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जीवन में मिली खुशी की नियामतों पर भी दें ध्यान

10:57 AM Sep 03, 2024 IST

हम सब अपने जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए निरंतर दौड़भाग करते हैं। इन्हें हासिल करना हम जीवन का मकसद ही मान बैठे हैं। लेकिन परिवार में आपसी सहयोग, पानी, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य जैसी नियामतों पर हमारा फोकस नहीं है। इनको सहेजने, बेहतर बनाने और प्राथमिकताओं में शामिल करने का संकल्प यानी सात वचन लें तो अपने साथ सबका जीवन सुखमय हो सकेगा।

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सरस्वती रमेश

दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए सात वचन लिए जाते हैं। लेकिन यदि हमें अपना और दूसरों का भी जीवन सुखमय बनाना हो तो क्या करना चाहिए। उसके लिए भी समाज में आज ये सात वचन जरूरी हैं।
पानी बचाने का वचन
यदि जीवन में सारे सुख मौजूद हों फिर भी क्या आप वास्तव में सुखी रह पाएंगे। क्या आप एक हफ्ता तक किसी और चीज से प्यास बुझा सकते हैं। बिना नहाए, बिना ब्रश, बिना सफाई के रह सकते हैं। बिल्कुल नहीं। तो उस पानी की कद्र करना हम कब शुरू करेंगे। कब व्यर्थ होते पानी को देखकर हमारे भीतर पीड़ा होगी। कब पानी बचाने की आदत को जीवन शैली और परम्पराओं में शामिल करेंगे। जल खत्म हुआ तो सारा विकास धरा रह जायेगा। इसलिए पहला वचन पानी बचाने का हो।
समझें तीन ‘आर’ की महत्ता
हम सब चाहते हैं कि हमारे पास जरूरत की किसी चीज की कमी न हो। बल्कि ज्यादा धन है तो हम गैर जरूरी चीजों का भी ढेर लगा लेते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि हमारी सम्पन्नता हमारी धरती और प्राकृतिक संसाधनों को विपन्न कर रही है। हमारे कपड़ों, जूतों, पर्स, नैपकिन, टिशू पेपर, डिस्पोजल के स्टॉक प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर तैयार किये जा रहे हैं। इन्हें बनाने की प्रक्रिया में मिट्टी, पानी, हवा की गुणवत्ता नष्ट हो रही है। चीजों का सही इस्तेमाल समय की मांग है। आज हम सबको अपने जीवन में तीन आर यानी रिड्यूस, रीयूज़, रिसाइकल की थ्योरी को अपनाना ही होगा। रिड्यूस मतलब अपनी जरूरतों पर लगाम लगाना। हर जगह सहूलियत मत तलाशें। कचरा कम निकालें। हाथ टिशू पेपर की बजाय रुमाल से पोंछें। ब्रांडेड बोतल के बजाय अपने घर से लाये पानी से भी प्यास बुझ सकती है। इसी तरह रीयूज़ की थ्योरी भी अहम है। कपड़े को दो-चार बार पहनकर फेंक देना लोगों के शौक में शुमार हो चुका है। पर कपड़े की बुनाई, रंगाई, छपाई, कढ़ाई, सिलाई में अनेक संसाधन लगते हैं। पुराने समय में चीजों को भी तब तक इस्तेमाल किया जाता था जब तक वो पूरी तरह टूट-फूट न जाएं। उस जीवन पद्धति को दोबारा अपनाने की जरूरत है। अब बात रिसाइकल की। आज हमारे उपभोग की अनेक वस्तुएं ऐसे मैटेरियल से बन रही हैं जो खराब या पुरानी होने के बाद लंबे समय तक सड़ती-गलती नहीं। पैकेजिंग में इस्तेमाल पन्नी भी नष्ट होने में सौ साल लेती है। यदि ये चीजें रिसाइकल न हुई तो हमारी धरती कचरे से कराह उठेगी। धरती रहने लायक बचेगी तभी हमारा जीवन भी सुखमय हो सकता है। तो दूसरा वचन है -आज से ही तीनों आर का पालन कर अपने साथ ही सबका जीवन सुखमय बनाएंगे।
सेहत की पूंजी


