भाजपा की कामयाबी से बढ़ी कांग्रेस की मुश्किलें
राजस्थान के सात विधानसभा उपचुनाव के परिणामों ने छोटे राजनीतिक दलों और विपक्षी कांग्रेस को करारी हार दी है। इस हार ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के भविष्य को अनिश्चितता की ओर मोड़ दिया। इस वर्ष के प्रारम्भ में भाजपा, दो विधानसभा उपचुनावों में हार चुकी थी। साफ है जून में कांग्रेस, जो गठबंधन को लोकसभा की 25 में से 11 सीटें दे चुकी थी, ने 7 में से 5 विधानसभा सीटों पर विजय प्राप्त कर संगठनात्मक मजबूती हासिल की। यह अप्रत्याशित जीत मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की सरकार को संकट से उबारने में सफल रही।
इन सात विधानसभा सीटों में से भाजपा ने पांच सीटें—झुंझुनू, रामगढ़, देवली-उनियारा, खींवसर और सलूंबर—जीतीं, जबकि भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने चौरासी सीट और कांग्रेस ने दौसा सीट पर विजय प्राप्त की। इस बार के चुनाव परिणामों का निष्कर्ष है कि मतदाताओं ने परिवारवाद और सहानुभूति की राजनीति को नकार दिया। कांग्रेस ने रामगढ़ सीट पर स्व. जुबेरखान के बेटे, आर्यन जुबैर को सहानुभूति आधारित जीत के लिए खड़ा किया था, जबकि इस सीट पर स्व. जुबैर चार बार और एक बार उनकी पत्नी साफिया कांग्रेस की विधायक रह चुकी थीं। बावजूद इसके, भाजपा के सुखवंत सिंह ने आर्यन को भारी शिकस्त दी।
झुंझुनू विधानसभा सीट, जो ओला परिवार के नाम से प्रसिद्ध है, से जाट नेता स्व. शीशराम ओला ने 8 बार विधानसभा और 5 बार लोकसभा चुनाव जीते थे। इस बार उनके पुत्र बृजेंद्र ओला, जो जून में सांसद चुने गए थे, अपने पुत्र अमित ओला को विजय दिलाने में असफल रहे। भाजपा के राजेंद्र भांबू ने भारी मतों (42,848) से जीत हासिल की।
सहानुभूति लहर का फायदा भाजपा ने सलूंबर सीट पर उठाया, जहां स्व. अमृतलाल मीणा की पत्नी, शांता देवी मीणा (जो तीन बार सरपंच रह चुकी हैं), अंतिम राउंड की गिनती में 1285 वोट से जीत गईं। बीएपी के प्रत्याशी जीतेश कटारा ने चुनाव आयोग से भाजपा सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग की शिकायत की थी। बीएपी प्रमुख और डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत ने भी चुनाव आयोग को शिकायत की कि उनकी पार्टी सलूंबर सीट पर एकतरफा जीत रही थी, लेकिन भाजपा सरकार ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करते हुए जल्दी-जल्दी मतगणना करा कर अपने प्रत्याशी को जीत का सर्टिफिकेट दिलवा दिया।
आरएलपी पार्टी को सबसे बड़ा नुकसान हुआ, क्योंकि पार्टी प्रमुख और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को खींवसर विधानसभा सीट पर नहीं जिता सके। उनकी पार्टी राजस्थान विधानसभा में भी शून्य पर रही। भाजपा उम्मीदवार रेवतराम डांगा ने यह सीट जीतकर पार्टी की विधानसभा में संख्या बढ़ाई। यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तरह आरएलपी के साथ गठबंधन करती, तो यह सीट गठबंधन के पक्ष में जा सकती थी।
दौसा (मीणा-गुर्जर बाहुल्य) के चुनाव परिणाम ने भाजपा के दमदार नेता किरोड़ी लाल मीणा (जो मौजूदा विधायक हैं) को लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद शर्मनाक स्थिति में डाल दिया। परिवारवाद के चक्रव्यूह में फंसी भाजपा ने दौसा से किरोड़ी के भाई, जगमोहन मीणा को टिकट दिया था। किरोड़ी ने पब्लिक मीटिंग्स में मीणा समाज से वोट की अपील की थी कि यदि उनके भाई को विजयी बनाकर भेजा गया, तो वह अपना इस्तीफा वापस लेने पर विचार करेंगे। किरोड़ी की पत्नी गोलमा देवी इस सीट से विधायक रह चुकी थीं और गहलोत सरकार में मंत्री भी रही थीं। दौसा सीट पर कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा ने भाजपा को हराकर न केवल कांग्रेस, बल्कि सचिन पायलट और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा की प्रतिष्ठा भी बचा ली।
परिवारवाद से हटकर, देवली-उनियारा और चौरासी सीटों पर जातीय टक्कर ने अहम भूमिका निभाई। चौरासी में आदिवासी नेता अनिल कटारा (बीएपी) और भाजपा के राजेंद्र गुर्जर ने देवली-उनियारा में कांग्रेस को बड़ा झटका दिया। देवली-उनियारा में कांग्रेस के सांसद हरीश मीणा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी रही, और कांग्रेस बागी निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने मतदान के दिन बूथ के बाहर एसडीएम को थप्पड़ मारा, जिससे राजस्थान सरकार को संकट का सामना करना पड़ा। बाद में नरेश मीणा को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा गया। भाजपा सरकार के मंत्रियों की पहल से स्थिति शांत हुई। कांग्रेस इस सीट को जीत सकती थी, लेकिन पार्टी के भितरघात के कारण कस्तूरचंद मीणा को टिकट दिया गया, जो तीसरे स्थान पर रहे।
दो सौ सीटों की विधानसभा में अभी भाजपा के 119 विधायक, कांग्रेस के 66, बीएपी 4, बसपा 2, निर्दलीय 8 और आरएलडी 1 हैं। भाजपा में अब अंदरूनी खटपट और बागियों की हरकतों पर विराम लगने की संभावना है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए नए विधायकों को बधाई देने पार्टी कार्यालय पहुंचकर एक महत्वपूर्ण संकेत दिया। मदन राठोड़ (राज्यसभा सांसद) को पार्टी के आगामी संगठनात्मक चुनाव में राजस्थान भाजपा अध्यक्ष पद संभालने में अब कोई दिक्कत नहीं होगी। भजन मंत्रिमंडल के विस्तार और उनके एक साल के मूल्यांकन पर अब पार्टी हाईकमांड को कोई उलझन नहीं रहेगी। भाजपा अगले महीने अपने कार्यकाल का जश्न मनाने जा रही है।
राजस्थान पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के अपने पद पर बने रहने का संकट पैदा हो सकता है। सचिन पायलट को नई जिम्मेदारी मिल सकती है। तीन बार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चुनाव में दिलचस्पी केवल प्रत्याशियों के नामांकन और रैली तक सीमित रही, जबकि वे महाराष्ट्र चुनाव में ऑब्जर्वर थे, जहां कांग्रेस पिछड़ गई। उपचुनाव परिणामों ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा में नया जोश भर दिया है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।