जुझारू जज्बे से तलवार की रानी बनी भवानी
नरेंद्र कुमार
करीब दो साल पहले वह ओलंपिक में पदक नहीं ला पाई थीं। इस बार भी फाइनल मुकाबले तक जाते-जाते अटक गयीं। लेकिन इस युवती ने देश का दिल जीत लिया। दिल क्यों न जीते, आखिर इतिहास जो रचा है। तलवारबाजी में। प्रतियोगिता हुई चीन में। इनका नाम है भवानी देवी। पूरा नाम चडलावदा आनंद सुंदरारमन भवानी देवी है। तलवारबाज भवानी देवी पिछले दिनों चीन के वुक्सी में कांस्य पदक जीतकर एशियाई फेंसिंग चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय फेंसर बनीं। उन्होंने सेमीफाइनल में हार के बावजूद कांस्य पदक जीता। यह इस प्रतियोगिता में भारत का अब तक का पहला पदक है। सेमीफाइनल में भवानी को उज्बेकिस्तान की जेनाब डेयिबेकोवा के खिलाफ कड़े मुकाबले में 14-15 से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में भारत के लिए पहला पदक सुनिश्चित किया।
भवानी ने क्वार्टर फाइनल में गत विश्व चैंपियन जापान की मिसाकी एमुरा को 15-10 से हराकर उलटफेर किया था। मिसाकी के खिलाफ यह भवानी की पहली जीत थी। इससे पहले उन्होंने जापान की खिलाड़ी के खिलाफ अपने सभी मुकाबले गंवाए थे। भवानी को राउंड ऑफ 64 में बाई मिली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारतीय खिलाड़ी ने प्री-क्वार्टर फाइनल में उलटफेर करते हुए तीसरी वरीयता प्राप्त ओजाकी सेरी को 15-11 से हराया।
इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए मेडल न ला पाने के बाद देशवासियों से भवानी ने माफी मांगी। उनकी माफी और उनके अद्भुत खेल ने लोगों का दिल जीत लिया। भारत की बेटी को पूरे देश ने सपोर्ट किया। उसी सपोर्ट और भवानी की मेहनत का प्रतिफल है कि आज वह चीन में शान से तलवार लहराकर आई हैं।
भवानी का जन्म 27 अगस्त, 1993 को चेन्नई में हुआ। उनके पिता का नाम सी आनंद सुंदरारमन है। वे एक मंदिर में पुजारी हैं। उनकी माता का नाम सीए रमाणी है। भवानी पांच भाई-बहन हैं। वह सबसे छोटी हैं। उन्होंने अपने गृह नगर से शुरुआती पढ़ाई की। उन्होंने मुरुगा धनुष्कोडी गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं और सेंट जोसेफ इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री हासिल की। उन्होंने वर्ष 2004 में अपने खेल करिअर की शुरुआत की। जब इस खेल में आईं तो उनके कोच ने उन्हें बताया कि यह काफी महंगा खेल है। लेकिन उन्होंने इस बात की चिंता नहीं की।
शुरुआत में भवानी के लिए तलवारबाजी का साजो-सामान खरीदना काफी मुश्किल हो गया। उन्होंने पहले बांस की स्टिक से अभ्यास शुरू किया। बाद में धीरे-धीरे तलवारबाजी का साजो-सामान खरीदा। दसवीं पास करने के बाद वे केरल के थालास्सेरी में भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र में चली गईं। 14 साल की उम्र में वह तुर्की में अपने पहले अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में दिखाई दीं, जहां उन्हें तीन मिनट देर से आने के लिए ब्लैक कार्ड मिला। वर्ष 2009 में भवानी देवी ने मलेशिया में कांस्य पदक की जीत के साथ अपने अंतर्राष्ट्रीय खेल करिअर की शुरुआत की। इसके बाद, वर्ष 2010 में फिलीपींस में एशियन फेंसिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और कांस्य पदक जीत कर देश का मान बढ़ाया। इस दौरान न उनकी मेहनत रुकी और न ही पदक जीतने का सिलसिला। उनकी कामयाबी का दौर जारी रहा।
वर्ष 2012 में जर्सी कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में उन्होंने रजत और कांस्य पदक जीते। उन्होंने कई बार हार का भी सामना किया। लेकिन कहते हैं ना कि योद्धा कभी हार नहीं मानते। भवानी ने भी नहीं मानी। वर्ष 2014 में फिलीपींस में अंडर 23 वर्ग में एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीत कर ऐसा करने वाली वे पहली भारतीय महिला बनीं। उनकी इस उपलब्धि पर तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता भी प्रभावित हुईं। उन्होंने भवानी को वित्तीय सहायता के रूप में अमेरिका में प्रशिक्षण के लिए तीन लाख रुपये देकर सम्मानित किया। वर्ष 2015 में मंगाेलिया में अंडर-23 एशियन चैंपियनशिप और 2015 में फ्लेमिश ओपन जीता।
वर्ष 2015 में वे राहुल द्रविड़ एथलीट मेंटरशिप प्रोग्राम के लिए ‘गो स्पोर्ट्स फाउंडेशन’ के लिए चुनी गईं। भवानी देवी ने जर्सी में हुई 2012 कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप और 2014 में इटली में हुए टस्कनी कप में स्वर्ण पदक जीते। वह रेकजाविक में आयोजित वाइकिंग कप 2016 आईसलैंडिक इंटरनेशनल सेबर टूर्नामेंट में पांचवें स्थान पर रहीं। उन्होंने वर्ष 2018 में कैनबेरा में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने अजरबैजान की बश्ता अन्ना से हारने के बाद बेल्जियम के गेन्ट में 2019 टूरनोई सैटेलाइट फेंसिंग प्रतियोगिता में रजत पदक जीता।
वर्ष 2021 में उन्होंने टोक्यो आलंपिक में हिस्सा लिया, लेकिन देश को कोई पदक नहीं दिला पाईं। विदेश में ट्रेनिंग पर जाने के लिए उन्हें स्पॉन्सर नहीं मिले। हालत यह हुई कि ओलंपिक की तैयारी के लिए उनके पिता को उधार लेना पड़ा। मां को अपने गहने गिरवी रखने पड़े। वर्ष 2022 में लंदन में आयोजित कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में वे फिर सोने से चमकी और अव्वल रहीं। देश के लिए ओलंपिक खेलने वाली पहली तलवारबाज (महिला-पुरुष में) से अभी कई विश्व स्पर्धाएं जीतने की उम्मीदें हैं।