अभिनय के साथ आवाज के भी शहंशाह
जयनारायण प्रसाद
हिंदुस्तान में सिनेमा का इतिहास पलट देने वाली चंद बेहतरीन फिल्मों में एक नाम ‘भुवन सोम’ (1969) का भी है, जिसका निर्देशन मृणाल सेन ने किया था। भारत में ‘समानांतर सिनेमा आंदोलन’ की शुरुआत इसी फिल्म से मानी जाती है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने सिर्फ अपनी आवाज़ (नरेशन) दी थी। अमिताभ इस फिल्म ‘भुवन सोम’ के मुख्य किरदार भुवन सोम (यानी उत्पल दत्त) की कहानी दर्शकों को सुनाते चलते हैं। इसके लिए बतौर मेहनताना निर्देशक मृणाल सेन ने अमिताभ को सिर्फ तीन सौ रुपए का चेक दिया था। ‘भुवन सोम’ के टाइटल कार्ड में सिर्फ ‘अमिताभ’ लिखा गया था। बता दें कि अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्तूबर, 1942 को हुआ। अब वे 82वें साल में प्रवेश करेंगे।
‘शतरंज के खिलाड़ी’ में भी अमिताभ का स्वर
बहुत कम लोगों को मालूम है अमिताभ बच्चन ने इसी तरह की आवाज़ (नरेशन) सत्यजित राय की हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) में भी दी थीं। दोनों हिंदी फिल्मों - ‘भुवन सोम’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में अमिताभ बच्चन की सिर्फ आवाज़ का इस्तेमाल है। दोनों की किसी भी फिल्म में अमिताभ बच्चन ने अभिनय नहीं किया है। अमिताभ की ‘बैरीटोन वॉयस’ की वजह से दोनों निर्देशकों ने उन्हें पसंद किया था। ये दोनों फिल्में अमिताभ बच्चन की आवाज़ की वजह से भी जानी जाती हैं। ‘शतरंज के खिलाड़ी’ 3 अक्तूबर, 1977 को रिलीज हुई थीं। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था और निर्देशक सत्यजित राय को फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का अवार्ड।
‘मैं ज्यादा पैसे नहीं दे सकता’
निर्देशक मृणाल सेन ने एकदम शुरू में अमिताभ से कहा था - ‘भुवन सोम’ कम बजट की फिल्म है। मैं ज्यादा पैसे नहीं दे सकता।’ अमिताभ का चयन भी एकदम आखिर में हुआ था। ‘भुवन सोम’ की शूटिंग पूरी हो चुकी थी। मृणाल सेन बंबई गए थे। वहां ख़्वाजा अहमद अब्बास से जब मुलाकात हुई, तो नरेशन की चर्चा चली। तभी अब्बास ने कहा - एक लड़का है अमिताभ। वह कलकत्ता में रहा है, हल्की बांग्ला भी आती है। चाहें, तो उसे ले सकते हैं। उसकी आवाज़ भी थोड़ी भारी है। उसके बाद अमिताभ को निर्देशक मृणाल सेन के सामने बुलाया गया और नरेशन के लिए चुना गया।
‘भुवन सोम’ को राष्ट्रपति का पुरस्कार
12 मई, 1969 को जब ‘भुवन सोम’ रिलीज हुई, तो लोग चकित रह गए थे। ‘भुवन सोम’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला और ‘भुवन सोम’ ने हिंदुस्तान में ‘समानांतर सिनेमा आंदोलन’ का इतिहास रच दिया। उसके बाद भारत में समानांतर फिल्में बननी लगीं। उसके कुछ सालों बाद श्याम बेनेगल की ‘अंकुर’ और एमएस सथ्यू की ‘गर्म हवा’ आईं।
कहानी भी थोड़ी अलग है
मृणाल सेन की फिल्म ‘भुवन सोम’ की कथा भी थोड़ी अलग है जो एक सख्त और गुस्सैल रेलवे ब्यूरोक्रेट ‘भुवन सोम’ (अभिनेता उत्पल दत्त) के इर्द-गिर्द घूमती है। वह छुट्टियां मनाने के लिए गुजरात के एक गांव में जाता है। शिकार करने के दौरान अफसर की मुलाकात एक भोली-भाली लड़की गौरी (अभिनेत्री सुहासिनी मुले) से होती है तो उसके जीवन और व्यवहार में बदलाव आने लगता है। जब छुट्टियां बिताकर वह आफिस लौटता है तो एकदम बदला हुआ होता है। बांग्ला के एक मशहूर लेखक थे ‘बनफूल’ जिनका पूरा नाम था बलाईचंद्र मुखोपाध्याय ‘बनफूल’। उन्होंने ही ‘भुवन सोम’ की कहानी लिखी थीं।
‘भुवन सोम’ में ज्यादातर अभिनेता नए थे
‘भुवन सोम’ निर्देशक मृणाल सेन की नौवीं मूवी थीं और हिंदी जुबान में उनकी पहली। इस फिल्म में अभिनेत्री सुहासिनी मुले, अभिनेता साधु मेहर और कैमरामैन केके महाजन ने पहली बार काम किया था। अभिनेता उत्पल दत्त अनुभवी जरूर थे। उन्होंने रंगमंच करते हुए सिनेमा में पांव रखा था। ‘भुवन सोम’ में विजय राघव राव का संगीत है।
भावनगर में हुई थीं शूटिंग
‘भुवन सोम’ को प्रोड्यूस किया था नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन ने। इसकी शूटिंग हुई थीं गुजरात के सौराष्ट्र स्थित भावनगर गांव में। मरुभूमि में इस फिल्म को फिल्माने के लिए मृणाल सेन को काफी मशक्कत करनी पड़ी थीं। आखिर में नरेशन का काम हुआ था। अमिताभ भी एकदम आखिर में मिले थे मृणाल सेन को। इसी समय ख़्वाजा अहमद अब्बास की ‘सात हिंदुस्तानी’ (1969) भी बन रही थीं। ख़्वाजा अहमद अब्बास की वजह से मृणाल सेन को अमिताभ मिल पाए।
जया को बतौर एक्टर लेना चाहते थे सेन
मृणाल सेन ने जब ‘भुवन सोम’ बनाना तय किया, तो अभिनेत्री के तौर पर जया भादुड़ी का नाम उन्होंने चुन रखा था। उन दिनों जया भादुड़ी पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान में पढ़ रही थीं। शूटिंग के लिए जया भादुड़ी को छुट्टी नहीं मिली। आखिर में सुहासिनी मुले को चुना गया।