केस गढ़ने को सीबीआई ने एक ‘व्यथित’ का किया इस्तेमाल
रामकृष्ण उपाध्याय/ ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 2 अप्रैल
‘जज के दरवाजे पर नकदी’ मामले में पंजाब एंव हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस (सेवानिवृत्त) निर्मल यादव को बरी करते हुए चंडीगढ़ स्थित सीबीआई कोर्ट की विशेष जज अलका मलिक ने कहा कि अदालत को यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि सीबीआई ने एक ऐसे व्यक्ति को चुना, जो जस्टिस यादव द्वारा अपने हितों के खिलाफ दिए गये फैसले से बेहद व्यथित था। जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ केस बनाने के लिए उसका इस्तेमाल किया गया।
बुधवार को उपलब्ध कराए गये 90 से अधिक पृष्ठों के विस्तृत फैसले में सीबीआई कोर्ट ने जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ सीबीआई द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया है। सीबीआई कोर्ट ने गत 29 मार्च को 17 साल पुराने मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि सीबीआई का पूरा जोर हरियाणा में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रहे आरके जैन के बयान पर है। यह एक तथ्य है कि जस्टिस निर्मल यादव की अदालत ने 11 मार्च, 2008 को आरके जैन के हितों के विरुद्ध एक अपील पर फैसला दिया था।
अदालत ने कहा कि सीबीआई जैसी प्रमुख जांच एजेंसी के लिए यह अत्यधिक सराहनीय होता कि वह आरके जैन (अभियोजन पक्ष के गवाह 26) के रूप में अत्यधिक अविश्वसनीय साक्ष्य गढ़ने के बजाय सक्षम क्षेत्राधिकार वाली कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के अपने पहले कदम पर कायम रहती। जैन की गवाही मान्यताओं, अनुमानों, परिकल्पनाओं और झूठ पर आधारित साबित हुई है। यह मामला 16 अगस्त, 2008 को दर्ज किया गया था, यानी जस्टिस यादव द्वारा दिए गये निर्णय के पांच महीने बाद। अदालत ने यह भी कहा कि एक आम आदमी के लिए भी यह तर्क स्वीकार करना पूरी तरह से अपरिपक्व और अविवेकपूर्ण होगा कि हाईकोर्ट के एक सिटिंग जज को उस मामले में अवैध लाभ मिलेगा, जिसका निर्णय कथित वित्तीय लेनदेन से पांच महीने पहले
हुआ था।
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