मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

अमृत महोत्सव और उम्मीदें

12:51 PM Aug 30, 2021 IST

महज सपना
Advertisement

प्रधानमंत्री ने देश की आजादी के 75वें साल में प्रवेश को ‘अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाने का जो प्रारूप पेश किया है, वह राजनीतिक लक्ष्यों से प्रेरित है। इस समय लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं ही पूरी नहीं हो पा रही हैं। महंगाई, बेकारी, मंदी ने लोगों को परेशान कर रखा है। संसद में सांसद लोगों की अपेक्षाओं के अनुसार खरे नहीं उतर रहे हैं। सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग और एनआईए का दुरुपयोग कर रही है। विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव घोषणापत्रों को लागू नहीं करते। ऐसे में आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने की बात सपना मात्र लगती है।

शामलाल कौशल, रोहतक

Advertisement

अमृत की तृष्णा

देश की आज़ादी के 75वें साल में प्रवेश पर घोषित नवोन्मेषी कार्यक्रमों की शृंखला का उद्देश्य नये भारत के निर्माण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ तथा ‘सबका विश्वास, सबका प्रयास’ जैसे नारों से विकास का लाभ देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास है। लेकिन राजनीतिक विद्रूपताओं और तंत्र की काहिली के बीच फंसे ये लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं। लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से विधायिका को चलने नहीं दिया जा रहा। अमृत की तलाश में भारत का आमजन सात दशकों से इसी मृगमरीचिका में भटक रहा है। कैबिनेट के नये चेहरे इन नीतियों को कैसे क्रियान्वित कर पाएंगे?

हरदीप कालड़ा, शाहाबाद मारकंडा, कुरुक्षेत्र

ईमानदार बनें

शासन और प्रशासन अगर एकजुट होकर देश के हितों के लिए काम करें तो अमृत महोत्सव के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। प्रधानमंत्री का लालकिले से संबोधन इतिहास के गौरव और वर्तमान की चुनौतियों के मंच से उज्ज्वल भविष्य की ओर देखने की एक कोशिश है। हमें आजादी आसानी से नहीं मिली थी। हमें भी देश को मजबूत बनाने में अपना पूरा योगदान देना चाहिए। प्रधानमंत्री ने युवाओं का आह्वान करने के साथ ही कर्म के फल पर विश्वास जताया है। बिना कर्म स्वतंत्रता आदर्श नहीं बन सकती। इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम अपने काम में सौ फीसदी ईमानदारी बरतें।

दिव्येश चोवटिया, गुजरात

राष्ट्रभक्ति का ज्वार

आजादी का अमृत महोत्सव सरकार ने साबरमती आश्रम से शुरू कर लगातार 75 सप्ताह तक 75वीं वर्षगांठ 15 अगस्त, 2022 तक मनाने का निर्णय लिया है। यह महोत्सव देश के हर नागरिक को एकता, अखंडता और देशभक्ति से सराबोर करेगा। इसकी शुरुआत राष्ट्रगान गाने से हुई। इसके लिए एक वेबसाइट बनाई गयी है, जिस पर देश के नौजवानों, बच्चों और बुजुर्गों ने अपनी आवाज में राष्ट्रगान रिकॉर्ड कर स्वतंत्रता दिवस को एक नया आयाम दिया। इससे उनमें देश के लिए नवचेतना, कुछ कर गुजरने की इच्छा और सबसे बड़ी बात राष्ट्रगान के प्रति उनके अवचेतन मन में देश प्रेम की छाप अंकित हुई। यह भारत के उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है।

भगवान दास छारिया, इंदौर, मध्य प्रदेश

राष्ट्रीय यज्ञ

प्रधानमंत्री ने आजादी की यात्रा के अमृतकाल में प्रवेश पर योजनाओं की जो रूपरेखा और लक्ष्यों का खाका खींचा है, उसने इस दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को जाहिर किया है। साथ ही युवा शक्ति को अपने सामर्थ्य से इस राष्ट्रीय यज्ञ में आहुति देने का आह्वान भी किया। आजादी के बाद हमने संसदीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया। मगर आजाद भारत की जो परिकल्पना उभरती है, मौजूदा तस्वीर उस कसौटी पर खरी नहीं उतरती। सत्ता व्यवस्था पर काबिज लोगों को राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर देश हित में कार्य करना होगा। तभी स्वतंत्रता के वास्तविक सपने को पूरा किया जा सकता है।

पूनम कश्यप, बहादुरगढ़

साझे प्रयास जरूरी

प्रधानमंत्री ने अमृत महोत्सव कार्यक्रम के दौरान कहा कि स्वतंत्रता संग्राम, 75 पर विचार, 75 पर उपलब्धियां, 75 पर कार्य और संकल्प-ये स्तंभ देश को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री के ये स्तंभ तभी पूरे होंगे जब देश के सभी राजनेता, वे चाहे किसी भी राजनीतिक दल के हों, देश का हर नागरिक अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगा। लेकिन जब तक देश के हर गरीब को दो वक्त की रोटी, सिर ढकने के लिए छत और हर गरीब के बच्चे को आधुनिक और उचित शिक्षा का इंतजाम नहीं हो जाता, तब तक अमृत महोत्सव का लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

पुरस्कृत पत्र

कठोर यथार्थ

आजादी के 75वें साल पर अमृत महोत्सव का प्रारूप मात्र राजनीतिक संकल्पना है। वर्तमान में लोगों की मूलभूत आवश्यकतायें ही पूरी नहीं हो रही हैं, ऊपर से महंगाई, बेकारी, आर्थिक मंदी, लचर कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार से प्रत्येक नागरिक त्रस्त है। राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली जनता की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही है। धनी वर्ग और धनी हो रहा है तो वहीं मजदूर को रोटी का संकट है। आजादी के अमृत महोत्सव की परिकल्पना तभी सार्थक होगी जब प्रत्येक युवा के हाथों को काम मिलेगा। सभी को उच्च शिक्षा मिले और वे अपने सपने पूरे कर सकें। तभी आजादी के अमृत महोत्सव की सार्थकता सफल होगी।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

Advertisement
Tags :
उम्मीदेंमहोत्सव