भवन निर्माण में गुणवत्ता बिल्डर की जवाबदेही
श्रीगोपाल नारसन
आवासीय मकान का घटिया निर्माण करने पर एक जिला उपभोक्ता आयोग ने ठेकेदार को डेढ़ लाख रुपए का हर्जाना देने के आदेश दिये हैं। मामले के तहत कैलाश पाटिल ने ठेकेदार सुनील यादव के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर किया था कि साल 2006 में परिवादी ने सुनील यादव को 6 लाख रुपए में एक प्लॉट पर मकान के निर्माण का ठेका दिया था। अनुबंध के अनुसार सुनील को पांच माह में मकान बनाकर उसका कब्जा देना था, लेकिन चार साल बाद मकान निर्माण पूरा किया गया। जब मकान का कब्जा दिया तो खामियां मिलीं। उपभोक्ता को खुद ही बिजली, सेनेट्री, नल फिटिंग आदि कार्य अलग करवाने पड़े।
गुणवत्ता की कमी के दोषी बिल्डर व ठेकेदार
उक्त मामले में परेशान होकर उपभोक्ता कैलाश ने साल 2010 में जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि मकान बनाने में ठेकेदार ने बहुत देर की है। इसके चलते करीब पांच साल तक उसे किराए के मकान में रहना पड़ा। बनाए गए मकान में ठेकेदार ने बिजली, सेनेट्री व नल की फिटिंग ठीक से नहीं की थी। कमरों की दीवारों एवं छतों में दरारें थीं, फर्श तक सही ढंग से नहीं बनाया गया था। जगह-जगह प्लास्टर उखड़ रहा था। अनुबंध के अनुसार सागौन की लकड़ी का प्रयोग होना था, लेकिन साधारण लकड़ी लगायी गयी। किचन के प्लेटफार्म में साधारण पत्थर लगाया गया है, जबकि इसमें ग्रीन मार्बल की बात तय हुई थी। ठेकेदार को बार-बार कहने पर भी मकान के निर्माण को पुनः सुधारकर नहीं दिया गया। मकान का फिर से सुधार कराने में एक से दो लाख रुपए खर्च होंगे। सुनवाई में उपभोक्ता आयोग ने माना कि मकान का निर्माण कार्य अपूर्ण एवं अच्छी गुणवत्ता का नहीं है। उपभोक्ता आयोग ने विधिक व्यवस्था दी कि अनुबंध के अनुसार निर्माण नहीं करने पर कालोनाइजर, बिल्डर या ठेकेदार बच नहीं सकते। मकान खरीदने वाले किसी भी व्यक्ति को जब वे सुविधाएं नहीं मिल पाएं, जिनका वादा किया गया था, तो वह उपभोक्ता आयोग में फरियाद लगा सकता है। आरोप सही पाए जाने पर ठेकेदार या बिल्डर पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
दोयम मेटीरियल हो तो हर्जाने के साथ जुर्माना
ऐसे ही एक अन्य मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग ने ठेकेदार पर करीब 2 लाख रुपए जुर्माना और मानसिक प्रताड़ना के एवज में एक लाख रुपए के हर्जाने का आदेश दिया है। गुढ़ियारी निवासी राजेंद्र पटेल के साथ ऐसा ही मामला हुआ था। मकान में उन्हें जो फैसिलिटी ठेकेदार ने ऑफर की, मकान उसके अनुरूप नहीं था। तब पटेल ने उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया। जिला आयोग में उन्हें न्याय मिला और ठेकेदार पर जुर्माना लगाया गया। लेकिन वह जुर्माने से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। यह केस करीब दो साल चला, लेकिन राज्य उपभोक्ता आयोग में न सिर्फ पटेल के पक्ष में फैसला हुआ, बल्कि ठेकेदार पर जुर्माना भी किया गया। घर,दुकान, कार्यालय के निर्माण में यदि राजमिस्त्री या फिर ठेकेदार घटिया सामग्री का उपयोग उक्त बाबत किए गए अनुबंध के विपरीत करता है तो उसके विरुद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर किया जा सकता है। इसमें दोषपूर्ण निर्माण कार्य की मरम्मत, अधूरे काम को पूरा करने या आर्थिक नुकसान का मुआवज़ा जैसे मुआवजा प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि घटिया निर्माण कार्य ठेकेदार की लापरवाही के कारण हुआ है, तो ठेकेदार के विरुद्ध लापरवाही का दावा किया जा सकता है।
परिवाद के लिए सही दस्तावेज़ीकरण
यदि ठेकेदार निर्माण कार्यों की बाबत दी गई वारंटी का उल्लंघन करता है, तो ठेकेदार से निर्माण की मरम्मत कराने या मुआवजे जैसे उपायों के हकदार हो सकते हैं। किसी भी परिवाद की कानूनी कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिए, घटिया काम का उचित दस्तावेज़ीकरण ज़रूरी है। सभी संबंधित अनुबंध दस्तावेज़ इकट्ठा करके, निर्माण दोषों को चित्रों व वीडियो के माध्यम से और यदि आवश्यक हो तो विशेषज्ञ की राय के साथ अपने दावे को मजबूत किया जा सकता है। साथ ही समस्या का पता चलते ही ठेकेदार को इसकी सूचना देना भी आवश्यक है ताकि उन्हें स्थिति को सुधारने का अवसर मिल सके। यह भी सुनिश्चित करें कि निर्माण का अनुबंध कार्य गुणवत्ता मानकों,समयसीमा और घटिया निर्माण के समाधान को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता हो। घटिया निर्माण कार्य से संबंधित विवादों को सुलझाने में एक अनुभवी वकील की मदद बहुत उपयोगी हो सकती है। जो निर्माण अनुबंध की सेवाशर्तों का अनुपालन करा सके। कानूनी प्रक्रिया अपनाने पर अपने दावे को व्यवस्थित कर प्रस्तुत कर सके। इसके लिए बातचीत, मध्यस्थता या अदालत तीनों विकल्प हो सकते हैं।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।