लीलावती नगर व प्रभुनगर बस्ती को सुविधांए भुराण पंचायत दे रही, अनुदान पिल्लूखेड़ा को मिल रहा
रामकुमार तुसीर/निस
सफीदों, 27 मार्च
सफीदों उपमंडल के गांव भुराण की जमीन में बसी पिल्लूखेड़ा कस्बे की 2 आवासीय बस्तियों लीलावतीनगर व प्रभुनगर के लोगों को नागरिक सुविधाएं तो ग्राम पंचायत भुराण दे रही है, जबकि इस आबादी का लाभ पास के गांव पिल्लूखेड़ा को मिल रहा है। इन दोनों बस्तियों की आबादी गांव भुराण की मतदाता सूची में दर्ज है और इसी गांव के पंचायत चुनाव में हिस्सा लेती है, लेकिन उन्होंने परिवार पहचान पत्र में पता गांव पिल्लूखेड़ा दर्ज कराया हुआ है। इस तरह पिल्लूखेड़ा की आबादी में इन दोनों आवासीय बस्तियों की 2 हजार से अधिक की आबादी जुड़ने से पीआरआई समेत ग्रामीण विकास योजनाओं का बजट जो आबादी के आधार पर जारी होता है, वह पिल्लूखेड़ा को मिल रहा है औऱ भुराण इससे वंचित हो रहा है। इसका खमियाजा भुराण की ग्राम पंचायत भुगत रही है जिसकी जमीन में ये बस्तियां करीब 6 दशक से बसी हैं।
गांव भुराण के सरपंच जोगेंद्र भुरानिया ने कहा कि उनकी ग्राम पंचायत को विकास का मामूली अनुदान ही मिल रहा है। खोजबीन पर उन्हें पता चला कि उनके गांव की जमीन में बसी 2 आवासीय बस्तियां लीलावती नगर व प्रभुनगर की 2 हजार से अधिक की आबादी है, जिनमें उनकी ग्राम पंचायत गलियां पक्की करने व सफाई आदि की सुविधाएं दे रही है, लेकिन वहां के लोगों ने अपने परिवार पहचान पत्र में गांव पिल्लूखेड़ा का पता दिखाया हुआ है। उनकी जमीन में बसी दोनों बस्तियों की आबादी समेत भुराण गांव की कुल आबादी करीब 7 हजार होती है, लेकिन इन 2 बस्तियों के लोगों का पता पिल्लूखेड़ा होने के कारण भुराण की आबादी रिकॉर्ड में 4561 ही है। सरकार परिवार पहचान पत्र के आधार पर ही गावों को विकास के लिए अनुदान जारी करती है और इस तरह उनकी ग्राम पंचायत को सीधे तौर करीब 10 लाख का सालाना नुकसान हो रहा है। सरपंच ने बताया कि वह 3 दिन पहले एडीसी से मिले थे, जिनका कहना था कि वह बस्ती में शिविर लगवाएंगे और जो लोग पीपीपी को दुरुस्त कराना चाहेंगे करा लेंगे।
पिल्लूखेड़ा मंडी का राजस्व अस्तित्व नहीं
उपमंडल सफीदों की पिल्लूखेड़ा मंडी भले ही सरकार का खंड मुख्यालय है, लेकिन इसका अपना राजस्व अस्तित्व नहीं है। ये मंडी 3 गांवों भुराण, पिल्लूखेड़ा व अमरावली खेड़ा की जमीन में बसी है।
इधर, अचल संपत्ति की रजिस्ट्री न होने से लोग परेशान
पिल्लूखेड़ा कस्बे में अचल संपत्तियों की वसीकाओं के नायब तहसीलदार के कार्यालय में दर्ज न होने के कारण लोग परेशान हैं। हालात ये है कि कई-कई दशक पहले खरीदी जमीन पर लोग भवन बनाकर रह रहे हैं, लेकिन ये मौजूदा राजस्व रिकॉर्ड में उनके नाम पर दर्ज ही नहीं। इन बस्तियों की अचल संपत्ति की रजिस्ट्री न किए जाने का मामला हाल ही में सफीदों के भाजपा विधायक रामकुमार गौतम के सामने तब उठा था, जब वह मंडी में एक कार्यक्रम में थे। उपतहसील में पिछले 6 महीने से तैनात नायब तहसीलदार रणवीर सिंह ने आज बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि किस बस्ती की अचल संपत्ति की रजिस्टरी नहीं हो रही और क्यों नहीं हो रही। उन्होंने कहा कि वह संबंधित डाटा ऑपरेटर या पटवारी से बात करके कारण व स्थिति बता सकते हैं, लेकिन उनमें से कोई भी आज कार्यालय में उपलब्ध नहीं है।