चीन से चौकन्ना
हाल में संपन्न सैन्य वार्ता के दौरान भारत ने चीन से कड़ी आपत्ति जतायी है कि उसके हवाई जहाजों द्वारा भारतीय हवाई क्षेत्र के उल्लंघन का दोनों देशों में विश्वास निर्माण के उपायों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। निस्संदेह, इससे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव शांत करने के प्रयासों में प्रतिकूल असर पड़ेगा। हाल के दिनों में पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चीनी गतिविधियों में वृद्धि हुई है। चीनी लड़ाकू विमान व ड्रोन एलएसी पर दस किलोमीटर के नो फ्लाई जोन समझौते का उल्लंघन करके उड़ान भरते रहे हैं। जिससे चीन के नापाक मंसूबों का ही बोध होता है। जिससे पता चलता है कि चीन विभिन्न विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का इच्छुक नहीं है। चीन की दलील है कि यह उसका सामान्य वायु रक्षा अभ्यास था। लेकिन अतीत की घटनाओं से सबक लेते हुए भारत ने इसे गंभीरता से लिया है। इसके जवाब में भारतीय वायुसेना ने अपने कई उन्नत लड़ाकू विमानों को संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में तैनात किया है। चीन से मिलने वाली किसी भी चुनौती के मुकाबले की तैयारी की जा रही है और युद्धक उड़ानें तेज कर दी गई हैं। इतना ही नहीं, इसे गंभीर चुनौती मानते हुए भारतीय सेना ने लद्दाख के संवेदनशील इलाकों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निगरानी प्रणाली तैनात करने का निश्चय किया है। जाहिर बात है कि शी जिनपिंग अपनी घरेलू चुनौतियों से निपटने और आक्रोशित जनमानस का ध्यान भटकाने के लिये राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़का रहे हैं। वे विवादों को हवा देकर एलएसी की स्थिति को कथित नई सामान्य स्थिति बनाने का असफल प्रयास कर रहे हैं। निस्संदेह, सीमा पर गतिरोध पैदा करके चीन भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कुत्सित चाल चल रहा है ताकि अपनी मनमानी नीति भारत पर थोप सके। लेकिन भारत के करारे जवाब के चलते और सीमा पर हर चुनौती के मुकाबले के लिये तैयार रहने से चीन के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आता है। इसके बावजूद चीन दबाव बनाने की कोशिश में लगा रहता है।
दरअसल, पिछले दिनों अमेरिका ने चीन की कथित ‘वन चाइना पॉलिसी’ को दरकिनार करते हुए अमेरिकी संसद के निचले सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान जाने की योजना को मूर्त रूप दिया। इस सफल यात्रा के चलते चीन बौखलाया हुआ है। उसके बाद चीन ने ताइवान के चारों तरफ घेराबंदी करके आक्रामक सैन्य अभ्यास किया है। लेकिन अमेरिका के इस कदम से चीन के जनमानस में शी जिनपिंग की साख कमजोर हुई है। जिसके चलते पीएलए एलएसी पर आक्रामकता दिखाकर देश की जनता को बरगलाने का प्रयास कर रही है। लेकिन भारत ने समय रहते लद्दाख सीमा पर लड़ाकू विमान, राडार व मिसाइलों की तैनाती करके चीन के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अमेरिका द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिये जो क्वाड संगठन बनाया गया है, उसमें भारत की सक्रियता भी चीन को फूटी आंख नहीं सुहाती। दरअसल, क्वाड के अंतर्गत अमेरिका,आस्ट्रेलिया, जापान व भारत हिंद प्रशांत महासागर की अंतर्राष्ट्रीय सीमा में आवागमन को चीनी वर्चस्व से मुक्त रखने को प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद भारत चीन के नापाक मंसूबों के प्रति खासा सतर्क है। साथ ही सीमा पार चीन के इलाके में होने वाली असामान्य गतिविधियों पर बराबर नजर रखे हुए है। आज भारत कुछ भी असामान्य होने पर जवाब देने की स्थिति में आ गया है। निस्संदेह, भारत के दृढ़ संकल्पों से ही चीन के निरंकुश व्यवहार पर लगाम लगेगी। चीन को याद रखना चाहिए कि 1962 के हालात से भारत बहुत आगे निकल चुका है। इसके बावजूद चुनौती का मुकाबला करने के लिये भारत को दीर्घकालीन रणनीति पर काम करना होगा। साथ ही कोशिश करनी होगी कि आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे चीन के पक्ष में दोनों देशों का व्यापार संतुलन न झुके। कुछ चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाकर भारत ने कुछ कदम जरूर उठाये हैं। लेकिन भारत को चीनी उत्पादों के विकल्प तलाशने चाहिए। इसके साथ ही सीमा पर बुनियादी ढांचे के विस्तार तथा तकनीकी उन्नयन से हम इस चुनौती का मुकाबला बेहतर ढंग से कर सकते हैं।