और घरेलू गदर के सभी पार्ट
राकेश सोहम्
सुना है ‘ग़दर टू’ ने भारी ग़दर मचा रखी है, लेकिन हमें इससे क्या। हमारी जिंदगी में महंगाई ने क्या कम ग़दर मचा रखी है जो हम बाहर देखने जायें? घरों में रोज ही ग़दर का माहौल बना रहता है। चलिए दिखाते हैं घरेलू ग़दर के दोनों पार्ट और आगामी पार्ट भी।
ग़दर : कल विमला के घर गदर देखने को मिली। पति रोटी के साथ टमाटर के लिए अड़ गया। वह बोली, ‘काम का न काज का, दुश्मन अनाज का। कुछ काम-धाम करेगा तो आटे-दाल का भाव पता चलेगा। यहां रोटी के लाले पड़े हैं, तुझे महंगे टमाटर चाहिए। शरम नहीं आती।’ पति तुनककर बोला, ‘ए! मुझे सब पता है। पार्टी का काम करता हूं। पाकिस्तान में आटा महंगा हुआ है, हमारे यहां नहीं। खुद कमाने लगी तो टमाटर का रौब दिखाती है।’ विमला बिफर पड़ी, ‘और तू बड़ा समझदार है। रोज़-रोज़ दारू कहां से पीकर आता है बोल?’ ‘तेरे पैसे की नहीं पीता। पार्टी का काम करता हूं तब इनाम में मिलती है, समझी।’ वह हिलते-डुलते खुद ही हैंड पंप की भांति उखड़ गया और विमला पर लात-घूसों से ऐसी गदर मचाई कि मोहल्ला इकट्ठा हो गया।
ग़दर टू : आज कमला के घर में भी खूब ग़दर हुआ। उसका पति झूमते हुए गैस सिलेंडर भरवा कर लौटा। वह बोली, ‘गैस सस्ती हो गई है। बाकी के बचे पैसे कहां गए?’ बस क्या था! उसके पति ने गुस्से में पुरानी साइकिल का टूटा हुआ पहिया उठा लिया। बहस बढ़ गई, दारू चढ़ गई और ग़दर मच गई। कमला अंगूठा छाप थी। शिक्षा अभियान की बदौलत, थोड़ा जानने-समझने लगी है। दस्तखत करने लगी है। उसी का परिणाम भुगत रही है, बेचारी।
ग़दर थ्री : कमला जिस घर में खाना बनाने का काम करती है उसी घर में झाड़ू, पोछा और बर्तन धोने का काम विमला करती है। छुट्टी का दिन है। कमला रसोई में व्यस्त है। विमला झाड़ू लगा रही है। साहब दो घंटे से टीवी के सामने जमे हुए हैं। घर की मैडम का दिमाग खराब है। वह सोफे से धूल हटाते हुए झल्लाई, ‘अब चंद्रयान में ही घुसे रहोगे। इधर जिंदगी में चंद्र ग्रहण लगा हुआ है। जवान बेटा बेरोजगार घूम रहा है। उसकी चिंता करो?’ साहब भी थोड़ा तुनके, ‘तुम बेकार ही गुस्सा हो रही हो।’ मैडम ने ताना कसा, ‘हां तुम तो बस, चुनावी घोषणाओं में ही खुश होते रहो।’ साहब ने गुस्से में टीवी उठाकर पटक दिया और ग़दर शुरू हो गई।