जीवन जीने के लिए जितनी सहूलियतों को इजाद किया गया, उतनी ही बीमारियां भी खुद-ब-खुद पैदा होती गईं। पहले के समय में कुएं से पानी खींचने, ईंधन जुटाने, अनाज पीसने और खेती-बाड़ी में शारीरिक श्रम की दरकार होती थी। इससे शरीर मजबूत बना रहता था। साथ ही हमें घर पर तैयार शुद्ध व ताजी चीजों से बना भोजन मिलता था। पर आज बाजार में सबकुछ रेडीमेड मिलता है। मशीनों ने शारीरिक श्रम खत्म कर दिया। शरीर जड़ होने लगा। अब तो खुद को बीमारीमुक्त रखना सबसे बड़ी चुनौती है। तो तीसरा वचन दीजिये- दिनचर्या में शारीरिक श्रम, व्यायाम आदि शामिल करेंगे, पौष्टिक चीजें खाएंगे। अपनी सेहत बचाकर रखेंगे।
परिवार से प्यार

हम मनुष्य बेल की भांति होते हैं। बढ़ने को सदैव लालायित। पर बेल की ही तरह हमें भी ऊपर चढ़ने, आगे बढ़ने के लिए सहारे की जरूरत होती है। कभी मां बाप के, कभी पत्नी के, कभी भाई बहन के तो कभी बेटा-बेटी के। आज जीवन जीना जितना सुविधाजनक हुआ है उतना जटिल भी। हर ओर चुनौतियां हैं। अवसाद, तनाव व अनिद्रा महामारी बनती जा रही हैंa। हम मन से टूट जायें तो परिवार हमारे लिए भावनात्मक सम्बल है। हम शारीरिक रूप से कमजोर हो जाएं तो परिवार सहारा है। इसलिए चौथा वचन उठाइये-परिवार से प्रेम करेंगे। परिवार के सदस्यों को वैसे ही प्राथमिकता देंगे जैसे काम में तरक्की को देते हैं।
जीवन में संतुलन

संतुलन प्रकृति का नियम है। जहां संतुलन नहीं वहां विध्वंस होता है। हमारा जीवन भी अपवाद नहीं है। हमें इस इंटरनेट और मशीनी युग में अपनी वास्तविक दुनिया, रिश्तों, प्राथमिकताओं और आभासी दुनिया के बीच संतुलन साधना आवश्यक है। तो पांचवा वचन दीजिये- डिजिटल समय और वास्तविक समय के बीच संतुलन साधते हुए चलेंगे।
जैसे हैं खुश रहना सीखें
पाने को तो इस दुनिया में बहुत कुछ है। मगर इस पाने में आप कितना खोते हैं यह देखना भी जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कि बहुत कुछ पाने की चाह में आप सबकुछ खो बैठें। इसलिए खुशियों को बहुत दूर नहीं अपने आसपास तलाशिये। अपना काम मन लगाकर करिए और जो मिलता है उसे स्वीकार कीजिये। तो यह रहा छठा वचन- मैं हर हाल में खुश रहूंगा/रहूंगी।
आत्ममंथन
हमें दिनभर किये गए अपने कार्य, बर्ताव, फैसलों पर आत्ममंथन करने का वचन लेना चाहिए। जो किया उसमें कितना भला, किसका भला हुआ। क्या था जो करने से छूट गया। मेरे बर्ताव ने किसी को तकलीफ तो नहीं पहुंचाई। मेरे परिवार, समाज, देश-दुनिया और अंत में स्वयं को बेहतर करने में क्या मैं जरा भी अपना योगदान दे पाया। अपनी कमियों पर विजय पाने की दिशा में मैं कितना आगे बढ़ा। जीवन को प्रभावित करने वाली सभी बातों पर मंथन एक सार्थक जीवन की शुरुआत है।

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