Birthright Citizenship: ट्रंप के आदेश पर लगी रोक, अमेरिकी नागरिकता के लिए भारतीयों को बड़ी राहत
चंडीगढ़, 24 जनवरी (ट्रिन्यू)
Birthright Citizenship: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ‘बर्थराइट सिटिजनशिप’ खत्म करने के आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी गई है। सिएटल के फेडरल जज जॉन कॉगनॉर ने ट्रंप के इस कार्यकारी आदेश को 14 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है, जिससे इस नीति के प्रभाव में आने से पहले ही इसे चुनौती दी जा सके।
यह फैसला अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय, खासकर एच1बी और एल1 वीजा धारकों के लिए राहत लेकर आया है। ये वीजा धारक स्थायी निवास के अधिकार से वंचित हैं, और ट्रंप के आदेश का प्रभाव उनके बच्चों की नागरिकता पर पड़ने वाला था।
क्या था ट्रंप का आदेश?
ट्रंप ने अपने कार्यकाल के पहले दिन एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कहा गया था कि अमेरिका में जन्मे उन बच्चों को नागरिकता नहीं दी जाएगी, जिनके माता-पिता में से कोई भी नागरिक या ग्रीन कार्ड धारक नहीं है। यह आदेश 19 फरवरी से प्रभावी होने वाला था।
इस आदेश का उद्देश्य 14वें संशोधन के तहत दिए गए 'जन्म आधारित नागरिकता' के अधिकार को चुनौती देना था। 1868 में नागरिक युद्ध के बाद लागू इस संशोधन में कहा गया है, "जो भी व्यक्ति अमेरिका में जन्म लेता है या प्राकृतिक रूप से नागरिक बनता है, वह अमेरिकी नागरिक होता है।"
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भारतीय समुदाय पर प्रभाव
ट्रंप के आदेश ने अमेरिका में रह रहे कई भारतीय परिवारों को चिंता में डाल दिया था। डॉक्टरों और स्त्री रोग विशेषज्ञों ने बताया कि भारतीय गर्भवती महिलाएं समय से पहले सी-सेक्शन कराने की मांग कर रही थीं, ताकि उनके बच्चे 20 फरवरी से पहले जन्म लेकर अमेरिकी नागरिक बन सकें।
टेक्सास और न्यू जर्सी के डॉक्टरों ने बताया कि आठवें और नौवें महीने की गर्भवती महिलाएं जल्द से जल्द डिलीवरी कराने का अनुरोध कर रही थीं। हालांकि, डॉक्टरों ने उन्हें समय से पहले डिलीवरी के जोखिमों के प्रति आगाह किया।
1868 से लागू कानून और ट्रंप की चुनौती
'बर्थराइट सिटिजनशिप' का आधार 1868 का 14वां संशोधन है। सुप्रीम कोर्ट के 1898 के ऐतिहासिक मामले, वोंग किम आर्क बनाम अमेरिका, में यह तय किया गया था कि अमेरिका में जन्मे सभी लोग नागरिक हैं, चाहे उनके माता-पिता प्रवासी हों।
ट्रंप के आदेश में दावा किया गया कि गैर-नागरिकों के बच्चे अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी और यह लंबी कानूनी लड़ाई का विषय बनेगा।