मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

माननीयों पर भी चलाया जा सकता है मुकद्दमा

06:39 AM Mar 05, 2024 IST
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया फैसला। -प्रेट्र

नयी दिल्ली, 4 मार्च (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार से जुड़े मामले में सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अपनी पांच सदस्यीय पीठ का 25 साल पुराना फैसला सर्वसम्मति से पलटते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर सांसदों और विधायकों को कानूनी कार्रवाई से कोई छूट प्राप्त नहीं है।
वर्ष 1998 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति माेर्चा रिश्वत प्रकरण के रूप में चर्चित पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी भी भाषण और वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाए जाने से सांसदों/ विधायकों को संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट प्राप्त है। यह मामला 1993 में नरसिम्हा राव की सरकार के लिए खतरा पैदा करने वाले अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के पांच नेताओं के रिश्वत लेने से जुड़ा था।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए कहा, ‘सांसद एवं विधायकों द्वारा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट करते हैं। यह (भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी) संविधान की आकांक्षाओं और विचारशील आदर्शों के लिए विनाशकारी है और एक ऐसा राजतंत्र स्थापित करता है, जो नागरिकों को एक जिम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधित्व प्रदान करने वाले लोकतंत्र से वंचित करता है।’ सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘विधायिका का कोई भी सदस्य सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोग से अनुच्छेद 105 और 194 के तहत छूट पाने के विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकता। संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 एक ऐसे माहौल को बनाए रखने का प्रयास करते हैं, जिसमें सदन के भीतर बहस और विचार-विमर्श हो सके। यह उद्देश्य तब नष्ट हो जाता है जब किसी सदस्य को रिश्वत देकर एक निश्चित तरीके से वोट देने या बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है।’

Advertisement

रिश्वतखोरी से कमजोर होती है लोकतंत्र की नींव

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि सदन के सदस्यों के भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से भारत के संसदीय लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। पीठ ने कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत मामले में पांच जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए 1998 के फैसले की व्याख्या सांसदों और विधायकों की शक्तियों एवं विशेषाधिकार से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है। पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे।

मोदी ने कहा- शानदार फैसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को शानदार करार देते हुए कहा कि इससे देश में साफ-सुथरी राजनीति सुनिश्चित होगी। सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर उन्होंने कहा, ‘स्वागतम! माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक शानदार निर्णय, जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और व्यवस्था में लोगों के विश्वास को गहरा करेगा।’

Advertisement

Advertisement