हिंदू भाई को राखी बांधकर मुस्लिम बहन ने कायम की सौहार्द की मिसाल
विनोद लाहोट/निस
समालखा, 19 अगस्त
भाई-बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व को जाति-धर्म की ऊंची दीवारें भी नहीं रोक पाती। दिल्ली निवासी बिस्मिला बेगम हर साल रक्षाबंधन पर गांव पट्टीकल्याणा में आकर अपने हिंदू भाई डॉ़ कंवरपाल कश्यप के हाथ पर राखी बांधना नहीं भूलती। एक मुस्लिम बहन व हिन्दू भाई का यह रिश्ता पिछले साढ़े तीन दशक से सौहार्द व गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बना हुआ है।
1985 में शुरू हुआ सिलसिला आज भी कायम है। पट्टीकल्याणा निवासी डॉ़ कंवरपाल कश्यप बताते हैं कि बिस्मिला बेगम 1980 में अपने शौहर की बेवफाई से तंग अपने छोटे 4 बच्चों को लेकर गांव पट्टीकल्याणा में किराये के मकान में रहने लगी। बिस्मिला बेगम ने बताया कि उसके शौहर ने एक अन्य महिला से दूसरी शादी कर ली और हमारी उपेक्षा करने लगा, जिसे वह सहन नही कर पाई और अपने चारों बच्चों को लेकर पट्टीकल्याणा में आकर मेहनत मजदूरी करने लगी। बच्चों को पट्टीकल्याणा आश्रम में स्कूल में भर्ती करवाया, जहां डा़ॅ कंवरपाल कश्यप के बच्चे भी पढ़ते थे। बच्चों में आपस में दोस्ती हो गई। जिसके कारण घर पर आना-जाना शुरू हो गया। डॉ़ कंवरपाल के घर उन दिनों आटा पीसने वाली चक्की लगी हुई थी। वह भी गेहूं पिसवाने आने लगी। एक दिन बिस्मिला बेगम ने अपनी दुख भरी दास्तां डॉ़ कंवर पाल व उसके भाइयों के सामने सुनाई। यह सुनकर कश्यप बन्धुओं ने उसे सगी बहन की तरह गले से लगाया और उसका सहयोग किया। बिस्मिला बेगम ने भी कश्यप बंधुओं को भाई मानते हुए पहली बार 1985 में रक्षाबंधन पर प्यार से राखी बांधी तो उन्होंने भी दोबारा से उसका घर बसवाने का आश्वासन दिया।
इसी बीच बिस्मिला बेगम का शौहर शकील अहमद उनकी तलाश करते हुये पट्टीकल्याणा पहुंच गया। तब बिस्मिला ने शकील को अपने धर्म भाईयों से मिलवाया।
डाॅ़ कंवरपाल व उसके भाइयों ने शकील अहमद को समझाया ओर उन दोनों के बीच मनमुटाव दूर करवा सुलहनामा करवाया ओर 1990 में सम्मान के साथ बिस्मिला बेगम को बहन की तरह ससुराल विदा किया।
आज बिस्मिल्ला बेगम 60 साल की हो चुकी है और दादी व नानी बन गई है, लेकिन रक्षा बंधन हो या भाई दूज का त्योहार बिस्मिला भाईयों के घर आना नहीं भूलती। इसी तरह डॉ कंवर पाल कश्यप का परिवार भी इस रिश्ते को निभा रहे हैं। बिस्मिल्ला के चारों बच्चों की शादी में हिन्दू रीति रिवाज के मुताबिक कश्यप बंधुओं ने बिस्मिल्ला की ससुराल जाकर भात दिया और बिस्मिल्ला ने भी भात लिया और हिन्दू भाइयों का स्वागत किया। दोनों परिवार ईद हो या दिवाली मिलकर मनाते हैं।