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कायदे से फिट रहने के फायदे

12:06 PM Sep 01, 2021 IST

सौरभ जैन

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युवाओं के पास रोजगार से पहले फिटनेस का होना जरूरी है। फिटनेस होगी, तभी शारीरिक क्षमता बेरोजगारी के आनंद की मानसिक अनुभूति को प्राप्त कर सकेगी। फिट इंडिया एप इसी बात को ध्यान में रखते हुए लॉन्च किया गया है। नौकरी छूटने, नौकरी न मिलने, भर्ती परीक्षा न होने, परीक्षा उपरांत परिणाम जारी न होने, परिणाम जारी होने के बाद भर्ती न होने जैसे तनाव का सामना अभी युवा पीढ़ी कर रही है। सरकार की मंशा बहुत पवित्र है, वह इस स्थिति का सामना करने के लिए युवाओं को मजबूत बनाना चाहती है। एप लॉन्च करने के बहाने मानो जैसे वह कह रही हो, बेटा कायदे में रहोगे तो बहुत फायदे में रहोगे।

हमारे धर्मशास्त्रों की रचना के समय रोजगार मुद्दों की श्रेणी में शामिल नहीं था। दुर्भाग्य है कि चुनावी घोषणा पत्रों ने रोजगार को मुद्दा बना दिया। अब घोषणा पत्र की बातें तो हवा-हवाई होती है, चुनावों में होती है और चुनावों के बाद हवा हो जाती है। वैसे भी आदर्श घोषणा पत्र तो वही है जो हर चुनाव में एक-सा रहे, चुनाव का वर्ष बदले मगर घोषणा पत्र न बदले।

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हमारे यहां कर्म में बात जब धर्म की आती है, तब रोजगार को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। पुरातन काल में जवानी कर्म और बुढ़ापा धर्म के लिए रिजर्व रहता था। अब जवानी भीड़ में घुसकर मारने के काम आ रही है। फ्री का डाटा युवाओं को सुकरात बनाने के लिए पर्याप्त है। और चाहिए भी क्या? युवा प्रात: 11 बजे उठकर 11:05 पर देश की जीडीपी पर स्टेटस अपलोड कर ही देते हैं। वे यदि अपनी ऊर्जा कार्य में लगाएंगे, तो इंस्टाग्राम रील्स पर वीडियो कौन बनाएगा? सरकार के लिए तो यह सोचना भी जरूरी है कि इंस्टाग्राम न हुआ और रोजगार की मांग के लिए कहीं आंदोलन हो गया तो क्या होगा? युवाओं को भटकाव से रोकने के लिए इंस्टाग्राम का होना जरूरी है।

वैसे किसी महान दार्शनिक ने कहा है, जीने के हैं चार दिन, बाकी हैं बेकार दिन, अब जब जीने के सिर्फ चार दिन ही हैं, तो नौजवान उन्हें कार्य में कैसे लगा सकते हैं? एक दिन फेसबुक, दूसरा वाट्सएप, तीसरा इंस्टाग्राम और चौथा मन की बात सुनने में निकल जाता है। इसके बावजूद इन प्रामाणित विरोधियों को युवाओं के रोजगार की पड़ी है। अपनी तो जैसे-तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे, कट जाएगी सरीखे सिद्धांतों पर चलने वाली पीढ़ी को भला क्या चाहिए? आज के समय में काम न करना भी एक काम है। ‘हे मालिक तेरे बंदे हम, कैसे हों हमारे करम’ अब जब बेरोजगारों को खुद ही नहीं पता कि उनके करम कैसे हों, तो टकराव की घटनाएं तो होंगी ही! नीति बनाने वाले तो ऋणं कृत्वा, घृतं पिबेत‍् के सिद्धांत पर चल रहे हैं। रुपया वायरल से ग्रसित है और जीडीपी पस्त है। अर्थव्यवस्था भले अनफिट हो, हमें तो इंडिया को फिट बनाना है।

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