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बासमती और सेमी बासमती उत्पादकों पर पड़ रही दोहरी मार

10:31 AM Oct 16, 2024 IST

जींद, 15 अक्तूबर (हप्र)
गैर पीआर किस्म के धान उत्पादक किसानों पर इस बार दोहरी मार पड़ रही है। वहीं उन्हें मंडी में धान का भाव पिछले साल से कम मिल रहा है। दूसरे, इस बार धान की पैदावार भी पिछले साल के मुकाबले कम निकल रही है। इसका असर अगले साल जमीनों के ठेके पर भी पड़ेगा। साल 2024 जींद जिले में धान उत्पादक किसानों के लिए अच्छा नहीं रहा है। जब किसान धान की रोपाई के लिए तैयारी कर रहे थे, तब मानसून पूरी तरह धोखा दे गई। 26 जून के बाद पूरे एक महीने तक जींद जिले में आसमान से एक बूंद भी नहीं टपकी। महीने बाद बारिश हुई भी तो बहुत कम। इसका नतीजा यह रहा कि जींद जिले में धान के लगभग 1.50 लाख हेक्टेयर रकबे में से मुश्किल से 1.20 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हो पाई। बिना बारिश के खेतों में धान की रोपाई करने पर किसानों को बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ा। इस साल बासमती और सेमी बासमती धान के भाव और पैदावार दोनों कम रहने का असर अगले साल खेती की जमीनों के ठेके पर भी पड़ेगा। इस साल जमीनों के ठेके अब तक के सर्वाधिक गए थे। जींद जिले की राइस बेल्ट के कुछ गांवों में तो 80 हजार रुपए प्रति एकड़ तक जमीनों के ठेके गए थे। अगले साल इसमें कमी आने की आशंका अभी से जताई जाने लगी है।

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प्रति एकड़ 12 से 15 हजार का नुकसान

गैर पीआर किस्म की धान, जिसे बासमती और सेमी बासमती कहा जाता है, की मंडियों में आवक शुरू हुई तो पैदावार कम निकल रही है। धान उत्पादक किसानों खरकरामजी गांव के श्यामलाल मलिक, भंबेवा के गुलाब सिंह, जलालपुर कलां के वजीर सिंह जागलान, इक्कस के जितेंद्र का कहना है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल धान की 1509 और 1847 किस्म की पैदावार प्रति एकड़ लगभग 4 क्विंटल कम हो रही है। इससे प्रति एकड़ लगभग 12 से 15 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। कम पैदावार के अलावा इस साल मंडियों में धान के भाव भी पिछले साल के मुकाबले कम मिल रहे हैं। इससे धान उत्पादक किसानों के लिए धान की खेती इस साल घाटे का सौदा बन गई है। धान उत्पादक किसानों की उत्पादन लागत पिछले साल के मुकाबले इस साल बढ़ गई है, जबकि धान का भाव और पैदावार कम हो गई है।

मौसम की मार से पैदावार हुई कम : डॉ. मलिक

पिछले साल के मुकाबले इस साल बासमती और सेमी बासमती धान की पैदावार कम होने को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र जींद के पूर्व प्रभारी डॉ. यशपाल मलिक का कहना है कि मानसून के दौरान बहुत कम बारिश होने और बाद में अक्तूबर तक उमस भरी भीषण गर्मी के कारण पैदावार कम हो रही है। धान को जिस तरह के मौसम की दरकार होती है, वैसा अनुकूल मौसम इस बार जींद जिले में नहीं हुआ। इसी कारण धान की पैदावार कम निकल रही है। इसका अंदेशा पहले ही हो गया था।

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