बरवाला दूसरी बार नहीं दिया किसी को मौका
हिसार, 11 अक्तूबर (हप्र)
हिसार जिले का बरवाला हलका ऐसा हलका है जो एक ही व्यक्ति पर ज्यादा विश्वास नहीं करता। यही कारण है कि इस हलके में हरियाणा के गठन के बाद अब तक हुए कुल 14 विस चुनावों में दूसरी बार कोई विधायक नहीं बना और इस बार भी इस हलके ने अपना यह रिवाज बनाए रखा।
अब तक हुए 14 विस चुनावों में से पहले तीन चुनावों में यह सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित थी और पिछले 11 चुनावों में यह सामान्य वर्ग की सीट रही। यहां की जनता ने किसी को भी दोबारा विधायक नहीं बनाया चाहे यह आरक्षित रही हो या सामान्य सीट रही हो। सामान्य सीट पर जो 11 लोग विधायक बने थे, उनमें से सबसे ज्यादा सात विधायक जाट समुदाय से बने हैं और चार विधायक अन्य जातियों से बने हैं। अगर पहले तीन विधायकों की बात करें तो यहां से वर्ष 1967 में कांग्रेस से भिवानी के सुबेदार प्रभु सिंह, वर्ष 1968 में कांग्रेस से गवर्धन दास और वर्ष 1972 में इंडियन नेशनल कांग्रेस आर्गेनाइजेशन (एनसीओ) से पीर चंद विधायक बने थे। इसके बाद जब यह सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हो गई तो सबसे पहले वर्ष 1977 में पिछड़ा वर्ग के नेता जनता पार्टी के जयनारायण वर्मा विधायक बने और इसके बाद लगातार छह बार जाट प्रत्याशी ही यहां से विधायक बने। इनमें वर्ष 1982 में कांग्रेस के इंद्र सिंह नैन, वर्ष 1987 में लोकदल के सुरेंद्र, वर्ष 1991 में कांग्रेस के जोगेंद्र सिंह जोग, वर्ष 1996 में निर्दलीय रेलूराम पनिया, वर्ष 2000 में कांग्रेस के जयप्रकाश, वर्ष 2005 में कांग्रेस के ही रणधीर धीरा विधायक बने। इसके बाद वर्ष 2009 के चुनाव में पिछड़ा वर्ग के नेता रामनिवास घोड़ेला और 2014 के चुनाव में इनेलो के वेद नारंग तथा 2019 के चुनाव में जजपा के जोगीराम सिहाग विधायक बने। इस बार यहां से भाजपा के रणबीर गंगवा विधायक बने हैं। रणबीर गंगवा इससे पूर्व नलवा सीट से दो बार विधायक बन चुके हैं, लेकिन बरवाला हलके से उनका यह पहला चुनाव था। दलों की बात करें तो यहां पर मौजूदा सत्ताधारी दल भाजपा ने इस चुनाव में पहली बार खाता खोला है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सबसे ज्यादा सात बार विधायक बने जबकि लोकदल व इनेलो के यहां तीन प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। जननायक जनता पार्टी, जनता पार्टी और एनसीओ तथा निर्दलीय प्रत्याशी यहां एक-एक बार विधायक बन चुके हैं। जातिगत समीकरणों की बात करें तो बरवाला में 25 से 28 प्रतिशत तक जाट और इतनी ही संख्या में एसवी वर्ग के वोट हैं जबकि अन्य प्रमुख जातियों में यहां कुम्हार, सैनी, पंजाबी, ब्राह्मण, बनिया, खाती हैं।
मोहम्मद गौरी के जंग का मैदान है बरवाला
राजा बाल के बसाए गए शहर बरवाला की पहचान यूं तो 12वीं शताब्दी में भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव रखने वाले मोहम्मद गौरी के हमले के गवाह के तौर पर होती है, जहां गौरी के दो सेनापतियों सैयद निम्मत उल्ला और उसका भाई मीर हसन ने यहां लड़ाई लड़ी, जिसमें निम्मत उल्ला मारा गया और हांसी में दफनाया गया तथा मीर हसन ने बरवाला में मुगल साम्राज्य स्थापित कर दिया। आजादी से पहले बरवाला को अंग्रेजों ने वर्ष 1852 से 1891 तक तहसील का दर्जा दिया।