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कनाडा होड़... बाधा दौड़

08:05 AM Sep 15, 2023 IST
आवास की दिक्कत के खिलाफ प्रदर्शन करते कैनाडोर कॉलेज एवं निपिस्सिंग विश्वविद्यालय के विद्यार्थी। (नीचे बाएं : कुछ लोगों को टेंटों में ठहराया जा रहा है। )

सीमा सचदेव
कनाडा के ऑन्टेरियो प्रांत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में नॉर्थबे नामक जगह हाल ही में गलत कारणों से खबरों में थी। कैनाडोर कॉलेज और निपिस्सिंग यूनिवर्सिटी में (जिनका परिसर साझा है) सितम्बर माह की भर्ती में 300 छात्रों ने विभिन्न कोर्सों में दाखिला लिया था, वे सब एकाएक सड़क पर आ गए क्योंकि इन शैक्षणिक संस्थानों ने उन्हें आवास सुविधा देने में असमर्थता जता दी। कनाडा में पढ़ाई करने का इनका सारा उत्साह काफूर हो गया क्योंकि यह छात्र, जो अधिकांशतः पंजाब से हैं, सिर पर छत्त से महरूम हो गए। इस क्षेत्र में आवास उपलब्धि वैसे भी कम है सो मकानों के किराए एकदम आसमान पर पहुंच गए। कुछ विद्यार्थियों को ज्यादा किराए पर कमरा लेना पड़ा तो बहुत से खुले में या टैंटों में या बस अड्डे पर या कार में सोने को मजबूर हुए। कुछेक 300 किमी दूर टोरंटो आने-जाने लगे, जिससे जेब पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ता है।

