जलवायु बदलाव के अनुकूल बनें ऑल वेदर रोड
वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू कश्मीर में जो अधिकांश राजमार्ग बाधित हैं या धंस रहे हैं, उनके साथ ऑल वेदर रोड यानी बारहमासी सड़क का टैग भी लगा है। निस्संदेह, ये सड़कें हमें सीमांतों तक पहुंचाती हैं। मौसमी आपदाओं को झेलने में समर्थ सड़कें आपदाओं में राहत, पुनर्वास व पुनर्निमाण कार्यों को भी आसान कर देती हैं। वैसे हर कोई चाहता है कि उसके आवागमन की राहें, चाहे वे पगडंडियां ही हों, बारहमासी हों। आज की ऑल वेदर रोड या हर मौसम में खरी उतरने वाली सड़कों की चाहत भी उसी क्रम में है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के सतत विकास 2030 के लक्ष्यों (एसडीजी) में भी सड़क परिवहन व उससे जुड़े इनफ्रास्ट्रक्चर्स को महत्वपूर्ण मानते हुए सड़क परिवहन तथा पुल सड़कों जैसे इनफ्रास्ट्रक्चरों को जलवायु बदलाव के कुप्रभावों से बचाने और उनके अनुकूलन पर काम करने का आह्वान किया गया है। धरा का बढ़ता तापमान सड़कों पर भी असर डाल रहा है। गर्म होती धरा में पिघलते ग्लेश्यिरों के साथ-साथ पिघलती सड़कों पर भी सचेत किया जा रहा है। विश्व में अधिकांश पक्की सड़कें जो एस्फाल्ट अथवा कोलतार से ही बनती रही हैं, तेज गर्मी में पिघलने लगती हैं। उधर ध्रुवीय प्रदेशों व सदैव बर्फ से ढके रहने वाले क्षेत्रों में जहां वाहन परिचालन बर्फ की सड़कों पर होता है, बढ़ते तापक्रम में बर्फ की सड़कें गलने लगती हैं। बर्फ के पर्याप्त ठोस न रहने की स्थिति में वहां परिवहन रोकना पड़ता है।
बारहमासी सड़कों की राह में कई चुनौतियां भी हैं। अति गर्मी, अति ठंड, अति बरसात के साथ-साथ, जिन माहों में गर्मी नहीं होती थी उनमें गर्मी व जिन माहों में ठंड नहीं होती थीं उन माहों में ठंड होने लगी है। अतः सड़कों को बारहमासी बनाने के डिजाइन और सामग्री चयन में भी अनिश्चितता आ गई है। अतः पहले से बनी सड़कों को भी ऑल वेदर रोड बनाने के लिए उसी तरह काम किये जाने की जरूरत है। बारहमासी सड़कों के पुलों को भी बारहमासी बनाना है। बाढ़, नींव कटाव, पुलों के नजदीक अवैध खनन के अलावा जलवायु बदलाव के दौर में पुलों के संदर्भ में एक अन्य तरह की चुनौती भी आ रही हैं। चूंकि नदियां अपनी राह बदल रही हैं, इसलिए कई बार पुल निष्प्रयोजन भी हो रहे हैं।
हर मौसम पर खरी रहने वाली सड़क भी हर मौसम में यातायात की गारंटी नहीं हो सकती है। सड़कें भले ही मौसमी मार झेल लें उनका कुछ न बिगड़े परन्तु विपरीत मौसम की मार वाहन या यात्री झेलने में असमर्थ रहते हैं। उन्हें आगे न बढ़ने की चेतावनियां भी देनी पड़ती हैं। उदाहरण के लिए आयरलैंड में वाहन चालकों को तेज हवाओं की चेतावनी देते हुए सीमित गति रखने को कहा जाता है। समुद्रों के पास जो सड़कें हैं उनमें तूफानी हवाओं और लहरों में यातायात न जारी रखने की चेतावनियां