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प्रकृति के पुनर्जन्म पर आस्था का उत्सव

11:40 AM Feb 12, 2024 IST
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राजेंद्र कुमार शर्मा
वसंत पंचमी, वसंत ऋतु के आगमन का उद्घोष करती है। ग्रीष्म ऋतु धीरे-धीरे, कड़ाके की ठंड का स्थान ले रही होती है, मौसम न ठंडा, न बहुत गर्म होता है। वसंत ऋतु सब ओर नवजीवन व नव उत्साह का संचार कर जाती है। पूरे उत्तर भारत में खेतों में पीली-पीली सरसों की चादर बिछ जाती है, पुष्प खिल उठते हैं। वसंत को इसकी सर्वश्रेष्ठता के कारण ही ऋतुओं का राजा कहा गया है। इस समय प्राकृतिक पंच-तत्व जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक और सौंदर्य रूप दिखाते हैं। ठंड में अपने खोकरों में छिपे विहंग स्वच्छ आकाश में उड़ चलते हैं, किसान लहलहाती फसलों विशेषकर, सरसों के फूलों को देखकर उत्साह और ऊर्जा से भर जाते हैं। पूरी प्रकृति उन्मादी हो जाती है। यही तो प्रकृति का पुनर्जन्म है।

वसंत पंचमी का पौराणिक महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार संपूर्ण संस्कृति की देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रंग वाली सरस्वती के रूप को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। वसंत पर्व का आरंभ वसंत पंचमी से होता है। इसी दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से बचाया। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के एक प्रसंग के अनुसार, कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हज़ार वर्षों तक घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों को चिंता हुई कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी शक्तिशाली और उन्मादी हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर विराजमान हुईं। जिसके प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा, ‘स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।’ यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है। और ब्रह्मा ने यही वर उसे दिया।

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ज्योतिषीय महत्व भी

ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य को ब्रह्माण्ड की आत्मा, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक समृद्धि, औषधि तथा ज्ञान और बुद्धि का कारक ग्रह माना गया है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवताओं का एक अहोरात्र (दिन-रात) मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है, अर्थात‌् उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन रात्रि कही जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 22 दिसंबर से सूर्य उत्तरायण शनि हो जाते हैं। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और अगले 6 माह तक उत्तरायण रहते हैं। सूर्य का मकर से मिथुन राशियों के बीच भ्रमण उत्तरायण कहलाता है। देवताओं का दिन माघ के महीने में मकर संक्रांति से प्रारंभ होकर आषाढ़ मास तक चलता है। चूंकि वसंत पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है, अतः यह पर्व का स्वतः ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियों से अति विशिष्ट महत्व दिखाता है।

ज्ञान के महापर्व पर सरस्वती पूजन

ब्राह्मण-ग्रंथों के मतानुसार मां सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। यह विद्यार्थियों का भी दिन है, इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है। वसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। जिनकी जिह्वा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है, किंतु आजकल सार्वजनिक सामूहिक रूप से देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापना और सामूहिक पूजन चलन में है। यह ज्ञान का त्योहार है, समारोह का आरम्भ और समापन सरस्वती वन्दना से होता है।

सरस्वती व्रत का विधान

इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्पमाला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन किया जाता है। फिर हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार करते हैं कि ‘देवि! जिस प्रकार ब्रह्मा आपका कभी परित्याग नहीं करते, उसी प्रकार हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो। हे देवि! सभी विद्याएं आपके अधिष्ठान में ही रहती हैं, वे सभी मुझे प्राप्त हों।’ व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मण को चावलों से भरा पात्र, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, घंटा, अन्न आदि पदार्थ भी दान करें। यदि हो तो अपने गुरुदेव का भी वस्त्र, धन, धान्य और माला आदि से पूजन करें।

नये कार्यों के लिए शुभ दिन

वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त या अबूझ माना गया है। मुख्यतः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए वसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं।

वसंतोत्सव और पीला रंग

यह रंग हिन्दुओं का शुभ रंग है। वसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है। अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोगों के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवती एक-दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं।

मथुरा और ब्रज का वसंतोत्सव

मन्दिरों में वसंती भोग रखे जाते हैं। वसंत के राग गाये जाते हैं, बसंत पंचमी से ही होली गाना शुरू हो जाता है। ब्रज का यह परम्परागत उत्सव है। इस दिन सरस्वती पूजा भी होती है। ब्रजवासी वसंती वस्त्र पहनते हैं। वसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। गायन आदि के विशेष कार्यक्रमों से इस त्योहार का आनन्द और व्यापक हो जाता है।

वसंत पंचमी शुभ मूहर्त

पंचांग के अनुसार वसंत पंचमी का शुभारंभ 13 फरवरी को दोपहर 2.40 बजे होगा और समापन 14 फरवरी को दोपहर 12.10 बजे होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 14 फरवरी को ही सरस्वती पूजन किया जाएगा। इस पूजन का शुभ समय 14 फरवरी को प्रातः 10.30 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक रहेगा।

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