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फोटो साभार : एमवाईएसओ

छात्रों ने पहले अर्जियां दी, विनती की और आखिर में प्रदर्शन करना पड़ा, जिसमें उनकी सहायता को मॉन्ट्रियल युवा छात्र संगठन (एमवाईएसओ) आगे आया और प्रशासन को उनकी मांगें माननी पड़ी जिसमें पूरी फीस की वापसी और वहन योग्य आवास दिलवाना भी शामिल है। इसी बीच ‘आव्रजन, शरणार्थी एवं नागरिकता विभाग’ ने पढ़ाई दूर-शिक्षा प्रणाली से करने की छूट देते हुए उनके ट्रांजिशन वीसे की अवधि बढ़ा दी है। विज्ञप्ति में कहा गया ‘31, दिसम्बर 2023 तक, जितना समय छात्र कनाडा के भीतर ऑनलाइन पढ़ाई पर लगाएंगे, वह आपके स्नातकोत्तर रोजगार परमिट में जुड़ जाएगा। एक जनवरी 2024 से शुरू होकर,कनाडा के भीतर आपकी कक्षा-नीत पढ़ाई की अवधि 50 प्रतिशत होना अनिवार्य है’। कुछ आशा बंधाते इस आदेश के साथ, अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को फिलहाल कुछ राहत मिल गई है। हालांकि उन्हें अहसास है कि इस अनजान देश में सब ठीक नहीं है, जिसे वे अपना भावी घर बनाना चाहते हैं। कुछ महीने पहले टिक-टॉक पर एक क्लिप बहुत वायरल हुई थी, जिसमें ऑन्टेरियो के किचेनेर के कॉनेस्तोगा कॉलेज का एक भारतीय छात्र पुल के नीचे सोते दिखाया गया। उसके पास सामान का छोटा सा बैग था, जिसमें कंबल व खाना इत्यादि था। इसी तरह यू-ट्यूब पर एक अन्य वीडियो में ब्रैम्पटन के एक सुपर स्टोर में निकली पांच नौकरियों के चाहवान सैकड़ों विद्यार्थी पंक्ति में लगे दिखे।
इन्हें एक अलग संस्कृति वाली जगह पर रमने के लिए वित्तीय मुश्किलों का सामना करने से लेकर, एकाकीपन, घर की याद और पढ़ाई के दबाव से लेकर जातीय घृणा तक का सामना करना पड़ता है। बाहर से आए विद्यार्थियों के लिए हर दिन एक नई जंग है, जिन्हें घरेलू छात्रों की तुलना में पांच गुणा ज्यादा खर्च उठाना पड़ रहा है।
मॉन्ट्रियल युवा छात्र संगठन के समन्वयक मंदीप का कहना है  समस्या यह है कि भारत बैठे शिक्षा-परामर्शकों का मुख्य निशाना कॉलेज से प्रति भर्ती के हिसाब से कमीशन पाने पर है। स्थानीय कॉलेजों का हालिया आंकड़ा बताता है कि 2017-18 में एजेंट को प्रति छात्र मिलने वाली कमीशन 561 डॉलर थी, वह 2020-21 में बढ़कर 3,999 डॉलर हो गई। ज्यादातर, एजेंट उनके अभिभावकों और परिवार को असल जानकारी नहीं देते और वे भावी जिंदगी में बनने वाली मुश्किलों से अनभिज्ञ रहते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी के पूर्व सीनेटर ऋषि नागर कहते हैंः ‘अधिकांश अभिभावक बच्चे भेजते वक्त आंखें मूंदकर एजेंट के कहे पर भरोसा कर लेते हैं, यह दरियाफ्त नहीं करते कि बच्चा कैसे सब संभालेगा। उदाहरण के लिए, बहुत से छात्र ओल्डस कॉलेज में दाखिला लेते हैं, जहां कृषि-संबंधित कोर्स करवाए जाते हैं। एजेंट उन्हें बताते हैं कि यह कैलगरी से नज़दीक है, लेकिन अभिभावकों को पता होना चाहिए कि यह बहुत छोटा सा गांव है और वहां पर किराए पर आवास की उपलब्धता बहुत कम है। वहां के लिए कोई सीधी बस सेवा भी नहीं है और यदि स्थानीय कमरा न मिल पाया तो बच्चों को टैक्सी से आना-जाना पड़ेगा’।
जहां एक बार कनाडा पहुंचने पर इन छात्रों का वास्ता हकीकत से पड़ता है वहीं ज्यादातर अभिभावकों को यह तक नहीं पता कि बच्चे ने किस कोर्स में दाखिला लिया है। पंजाब के चमकौर साहिब के पास फतेहपुर गांव के हरजीत सिंह (उम्र 53) एक ऐसे ही परेशान पिता हैं। उनकी बेटी अर्शदीप कौर ने निपिस्सिंग यूनिवर्सिटी में जनरल मैनेजमेंट में दो वर्षीय पोस्ट-बक्कालॉरेटे सर्टिफिकेट कोर्स में दाखिला लिया। लेकिन जब अर्शदीप अगस्त के आखिर में कनाडा पहुंची तो पाया कि वहां कॉलेज के नज़दीक किराए का आवास उपलब्ध नहीं है। हरजीत कहते हैं : ‘हमने सिर्फ एजेंट के कहे पर यकीन कर लिया, तब उसने भरोसा दिया था कि यूनिवर्सिटी के पास समुचित आवास प्रबंध हैं। तब उसने कहा था ...तुस्सी फिकर न करो...ओत्थे बड़ी मौजां ने। ते अस्सी बैठे हां, जे कोई मुश्किल आंदी है’। पर जब मेरी बेटी को कमरा नहीं मिल पाया तो एजेंट ने हाथ खड़े कर दिए। हरजीत को अपनी व्यथा सोशल मीडिया पर बताई। अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर चिंतित हुए हरजीत को कई दिन अवसाद रहा, यहां तक कि अस्पताल में भर्ती रहे। आखिरकार वे बेटी को टोरंटो के एक कॉलेज में स्थानांतरित करवा पाए, जहां पर बेहतर आवास सुविधाएं और रोजगार के अवसर हैं। बिजली विभाग में कार्यरत हरजीत आगे कहते हैं : ‘बेटी को कनाडा भेजने के लिए हमें बहुत बड़ा कर्ज लेना पड़ा। अन्य खर्चों के अलावा 8-9 लाख खर्च हो चुके हैं। हमें नहीं पता कि ऋण उतारने में उसकी ओर से भेजे जाने वाले पैसे में कितना वक्त लगेगा’।
निपिस्सिंग यूनिवर्सिटी की एक अन्य छात्रा अवनीत कौर है और उसकी किस्मत में भी यही बदा था, जब वह वर्तमान सत्र में पढ़ाई करने कनाडा पहुंची। वह कहती है ‘कैनाडोर कॉलेज की एक पुरानी छात्रा ने मदद करते हुए मुझे अपने कमरे में ठहरा रखा है। आईआरसीसी के नवीनतम निर्देशों में कहा गया है कि आवास समस्या जल्द हल हो जाएगी लेकिन इस इलाके में रोजगार के मौके बहुत कम हैं। इसका हमारे यहां बने रहने पर फर्क पड़ेगा, जब स्थाई नागरिकता के लिए अर्जी देते वक्त दिखाना पड़ता है कि हमने रोजगार के अनिवार्य घंटे पूरे कर लिए हैं’।

कार्यस्थल पर शोषण के खिलाफ प्रदर्शन करते विद्यार्थी। फोटो साभार नौजवान सपोर्ट नेटवर्क

जगरांव से संबंधित कैनाडोर कॉलेज का विद्यार्थी वरुण खन्ना भी अवनीत से सहमत है, वरुण को 15 दिनों के लिए 1450 डॉलर किराए पर कमरा मिला है। वरुण बताते हैं : ‘मैं बहुत बड़ी उम्मीद के साथ कनाडा आया था, लेकिन जब यहां पहुंचा तो कॉलेज ने पहले तो हमें स्वीकारने से इंकार किया। मैंने खुद को अवांछित महसूस किया। यह वह कनाडा नहीं है जिसकी कल्पना मैं अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं कर सकता था। मेरे दाखिले के लिए, मेरे परिवार ने अपनी बचत से पैसा निकाला और हमने पढ़ाई के लिए बहुत भारी कर्ज उठाया है’। आवास की समस्या के अलावा समूचे कनाडा में मकानों का किराया बढ़ा है, किराए घोटाले ने विद्यार्थियों की मुश्किलें अलग बढ़ा दी हैं। एडमन्टन की यूनिवर्सिटी ऑफ एलबर्टा में कम्पयूटर साईंस के तृतीय वर्ष के छात्र समर्थजीत संधु ने बताया : ‘मेरे दोस्त के साथ हाल ही में एक महिला ने किराया घोटाला किया, वह खुद किराएदार थी और आगे एक हिस्से को चार महीनों के लिए किराए पर चढ़ा दिया (सबलेट) और 1900 डॉलर दो महीने की पेशगी के रूप में ले लिये। वहां जाकर रहने से एक दिन पहले मेरे मित्र को ई-मेल मिली कि उसके साथ हुआ किरायानामा अवैध है। प्रशासन ने पेशगी की रकम का आधा हिस्सा भरा’। समर्थजीत ने आगे कहा : ‘जब मैं यहां आया था, सुविधाओं से लैस कमरे का एक महीने का किराया 600 डॉलर भरता था। आज वही मुझे 760 डॉलर में पड़ता है। जहां रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं के दामों में उछाल आया है वहीं रोजगार के अवसर बहुत कम होते गए। सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतनमान वाला रोजगार मिलना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि इसके लिए आपको एक जमानती चाहिए होता है, जो अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए जुटाना इतना आसान नहीं है’।
ब्रैम्टन के हम्बर कॉलेज की विद्यार्थी और मूलतः कुल्लू निवासी स्तुति शर्मा की कहानी भी ऐसी ही है। वह बीती जुलाई में कनाडा पहुंची थी। उसने बताया : ‘छह महीनों के अंदर, तहखाने में बिना खिड़की वाले कमरे का किराया 500 डॉलर से बढ़कर 650 डॉलर हो गया है। यहां तक कि सार्वजनिक परिवहन के किराए में भी बढ़ोतरी हुई है। जो प्रैस्टो ट्रांजिट कार्ड 3.5 डॉलर में मिलता था, वह अब 4.50 डॉलर का हो गया है। कार्ड टैप करने के बाद मुफ्त आवागमन अवधि भी 2 घंटे से घटकर 1.5 घंटे हो गई है। जीवनयापन का खर्च बढ़ गया लेकिन नौकरियां शायद ही कहीं हैं’। स्तुति पिछले दो महीनों से बेरोजगार है। उसनेे आगे कहा : ‘नौकरी की तलाश में मैंने ब्रैम्टन का चप्पा-चप्पा छान लिया। यहां तक कि अगर स्टोर पर मजदूरी मिलती तो भी मंजूर थी, लेकिन कोई रखे तब न’। मेरा ग्रेजुएट इन्वेस्टमेंट सर्टिफिकेट लगभग खाली होने की कगार पर है। मुझे भारत में अपने परिवार को और पैसे भेजने को कहना पड़ा’। बढ़ते आवास किराए से केवल विद्यार्थी वर्ग ही प्रभावित नहीं है, वैन्कुवर के सरी में रहने वाले राकेश कुमार रिद्म ने बताया : ‘बढ़ती ब्याज दरें आवास संकट के लिए जिम्मेवार हैं। घर बनाने के लिए वेरिएबल लोन की दर पिछले दो सालों में 1.45 फीसदी से बढ़कर लगभग 7 प्रतिशत हो गई है। दो वर्ष पूर्व तहखाने में बने दो कमरों का किराया 1200 डॉलर प्रति माह था, अब वह 2000 डॉलर प्रति महीना है’।
समूचे कनाडा के तमाम रोजगार क्षेत्रों और प्रांतों में मुद्रा स्फीति बढ़ रही है। अप्रैल 2021 से अप्रैल 2022 के बीच कनाडा कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीसीपीआई) में 6.8 फीसदी का इजाफा हुआ है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, और अप्रैल 2021 से अप्रैल 2022 की अवधि में, हर कनाडावासी को खाद्य वस्तुएं खरीदने के लिए 9.7 प्रतिशत अधिक खर्च करना पड़ा है। यह बढ़ोतरी वर्ष 1981 के बाद सबसे अधिक है। आईपी अरोड़ा विगत 20 सालों से कनाडा में रह रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के गढ़ कहे जाने वाले ब्रैम्टन इलाके में उबर टैक्सी चालक होने के नाते उनका छात्रों से काफी वास्ता