दी जाती हैं। पहाड़ी मार्गों में पहाड़ों से बोल्डर्स लुढ़कते रहते हैं। या सड़कों के आसपास फायर सीजन में जंगली आग फैली होती है। इसी प्रकार सुरंगों के मुहानों पर बर्फ जम जाती है तो सुरंगों का तो कोई नुकसान नहीं होता है किन्तु यातायात बाधित हो जाता है। सुरंग के दोनों मुहानों पर बर्फ जमी होने के कारण ऑल वेदर रोड को जम्मू-कश्मीर में बंद करना पड़ता है। सड़कों पर बर्फ के ऊपर यदि पाला भी पड़ जाये तो बर्फ कठोर होने लगती है व उसे जेसीबी से हटाने में दिक्कत बढ़ जाती है। सड़कों पर आने वाले पानी की, चाहे वह बरसात का हो या अन्य स्रोतों का, सही जलनिकासी बहुत जरूरी है।
ऑल वेदर रोड एक ही तरह की सामग्रियों से ही बने यह भी जरूरी नहीं है। यह स्थानीय परिस्थितियों व नवाचारों पर भी निर्भर करती हैं। ऑल वेदर रोड मिट्टी-रोड़ों की भी हो सकती है। जैसे परिस्थिति, काल व उपलब्धता के हिसाब से अलग-अलग सामग्रियों से ऑल वेदर रोड बन सकती है वैसे ही अलग-अलग चौड़ाइयों की सड़कें भी ऑल वेदर रोड हो सकती हैं। चार-छह लेन की सड़कें ही ऑल वेदर रोड होंगी ऐसा नहीं है। निस्संदेह पारम्परिक ज्ञान और पारम्परिक कच्चे माल के माध्यम से बनी सैकड़ों व हजारों साल पूर्व बनी सड़कें आज भी मौजूद होंगी।
वैज्ञानिकों की राय है कि बारहमासी सड़कों के बगल से या भीतर से जो गैस पाइपें, सीवर लाइनें, बिजली की तारें, पानी की पाइपें आदि गुजरती हैं या गुजरेंगी जलवायु बदलाव के बीच गिरते बढ़ते तापक्रम में वे कैसी प्रतिक्रियायें पैदा करती हैं, उनका भी असर निर्माण सामग्री चयन के दौरान संज्ञान में रखा जाना चाहिए।
इक्कीसवीं सदी में बनाई जा रही सड़कों में इन बातों पर भी ध्यान दिया जाना आपेक्षित हैं कि उनसे जलवायु बदलाव से जुड़ी समस्याएं और न बढ़ें। विडम्बना है कि जलवायु बदलाव अनुकूलन के हिसाब से जो बारहमासी सड़कें बनाई जा रही हैं, अपेक्षित रूप से ग्रीन रोड होने के बजाय उनके निर्माण में कतिपय संवेदनशील क्षेत्रों में भी हजारों पेड़ काट दिये जाते हैं। भूमिगत जलस्रोत प्रणालियां ध्वस्त की जाती हैं। हजारों टन मलबा नदियों में डाल दिया जाता है। जैव विविधता के प्रति भी संवेदनशीलता नहीं बरती जाती है। निर्माण के दौरान कम से कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईंधन पर ध्यान नहीं दिया जाता है। वृक्षों, जैव विविधता, नदियों व भूमिगत जलस्रोतों के प्रति संवेदनहीनता व अनावश्यक मृदा हानि के साथ बनी सड़कें हर मौसम के लिए स्थानीय जन व पारिस्थितिकी संकट को भी न्योता दे सकती हैं।
वास्तव में ऑल वेदर रोड से ज्यादा जरूरी ऑल टाइम उपयोग की सड़कों पर काम करने की जरूरत है। सड़कों पर पर्याप्त रोशनी के लक्ष्यों पर तो अभी बात ही नहीं हो रही है। राजनीतिक कारणों से कमजोर भूगर्भीय संरचनाओं पर सड़कों के बनाने के दबावों से भी उबरने की जरूरत है।