वारा ‘संगीत के सृजनात्मक शहरों’ के रूप में मान्यता दी गई है। महान गायक, व भारत रत्न से सम्मानित एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी ने काशी की प्रसिद्ध हिंदुस्तानी गायिका सिद्धेश्वरी देवी से संगीत सीखा था।
जरूरी है कि काशी की ही तरह कश्मीर या अरुणाचल प्रदेश या फिर मणिपुर और नासिक में इस तरह के आयोजन हों, जिनमें किन्हीं दो ऐतिहासिक शहरों-नदियों-सांस्कृतिक धरोहरों के बीच सामंजस्य के बात हो। ऐसे आयोजन देश के दो सिरों, उत्तर और दक्षिण या पूर्व-उत्तर के मिलन के प्रतीक होंगे। जब हमें विरासत में इस तरह का जीवंत इतिहास और जुड़ाव मिला हो तो इसका संरक्षण सर्वोपरि हो जाता है। यह अनिवार्य है कि इस साझा विरासत का ज्ञान युवा पीढ़ी को दिया जाए और उन्हें भारत के सांस्कृतिक और सभ्यतागत लोकाचार के बारे में एक दृष्टिकोण प्रदान किया जाए। काश‍! हर राज्य के लोग स्थानीयता से परिचित हों, अपने राज्य से साम्य और विविधता को देखें– समझने के बाद उसे शाश्वत तरीके से स्वीकार करें।

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