पड़ता है। वे बताते हैंः ‘बाहरी छात्रों के लिए जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है। ज्यादातर रोजगार प्रदाता उनसे हर हफ्ते 40 घंटे काम लेने की फिराक में हैं जबकि नियमानुसार विद्यार्थियों से केवल 20 घंटे ही काम करवाया जा सकता है। हालांकि सरकार अब इस अवधि को बढ़ाने पर विचार कर रही है। गुजारा करने के लिए बहुत से विद्यार्थी नकद मेहनताने पर काम करने को राजी हो जाते हैं, इससे वे मालिक की दया पर निर्भर हो जाते हैं। नए छात्रों की हालत तो और भी नाजुक है क्योंकि उन्हें अधिकारों तक का पता नहीं होता, यह कहना है गढ़शंकर के बिक्रम सिंह कुल्लेवाल का, जिनका ब्रैम्टन स्थित ‘नौजवान सहायता नेटवर्क’ संगठन कार्यस्थल पर शोषण झेल रहे छात्रों की मदद करता है। वे कहते हैं : ‘हालांकि नियमानुसार रोजगार प्रदाता के लिए अनिवार्य है कि मेहनताना सोशल इन्श्योरेंस नंबर के अनुसार 14 डॉलर प्रति घंटे से कम न दे, लेकिन अक्सर वे भुगतान में देरी करते हैं। कई मर्तबा, वे बकाया वेतन देने से बचने के लिए खुद को दिवालिया घोषित कर देते हैं’। टोरंटो स्थित न्यूज प्रोड्यूसर शमील कनाडा में पिछले 16 सालों से रह रहे हैं। वे कहते हैं : ‘ज्यादातर छात्रों का मुख्य ध्येय स्थाई नागरिकता पाना है, जिन्हें भारत में रोजगार के हसीन सपने दिखाए जाते हैं। जबकि रोजगार संकट और उच्च मुद्रास्फीति से अब क्षेत्र कोई अछूता नहीं बचा। नशा और हथियारों की सुलभ उपलब्धतता के कारण अपराध बढ़े हैं। हर दिन, 20 कारें चोरी होती हैं। पहले चोरियों का शक ज्यादातर अफ्रीकी मूल के छात्रों पर होता था, लेकिन आज भारतीय विद्यार्थियों को भी कुसूरवार माना जाता है’।
मानसिक स्वास्थ्य एक उपेक्षित पहलू बना हुआ है। अकेलापन, घर-परिवार की याद और मददगार समाज के अभाव से बहुत ज्यादा मानसिक संत्रास बनता है, क्योंकि आप केवल और केवल खुद पर निर्भर हैं। यह कहना है मॉन्ट्रियल स्थित छात्र रिया ठाकुर का, जो मोगा के पास मक्खू कस्बे से है। वह कहती है : ‘पारिवारिक परिवेश के अभ्यस्त भारतीय किशोरों के लिए यहां का माहौल एक बहुत बड़ा सांस्कृतिक झटका होता है’।
विद्यार्थियों में बढ़ती नशे की लत के पीछे कारण तनाव का उच्च स्तर माना जाता है। बहुत से पंजाबी अपने बच्चों को इस डर से कनाडा भेज देते हैं कि पंजाब में रहकर कहीं नशेड़ी न बन जाए लेकिन चिट्टा जैसा नशा यहां भी आसानी से उपलब्ध है, ऊपर से रोकने-टोकने वाला परिवार भी नहीं, यह कहना है ब्रैम्टन में बसे पटियाला के गगनदीप सिंह का। ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत के कई इलाकों में नशा कानूनन वैध है। किसी के पास कोकीन, हेरोईन और मॉर्फिन जैसे नशीले पदार्थ की 2.5 ग्राम मात्रा मिलने पर आपराधिक मामला नहीं बनता। दिल्ली का अगम सिंह, जो विनीपेग स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मनीटोबा में कम्पयूटर साईंस का विद्यार्थी है, उसने कहा : ‘शरीर को अत्यधिक ठंडे मौसम में ढलने में कुछ समय लगता है। यहां लगभग आधा साल बर्फ पड़ती है। भारतीय मूल के बहुत कम लोग यहां मिलेंगे। यह श्वेत-बहुल इलाका है और रोजगार पाने में रंगभेद साफ दिखाई देता है। नौकरी पाने में मुझे 6 महीने लग गए। यहां शहर के अंदरूनी इलाके में लूट, छुरेबाजी और जातीय हिंसा आम है।
ऋषि नागर का कहना हैः ‘मौजूदा संकट मकान किराए के अलावा ट्रक परिवहन उद्योग में भी है, इसके अलावा जीवनयापन पर महंगाई की मार से सरकार की नीतियों की आलोचना हो रही है, खासकर छात्र-वीसा कार्यक्रम नीति की। स्थानीय मजदूरों को फर्क पड़ता है जब यहां पढ़ाई करने को आए छात्रों के अभिभावक नकद और कम मेहनताने पर अवैध रूप से काम करने लगते हैं’। पूर्व आव्रजन मंत्री सीन फ्रेज़र, जो फिलहाल आवास मंत्री हैं, उन्होंने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की आमद को सीमित करने का संकेत दिया है।
कैलगरी स्थित समाचार समीक्षक रमनजीत सिंह सिद्धू कहते हैं : ‘समस्या यह है कि हर कोई केवल अपनी सफलता की गाथा ही बताता है, कोई भी असल मुश्किलों के बारे में बात नहीं करता है। एक बार कोई भी छात्र जब कनाडा में पहुंच जाता है हकीकत तब ही समझ आती है कि घास उतना भी हरा नहीं है’।

