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वैश्विक मंचों में उचित प्रतिनिधित्व भी मिले

07:48 AM Feb 05, 2024 IST

सुरेश सेठ
वर्ष 2014 में जो भारत दुनिया की आर्थिक महाशक्तियों में दसवें पायदान पर था। आज वह न केवल पांचवें पर पहुंचा बल्कि ताजा आंकड़ों के अनुसार हमारी अर्थव्यवस्था 4 लाख अरब डॉलर की हो गई है। शीघ्र ही इसे 5 लाख अरब के लक्ष्य तक पहुंचा दिया जाएगा। 2047 अर्थात‍् जब हम अपनी स्वाधीनता का शतक मनाएंगे, तो विश्वास है हमारा देश विकसित भारत कहलाएगा। भारत की आबादी दुनिया में सबसे अधिक हो गई। इस कारण हमारी श्रमशक्ति भारत की आर्थिकता का बहुत बड़ा बल है।
लेकिन आज भी यह उपेक्षा हमें चौंकाती है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद में हमें अपना देय नहीं मिलता। सुरक्षा परिषद में उन्हीं पांच बड़े देशों के पास वीटो पावर है जिनके पास आज से पौन सदी पहले थी। इसके अतिरिक्त न केवल भारत बल्कि तीसरी दुनिया के देशों और अफ्रीकी देशों को भी इस विश्व मंच पर स्थान मिलना चाहिए, यह बात भारत ही नहीं, पश्चिमी देशों में से फ्रांस और ब्रिटेन भी दोहरा रहे हैं। अभी ब्रिटिश पत्रकार मार्क अरबन ने एक और बात की ओर ध्यान दिलाया कि भारत केवल एक उभरती हुई महान आर्थिक शक्ति ही नहीं, बल्कि स्वावलम्बी सैन्य शक्ति भी बनता जा रहा है। उसकी जल, नभ और थल सेना जिम्मेदारी के साथ अपना कर्तव्य भारत ही नहीं, दुनिया के लिए निभा रही है। अरबन बोले, भारत कैसे अदन की खाड़ी और लाल सागर में संकट के समय उभरकर आया। उधर अमीरात में मौजूद विशेषज्ञों ने अदन में भारतीय नौसेना की कार्रवाई को सराहा है। नौसेना ने बताया कि 26 जनवरी को व्यापारिक जहाज लुआंडा पर अदन की खाड़ी में हुए हमले के समय बचाव की कार्रवाई तुरंत की गई। नौसेना ने हूती आतंकियों के ड्रोन हमलों का सामना किया। यूरोप के इतिहासकार मार्टिन सॉरबेरी लिख रहे हैं कि महाशक्ति का उदय हो रहा है। भारतीय नौसेना द्वारा लाल सागर में समुद्री लुटेरों पर काबू पाया जा रहा है।
एक नया सत्य इस क्षेत्र में उभरकर आ रहा है जिसके प्रति निवेशक और उत्पादक दुनिया के कोने-कोने से उत्साहित हो रहे हैं। अब निवेश की सुरक्षित और लाभदायक जगह चीन नहीं, है, उसकी तो आर्थिकता इस समय लड़खड़ा रही है। भारत एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरकर सामने आ रहा है जिसने विश्वव्यापी मंदी का रुख मोड़ दिया।
मोदी जी ने भी भारत को एक सूत्र में बांधने वाली धार्मिक आस्था और भरोसेमंद न्यायप्रणाली के उभरने की बात अपने पिछले मन की बात कार्यक्रम में की है। निस्संदेह, भारत ने पिछले दशक में तेजी से तरक्की की है। इसके बावजूद भारत को विश्व मंच पर वह स्थान क्यों नहीं मिल रहा जो उसे मिलना चाहिए।
विश्व मंच में संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद के महत्व को कौन नकार सकता है। इस बीच दुनिया का चेहरा-मोहरा तेजी से बदल गया है। इस तेजी से बदलते माहौल में निश्चय ही भारत और तीसरी दुनिया के आजाद हुए नये देशों का महत्व तो बढ़ा ही है, अफ्रीकी देशों की प्रगति को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और इन देशों को पूरा महत्व क्यों नहीं मिलता? जबकि ये दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने देशों में बसाते हैं। भारत ने बार-बार अपनी क्षमता को सिद्ध किया है।
जी20 देशों के शिखर सम्मेलन जब एक साल में भारत में हुए तो निश्चय ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को गरिमा प्राप्त हुई। इससे पहले कोरोना की महामारी का मुकाबला भारत ने सफलता के साथ किया। भारत निर्मित कोरोना के टीके दुनिया को मौतों के दुर्भाग्य से बचा सके। इसके अतिरिक्त भारत अब तेजी के साथ अपनी आयात आधारित अर्थव्यवस्था का मिजाज बदलकर उसे निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बना रहा है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती की बात ऊर्जा संकट से निपटने की उसकी असफलता और पेट्रोल व डीजल के घरेलू उत्पादन में उपलब्धि न होकर 85 प्रतिशत इन ऊर्जा साधनों को अभी भी विदेशों से आयात करते जाना पूरे के पूरे संतुलन को बिगाड़ देता है। रुपये का मूल्य डॉलर और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले में गिरने लगता है। भारत अब कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर न रहकर उद्योग और निर्माण अर्थव्यवस्था का रुख ले रहा है। अभी देश के पर्यटन क्षेत्र के विकास के जो कदम उठाए गए हैं, वो भी उसे अंतर्राष्ट्रीय नक्शे में गौरवपूर्ण स्थान दे रहे हैं।
निश्चय ही भारत के शासन के स्थायित्व के कारण दुनिया का रुख उसके प्रति बदल रहा है। भारत की वैश्विक साख में वृद्धि हुई है। दुनिया भी जानती है कि लोकतांत्रिक राजनीति के स्थायित्व के कारण भारत तेजी से बड़ी आर्थिक शक्ति बनता जा रहा है। जिसके चलते कालांतर अंतर्राष्ट्रीय मंचों यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को गरिमापूर्ण स्थान देने के लिये वैश्विक शक्तियों को बाध्य होना पड़ेगा।
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लेखक साहित्यकार हैं।

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