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कृत्रिम मानव भ्रूण के विकास की दिशा में बड़ा कदम

06:23 AM Oct 06, 2023 IST
कृत्रिम मानव भ्रूण के विकास की दिशा में बड़ा कदम
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डॉ. शशांक द्विवेदी

पिछले दिनों एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए इस्राइल के वैज्ञानिकों ने बिना शुक्राणु या अंडों के मानव भ्रूण का मॉडल तैयार किया है। इस मॉडल के जरिये भविष्य में मानव भ्रूण को वास्तविक तरीके से विकसित किया जा सकता है। अगर यह प्रयोग सफल रहा है तो बच्चों को पैदा करने के लिए स्त्री-पुरुष के मिलन या उनके अंडों और शुक्राणु की जरूरत नहीं होगी।
यह शोध वीजमैन इंस्टीट्यूट इस्राइल के वैज्ञानिकों ने किया है जिसका नेतृत्व प्रो. जैकब हन्ना ने किया। हन्ना के अनुसार, स्टेम कोशिकाओं को मिलाकर ऊतक के छोटे-छोटे गोले बनाए। इन्होंने खुद को ऐसी संरचनाओं में व्यवस्थित किया जो एक से दो सप्ताह पुराने मानव भ्रूणों में पाए जाने वाले सभी ज्ञात लक्षणों के समान दिखती हैं। वैज्ञानिकों ने 14 दिन के मानव भ्रूण का एक मॉडल बनाने हेतु स्टेम सेल और रसायनों के संयोजन का उपयोग किया। इस सफलता से मानव जिंदगी की शुरुआती अवस्था के बारे में जानकारी मिल पाएगी। इस्राइल के वैज्ञानिकों ने शुक्राणु, अंडे या गर्भाशय का इस्तेमाल किए बिना प्रयोगशाला में स्टेम सेल से मानव भ्रूण का एक मॉडल बनाया है। यह भ्रूण के विकास के शुरुआती चरणों की एक अनूठी झलक पेश करता है। वीजमैन इंस्टीट्यूट की टीम के अनुसार, यह मॉडल 14वें दिन के भ्रूण जैसा दिखता है। इसे मानव विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा कदम माना जा रहा है। अगर यह तकनीक आगे भी कामयाब होती है तो बच्चों को जन्म देने के लिए इंसानों की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, इस मुकाम तक पहुंचने में अभी काफी समय लग सकता है।
जून में बोस्टन में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर स्टेम सेल रिसर्च (आईएसएससीआर) की वार्षिक बैठक के दौरान प्री-प्रिंट सामने आने के बाद वैज्ञानिकों का काम नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ था। इस्राइली टीम ने इस बात पर जोर दिया कि वे स्क्रैच से भ्रूण बनाने में सक्षम होने से अभी बहुत दूर हैं। टीम लीडर जैकब हन्ना के अनुसार, यह काम गर्भधारण पर दवाओं के प्रभाव का परीक्षण करने, गर्भपात और आनुवंशिक बीमारियों को बेहतर ढंग से समझने और शायद प्रत्यारोपण ऊतकों और अंगों को विकसित करने के नए तरीकों का रास्ता खोल सकता है। हन्ना के मुताबिक, इनमें मानव भ्रूण से काफी अंतर है, लेकिन फिर भी यह पहली बार है। टीम ने वयस्क मानव त्वचा कोशिकाओं के साथ-साथ प्रयोगशाला में संवर्धित अन्य कोशिकाओं से प्राप्त स्टेम सेल को लिया। फिर कोशिकाओं को विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में विकसित होने की क्षमता के साथ प्रारंभिक अवस्था में वापस कर दिया।
फिर उन्होंने संरचनात्मक रूप से एक भ्रूण जैसी किसी चीज का आधार बनाने के लिए उनमें हेरफेर किया। यह कोई वास्तविक या सिंथेटिक भ्रूण नहीं है, बल्कि यह एक मॉडल है जो दर्शाता है कि कोई कैसे काम करता है। हन्ना के मुताबिक, उनका अगला लक्ष्य 21वें दिन तक आगे बढ़ना और 50 फीसदी सफलता दर की सीमा तक पहुंचना है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विकास और स्टेम सेल के प्रोफेसर मैग्डेलेना सेर्निका-गोएट्ज ने कहा कि अध्ययन इस साल दुनिया भर की टीमों से प्रकाशित छह अन्य समान मानव भ्रूण जैसे मॉडलों में शामिल हो गया है, जिसमें उनका क्लिनिकल भी शामिल है।
पिछले साल ही अमेरिका और इस्राइल के वैज्ञानिकों ने बिना नर या मादा का प्रयोग किए, प्रयोगशाला में चूहों का भ्रूण तैयार कर लिया था। इसे ‘डॉली’ भेड़ के पैदा होने जितनी अहम खोज माना गया था। चूहे का यह कृत्रिम भ्रूण बनाने में न नर चूहे का स्पर्म लिया गया और न मादा चूहे के अंडाणु या गर्भाशय। प्रयोगशाला में बनाए गए ये चूहों के भ्रूण बिल्कुल वैसे हैं जैसे कुदरती रूप से गर्भधारण के बाद साढ़े आठ दिन के भ्रूण दिखते हैं। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भविष्य में उन्हें अपने प्रयोगों के लिए प्रयोगशालाओं में असली जानवरों को कत्ल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे यूं कृत्रिम रूप से बनाए गए जीवों पर ही शोध कर सकेंगे।
कृत्रिम मानव भ्रूण का विकास एक बड़ी सफलता है लेकिन यह कई सवाल भी खड़े करती है। बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि भ्रूण अनुसंधान जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, वह भगवान की भूमिका निभाने जैसा है। इस अनुसंधान में यही सबसे बड़ी दुविधा है कि जो सबसे अच्छे रिसर्च मॉडल होते हैं, वे असली के एकदम नजदीक पहुंच जाते हैं. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में बॉयोसाइंस में एथिकल, लीगल, और सोशल मामलों से जुड़े जानकार हैंक ग्रीली कहते हैं कि वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए आप जितना संभव हो सके, उतना अपने मॉडल को वास्तविक बनाना चाहते हैं लेकिन जैसे ही वास्तविकता के नजदीक पहुंचते हैं, वैसे ही नैतिक समस्याएं या पहलू आपको दूर करने लगते हैं। देखा जाए तो हूबहू इंसानों की तरह का भ्रूण अपने आप में बड़ी बात है। इसी मुद्दे पर पिछले दिनों कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में डेवेलपमेंटल बॉयोलॉजिस्ट जर्निका गेट्ज का एक शोध नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ था। शोध के नतीजे प्रकाशित होने पर गेट्ज का कहना था, ‘हमारा लक्ष्य जीवन निर्माण करना नहीं है।’ इस शोध से इंसान के विकास में इस ब्लैक बॉक्स पीरियड के बारे में और जानने का मौका मिलेगा।
कुल मिलाकर लैब में विकसित किया दो हफ्ते का मानव भ्रूण बनाना एक बड़ी सफलता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस सफलता से कृत्रिम गर्भाधान के उपचार को बेहतर करने में मदद मिलेगी। यह प्रजनन संबंधी दवा के क्षेत्र में प्रगति में भी सहायक होगा। लेकिन लैब में विकसित मानव भ्रूण मॉडल के सख्त नियमन की जरूरत भी है। वास्तव में इस संवेदनशील मुद्दे पर व्यापक बहस की जरूरत है।

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लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।

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