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भाजपा ने सहेज कर रखा वोट बैंक तो मिली जीत, बिखराव से हारी कांग्रेस

06:56 AM Oct 11, 2024 IST
बीरेंद्र सिंह

जसमेर मलिक/हप्र
उचाना (जींद), 10 अक्तूबर
उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र में भाजपा अपने वोट बैंक को सहेज कर जीत गई, जबकि कांग्रेस पार्टी भाजपा से कहीं बड़े अपने वोट बैंक में बिखराव को नहीं रोक पाई, और इस कारण उसे हार का सामना करना पड़ा। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के परिवार के लिए यह पहला मौका है, जब यह परिवार लगातार 10 साल विधानसभा में उचाना का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएगा। ठेठ बांगर कहे जाने वाले उचाना कलां हलके में इस बार मुकाबला आमने-सामने का न होकर बहुकोणीय बन गया, और उचाना से पहली बार भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारण भी बना। कांग्रेस ने पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया, तो भाजपा ने पहले इनेलो और बाद में जजपा की पृष्ठभूमि से निकलकर आए युवा देवेंद्र अत्री पर दांव लगाया। चुनावी संग्राम शुरू होने के साथ ही भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र अत्री लगभग 45000 मतों पर आकर खड़े हो गए थे। वह लाख प्रयास करने के बाद भी अपने वोट बैंक को 45000 मतों से आगे नहीं ले जा पाए। उनके मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह का वोट बैंक लगभग 65 से 70000 का था, जिसमें सबसे बड़ी संख्या जाट समुदाय की थी। जाट बहुल उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह और बीजेपी के देवेंद्र अत्री के बीच आमने-सामने की लड़ाई होती, तो बृजेंद्र सिंह की जीत पक्की मानी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस के बागियों ने उचाना की चुनावी जंग को बहुकोणीय मुकाबले में बदल दिया। कांग्रेस टिकट नहीं मिलने से नाराज वीरेंद्र घोघड़ियांं और दिलबाग संडील निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतर गए। यह दोनों पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और सांसद दीपेंद्र हुड्डा के नजदीकियों में थे। जब 10 साल तक पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनका परिवार बीजेपी में रहा, तब इन दोनों ने उचाना कलां में कांग्रेस के लिए राजनीतिक जमीन तैयार की थी, और इसमें खूब पसीना बहाया था। कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर दोनों निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतरे तो वीरेंद्र घोघड़ियां को 28719, दिलबाग संडील को 6981 वोट मिले। इसमें बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस के जाट समुदाय के वोट बैंक का था। यही उचाना कलां में बहुत कम अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह की हार और भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र अत्री की जीत का कारण बना।

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तो बन जाती कांग्रेस की बात...

उचाना के चुनावी दंगल से कांग्रेस के दो बागी प्रत्याशियों वीरेंद्र घोघड़ियां और दिलबाग संडील में से किसी एक को भी कांग्रेस नेतृत्व चुनावी मैदान से हटा देता, तो कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह की जीत पक्की हो जाती। हैरानी की बात है कि उचाना कलां से मिले उस फीडबैक के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व ने दोनों में से किसी एक को मनाकर चुनावी दंगल से हटाने का प्रयास नहीं किया, जिसमें यह कहा गया था कि यह दोनों चुनावी मैदान में रहे तो कांग्रेस की हार हो सकती है। दूसरी ओर उचाना के चुनावी दंगल में भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र अत्री ने भाजपा के वोट बैंक को पूरी तरह से सहेज कर रखा।

इस बार टूटा रिकॉर्ड

फरवरी 2000 में में हुए विधानसभा चुनाव में बीरेंद्र सिंह को इनेलो के भाग सिंह के हाथों हार मिली, तो 2005 में बीरेंद्र सिंह ने भाग सिंह को बुरी तरह से पराजित कर विधानसभा में दस्तक दी थी, और भूपेंद्र हुड्डा सरकार में वित्त मंत्री बने थे। 2009 में बीरेंद्र सिंह को इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने उचाना में 500 मतों के अंतर से हराया, तो 2014 में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने दुष्यंत चौटाला को पराजित कर दिया था। 2019 में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को जजपा के दुष्यंत चौटाला ने 48000 के अंतर से हराया था। इस बार माना जा रहा था कि बीरेंद्र सिंह का परिवार उचाना में कमबैक करेगा, लेकिन बृजेंद्र सिंह 32 मतों के अंतर से चुनाव हार गए। उचाना के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह या उनका परिवार लगातार 10 साल तक विधानसभा में उचाना का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएगा।

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घोघड़ियां को निष्कासित करने में देरी

विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेतृत्व ने जब बागियों पर कार्रवाई शुरू की, तो पहले उचाना में दिलबाग संडील को कांग्रेस से निकाला गया, जो चुनावी मुकाबले में बहुत कमजोर थे और वीरेंद्र घोघड़ियां से बहुत पीछे थे। इससे भी उचाना कलां में यह संदेश कई दिन तक गया कि वीरेंद्र घोघड़ियां को कहीं न कहीं पार्टी के किसी नेता से इशारा चुनाव लड़ने को लेकर मिला हुआ है। जब मामला गंभीर होने लगा, तब वीरेंद्र घोघड़ियां को भी कांग्रेस पार्टी से निष्कासित किया गया, लेकिन तब तक घोघड़ियां कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा चुके थे।

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