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हकीकत बयां करते आंकड़े

* वर्ष 2022 के आखिर तक कनाडा में विदेशी छात्रों के दाखिले की संख्या रिकॉर्ड 8,08,000 पहुंच गई, यह पिछले दशक में 170 प्रतिशत का इजाफा है।
* प्रत्येक 10 विदेशी विद्यार्थियों में 4 भारतीय हैं।
* आईआरसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा की अर्थव्यवस्था में हर साल अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से 22.3 बिलियन डॉलर से अधिक जुटते हैं, यह राशि ऑटो पार्ट, लकड़ी और वायुयान कलपुर्जों के सम्मिलित निर्यात से अधिक है।
* ऑन्टेरियो प्रांत के महालेखाकार द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि 2012-13 और 2020-21 के बीच की अवधि में घरेलू विद्यार्थियों का दाखिला 15 फीसदी घटा है, जबकि अतंर्राष्ट्रीय छात्र दाखिला 342 प्रतिशत बढ़ गया, जिसमें 62 फीसदी विद्यार्थी भारत से हैं।
* वित्तीय सततता बनाए रखने के लिए सार्वजनिक कॉलेजों की कमाई मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से प्राप्त फीस पर निर्भर होती जा रही है। वर्ष 2020-21 में समूचे ऑन्टारियो प्रांत में कुल प्राप्त 1.7 बिलियन डॉलर पढ़ाई-शुल्क का 68 फीसदी हिस्सा विदेशी छात्रों से आया।
* अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थी हर साल औसतन 14,306 डॉलर फीस के रूप में भरते हैं जबकि घरेलू छात्र की औसत फीस 3,228 डॉलर है। कुल दाखिले में विदेशी छात्रों की संख्या 30 फीसदी है।
* हालिया आईआरसीसी रिपोर्ट बताती है कि कनाडाई शिक्षा संस्थानों और विद्यालयों की साल-दर-साल संृद्धि दर चौंकाने वाली 31 प्रतिशत रही।

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