For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

स्त्री-अस्मिता एवं नैतिकता के ज्वलंत प्रश्न

06:58 AM Feb 04, 2024 IST
स्त्री अस्मिता एवं नैतिकता के ज्वलंत प्रश्न
Advertisement

रश्मि बजाज

Advertisement

पौराणिक महाकाव्यों रामायण की सीता एवं महाभारत की द्रौपदी भारतीय साहित्यकारों के शाश्वत प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। आदिकाल से वर्तमान कालखंड तक इन चरित्रों को केंद्र-बिंदु बना विभिन्न भारतीय भाषाओं में साहित्य की विविध विधाओं में अनेक कृतियां रची गई हैं। जहां सीता का अधिकतर चित्रण एक प्रातःस्मरणीय आदर्श स्त्री के रूप में ही हुआ है, द्रौपदी एक जटिल पात्र है एवं समकालीन चेतना की संवाहक भी। द्रौपदी का आक्रोश, उसकी आकुलता, उसकी विवशता, उसका साहस उसे समकालीन लेखक एवं पाठक का अभीष्ट स्त्री पात्र बनाते हैं।
‘द्रौपदी अग्निसुता’ विख्यात साहित्यकार, त्रिवेणी साहित्य अकादमी की संस्थापक, दिवंगत डॉ. गीता डोगरा की बीसवीं एवं अंतिम प्रकाशित कृति है। कवयित्री ने अपने इस खंडकाव्य को समर्पित किया है ‘समस्त नारी जगत को जो आज भी तिरस्कार की अग्नि को झेलती समाज से लड़ते हुए जूझ रही है’। इस काव्यकृति को कवयित्री ने 14 अनुभागों में विभाजित किया है। रचना का प्रमुख प्रतिपाद्य है- द्रौपदी के साहस का स्तवन। गीता डोगरा अपनी प्रस्तावना में ही यह स्पष्ट कर देती हैं- ‘अकेली अन्याय झेलती द्रौपदी कमज़ोर कहीं न दिखी। उसका यही रूप मुझे भा गया और मैंने द्रौपदी पर लिखने का मन बनाया।’
कवयित्री की द्रौपदी-कथा द्रुपद के याज और उपयाज से मिलने, मुनि याज के आश्रम, स्वयंवर, कर्ण का संताप, द्रौपदी की अभिलाषा और नियति, इंद्रप्रस्थ बनाम हस्तिनापुर, व्यथा के दिन, द्रौपदी चीरहरण और कीचक वध प्रसंगों से गुज़रते हुए अज्ञातवास की समाप्ति एवं अभिमन्यु वध पर सम्पन्न होती है।
इस रचना की सार्थकता उन नैतिक एवं स्त्रीवादी प्रश्नों में है जो कवयित्री ने अपने पूरे ‌कथ्य में निरंतर उठाए हैं। कृति में सर्वाधिक सशक्त है पहला अनुभाग जिसका शीर्षक है- ‘कौन देगा जवाब’? जहां युधिष्ठिर, द्रोण, कुंती, दुशासन एवं सभी सुधीजन से कंटीले प्रश्न पूछे गए हैं। द्रौपदी की पीड़ा एवं आक्रोश सर्वकालिक हैं : ‘पग-पग पर द्रौपदी बहुतेरी/ धृतराष्ट्र की भी कमी नहीं।’
गीता डोगरा की द्रौपदी का सुदृढ़ आत्मविश्वास उसका सौंदर्य है : ‘ना आंकना साधारण कभी मुझे/ कृष्ण थे महाभारत के नायक तो मैं भी नारी बलवान बनी/ बस कसक और पीड़ा ने ही भरी शक्ति/ दृढ़ संकल्प वाली मैं ही थी।’
कृति का अभिव्यक्ति एवं शिल्प-कला पक्ष अधिक सशक्त नहीं है। विषय-वस्तु की बेहतर कहन, भाषा-शैली के प्रति कवयित्री की सजगता, प्रूफ-रीडिंग तथा त्रुटि-संशोधन में अधिक श्रम प्रस्तुतीकरण को समृद्धतर बना सकते थे।

पुस्तक : द्रौपदी : अग्निसुता कवयित्री : डॉ. गीता डोगरा प्रकाशक : समृद्ध पब्लिकेशन दिल्ली पृष्ठ : 92 मूल्य : रु. 199.

Advertisement

Advertisement
Advertisement