For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

लोकदल का गढ़ रहा बादली, इस बार भी होगा रोचक मुकाबला

08:51 AM Sep 04, 2024 IST
लोकदल का गढ़ रहा बादली  इस बार भी होगा रोचक मुकाबला
Advertisement

प्रथम शर्मा/हप्र
झज्जर, 3 सितंबर
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटा झज्जर जिले का बादली हलका एक जमाने में चौ़ देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला का गढ़ रहा। 2005 के बाद से इस हलके के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए। रोहतक संसदीय सीट से लगातार तीन बार चौ़ देवीलाल को शिकस्त देने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 2005 में जैसे ही मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की बागड़ोर संभाली, यह इलाका उनका मुरीद हो गया। रोहतक संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बादली हलके को भी हुड्डा के प्रभाव का इलाका माना जाता है।
बेशक, 2014 में भाजपा के ओमप्रकाश धनखड़ ने हुड्डा के ‘अभेद किले’ के इस एक बड़े हिस्से में सेंध लगाने का काम किया। बादली से विधायक बने ओमप्रकाश धनखड़ मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में कृषि, विकास एवं पंचायत सहित कई बड़े मंत्रालयों के हेवीवेट मंत्री रहे। हालांकि 2019 में कांग्रेस के कुलदीप वत्स के हाथों वे शिकस्त खा बैठे। इस बार के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस टिकट पर कुलदीप वत्स का चुनावी रण में आना तय है। भाजपा से ओमप्रकाश धनखड़ के ही मैदान में आने की प्रबल संभावना है।
साफ है कि बादली की हॉट सीट पर इस बार भी रोचक मुकाबला होगा। यह ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जिसमें लगातार पांच बार जीत का रिकार्ड आज तक भी स्व़ चौ़ धीरपाल सिंह के नाम दर्ज है। वे चौटाला सरकार में हेवीवेट मंत्री भी रहे। धीरपाल सिंह के रिकार्ड को आज तक कोई तोड़ नहीं पाया। लगातार पांच बार विधायक बनने के उनके रिकार्ड को ध्वस्त कर पाना इतना आसान भी नहीं है। बादली हलके के सियासी मिजाज भी अलग ही तरह के हैं।
जब पूरे प्रदेश में भाजपा का माहौल था तो उस 2019 में कैबिनेट मंत्री रहते हुए ओपी धनखड़ को भी दोबारा विधानसभा नहीं पहुंचने दिया। बादली की पहचान कभी देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय चौ. देवीलाल के गढ़ के रूप में थी। 1977 में बादली सीट अस्तित्व में आई और पहली बार हरद्वारी लाल यहां से विधायक बने। 1978 में हुए उपचुनाव में उदय सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद 1982 से लेकर 2000 तक लगातार पांच चुनावों में धीरपाल सिंह विजयी रहे। राजनीतिक स्तर पर हालात बदलने के साथ ही उन्होंने अपने सफर में इनेलो का दामन छोड़ते हुए कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया था, लेकिन उसके बाद यहां से कोई चुनाव नहीं लड़ा। वर्ष 2014 में हुई उनकी मौत के बाद पत्नी ने दोबारा इनेलो का दामन थाम लिया और वे पिछली दफा चुनावीं मैदान में भी उतरीं। पहली दफा चुनाव लड़ने वाली पत्नी सुमित्रा कुछ खास प्रदर्शन तो नहीं कर पाईं, लेकिन अपने पति को मिली 5 जीत का अहसास जरूर साथ रहा। मौजूदा दौर में भी कोई बात होती है तो धीरपाल का नाम क्षेत्र में बड़े सम्मान से लिया जाता है।

Advertisement

चार बार मनफूल सिंह को दी शिकस्त

पांच दफा बादली से विधायक बनने वाले धीरपाल सिंह लगातार चार चुनाव में मनफूल सिंह को शिकस्त देकर चंडीगढ़ की दहलीज तक पहुंचे। अच्छे मार्जन के साथ जीत हासिल करने वाले धीरपाल ने आखिरी चुनाव में नरेश कुमार को पराजित किया। 2004 के चुनाव में सक्रिय राजनीति से अपने कदम वापिस खींचने वाले धीरपाल का जुड़ाव कांग्रेस से तो बना। लेकिन कोई चुनाव नहीं लड़ा। 2000 में धीरपाल से चुनाव हारने वाले नरेश कुमार उनके मैदान से वापिस हटने के बाद लगातार दो दफा बादली से चुनाव जीतें। कहा जा सकता है कि बादली विस क्षेत्र में धीरपाल सिंह ने जब भी चुनाव लड़ा तो उन्हें जीत हासिल हुई है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement