ब्लॉग चर्चा
अनुराग सिंह
नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर सीतापुर जनपद में स्थित है। यह एक पवित्र स्थल और तपोभूमि है। नैमिषारण्य तीर्थ स्थल का जिक्र विष्णु पुराण, मारकंडेय पुराण और वाराह पुराण में भी मिलता है। सत्यनारायण की कथा में भी इस स्थल का महत्व मिलता है। आदि गुरु शंकराचार्य और महान संत सूरदास भी इस पवित्र स्थल पर आये थे। महाभारत में इस स्थल का उल्लेख मिलता है।
आइये जानते हैं कुछ लोक कथाओं के बारे में। सबसे पहले बात करते हैं मार्कंडेय पुराण की। इस पुराण के अनुसार नैमिषारण्य में ही 88000 ऋषि-मुनियों को सूतजी ने कई पुराणों सहित महाभारत की कथा सुनाई थी। सूतजी ऋषि वेदव्यास के परम शिष्य थे। एक लोककथा के अनुसार देवराज इंद्र को वृत्ता नाम के एक असुर ने उनके देवलोक से उनको ही निकाल दिया था। इसीलिए देवराज इंद्र ऋषि दधीचि के पास पहुंचे और उन्हें इस घटना से अवगत कराया। ऋषि दधीचि तुरंत ही अपनी अस्थियां त्याग करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन ऋषि ने एक शर्त रखी कि मैं अपने प्राण त्याग करने से पहले सभी पवित्र नदियों के जल से स्नान करना चाहता हूं। तब देवराज ने जल देवता को आदेश दिया कि तुरंत ही सभी पवित्र नदियां इस नैमिषारण्य में आयें। बस, तबसे ही यहां स्नान करना अति लाभदायक माना जाता है यह स्थल दधीचि कुण्ड के नाम से जाना जाता है।
एक अन्य लोक कथा के अनुसार इसी स्थल पर हनुमान जी ने अहिरावण का वध करके श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त करवाया था। बताते हैं कि यहीं पर श्रीराम ने अपने अश्वमेध यज्ञ को पूरा किया था और लव-कुश से श्रीराम का मिलन भी यहीं पर हुआ था। एक लोक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद सभी ऋषि मुनि इस बात को लेकर दुविधा में थे कि कलियुग शुरू होने वाला है, कोई स्थल ऐसा होगा जहां कलियुग का प्रभाव न पड़े। सभी ऋषि-मुनि ब्रह्मा जी के पास गए तो ब्रह्माजी ने एक पवित्र चक्र को पृथ्वी की तरफ फेंका और बताया कि जहां पर यह चक्र गिरेगा वही स्थल कलियुग के प्रभाव से अछूता रहेगा। यह चक्र नैमिषारण्य में ही गिरा था। उस समय यह स्थल नैमिष वन था।
एक अन्य कथा के अनुसार श्रीहरि विष्णु जी ने गयासुर का वध किया था और वध करके उस असुर के शरीर के तीन टुकड़े कर दिए थे, इस असुर गयासुर का सिर बद्रीनाथ में गिरा था, उसके चरण गया में गिरे थे और धड़ नैमिषारण्य में गिरा था।
साभार : सफरजानकारी डॉट कॉम