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रोगी की जांच-उपचार में कारगर एआई

04:00 AM Dec 07, 2024 IST
रोगी की जांच उपचार में कारगर एआई
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एकीकृत प्रणाली में एआई कैंसर होने की संभावना के बारे में भी अनुमान दे सकती है। इसका उपयोग रोगी की हालत के हिसाब से उपयोगी दवा बताने के लिए हो सकता है। एआई समय-दक्ष विश्लेषण का उपयोग करते हुए प्रत्येक रोगी के लिए सटीक भविष्यवाणी भी कर सकती है।

राकेश कोचर

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) एक डिजिटल कंप्यूटर या रोबोट की वह क्षमता है जो आम तौर पर मनुष्यों के क्रियाकलाप से जुड़ी है, जैसे कि तर्क करना, सामान्यीकरण करने या पिछले अनुभव से सीखने की क्षमता। एआई विशाल मात्रा में डेटा को खंगालकर एल्गोरिदम लक्षणों की पहचान कर सकता है और अभूतपूर्व सटीकता और गति के साथ चिकित्सा परिणामों की भविष्यवाणी कर सकता है। यह चिकित्सकों की इलाज दक्षता को बेहतर बनाने और दुनिया में अत्यधिक दबाव के तले काम कर रही स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में रोगी को मिलने वाले परिणामों में सुधार कर पाएगा।
विश्व आर्थिक मंच की डिजिटल हेल्थकेयर परिवर्तन पहल ने हाल ही में स्वास्थ्य सेवा को दरपेश तीन सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियां - पुरानी बीमारियों का बढ़ता बोझ, दुनिया भर में रोगी के ठीक होने की असमान दर और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच एवं संसाधन की कमी से निपटने के संभावित तरीकों में एआई को बतौर एक विधा मान्यता दी है। इसके एक बार आकार लेने के बाद, भारत सरकार का राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन इस पहल के साथ जुड़ जाएगा।
स्वास्थ्य सेवा में एआई का उपयोग औद्योगिक एआई से उपजा है, जिसकी उत्पत्ति 1950 के दशक में हुई थी। जॉन मैकार्थी ने 1956 में डार्टमाउथ सम्मेलन में ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ शब्द गढ़ा था। वर्ष 1970 के दशक में पहला आर्टिफिशियल मेडिकल कंसल्टेंट इंटरनिस्ट-1 बनने के साथ, एआई काबिलियत वाला सर्वप्रथम चिकित्सा परामर्शदाता नमूना पेश किया गया था। इसने रोगियों के लक्षणों के आधार पर, सर्च एलोरिदम का उपयोग करके क्लिनिकल जांच का निष्कर्ष सुझाया। एआई का आधुनिक युग 2000 के दशक की शुरुआत में वॉयस रिकॉग्निशन फीचर के निर्माण के साथ शुरू हुआ, इसके बाद आईबीएम ने वॉटसन नामक एक प्रश्न-उत्तर प्रणाली और फिर 2020 में जीपीटी मॉडल लॉन्च किए। कंप्यूटिंग शक्ति में गुणात्मक सुधार, तेज़ डेटा संग्रहण एवं डेटा प्रोसेसिंग, जीनोमिक सिक्वेंसिंग डेटाबेस का विकास और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड (ईएचआर) सिस्टम के व्यापक इस्तेमाल होने ने स्वास्थ्य सेवा में एआईके विकास में योगदान दिया।
वर्तमान में, एआई में मशीन-लर्निंग, डीप-लर्निंग, नेचुरल लैंग्युएज प्रोसेस और कंप्यूटर विज़न जैसी तकनीक और लार्ज लैंग्युएज मॉडल (एलएलएम) जैसे एल्गोरिदम शामिल हैं जो नए कंटेंट को समझने, सारांश देने, नया कंटेंट बनाने और भविष्यवाणी करने के लिए विशाल डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं। एआई का व्यापक रूप से परीक्षण किया गया है। एक्स-रे और फोटोग्राफी जैसी चिकित्सा इमेजिंग में इसके उपयोग की काफी संभावना और इसने मधुमेह रेटिनोपैथी, त्वचा कैंसर और फेफड़ों के तपेदिक जैसे लक्षणों की शिनाख्त करने में काफी बढ़िया कर दिखाया है। अल्ज़ाइमर रोग की भविष्यवाणी और निदान करने में सक्षम मशीन मॉडल पेश किया गया है। कैंसर की पहचान, जोखिम स्तर कब बनेगा, दवा की खोज करने और मॉलीकुलर कैरेक्टराइज़ेशन के लिए एआई उपयोगिता पर काम चल रहा है।
व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एंडोस्कोप के उपयोग करते हुए एकीकृत प्रणाली में एआई बायोप्सी सैंपल लेने के लिए सबसे संभावित संदिग्ध बिंदु सुझा सकता है, यहां तक कि इसके कैंसर होने की संभावना के बारे में भी अनुमान दे सकती है। एआई का उपयोग रोगी की हालत के हिसाब से या सटीकता के साथ दवा बताने के लिए किया जा सकता है, यह समय-दक्ष विश्लेषण का उपयोग करते हुए प्रत्येक रोगी के लिए सटीक रूप से भविष्यवाणी कर सकता है, उसकी आनुवंशिकी, मॉलिक्यूरल और ट्यूमर-आधारित प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर कौन-सी उपचार विधि सबसे उपयुक्त रहेगी, यह सुझा सकता है। टेलीमेडिसिन का उपयोग करके दूर-दराज इलाकों के मरीजों की ईसीजी रिपोर्ट, एक्स-रे या स्कैन का ऑनलाइन विश्लेषण करने के बाद इलाज संबंधी परामर्श दिया जाता है।
एआई एल्गोरिदम मस्तिष्क आघात, इंट्राक्रैनील हैमरेज और पल्मनरी एम्बॉलिस्म जैसे लक्षणों की पहचान में उपयोगी सिद्ध हो रहा है। शरीर पर धारण किए जाने वाले उपकरण, स्मार्टफोन और इंटरनेट-आधारित तकनीकों का उपयोग रोगियों के हृदय संबंधी डेटा की निगरानी के लिए किया जा सकता है, जिससे हृदय संबंधी खतरे का समय रहते पता लगाने में मदद मिल सकती है।
वर्चुअल असिस्टेंट और वर्चुअल रियलिटी के उपयोग के साथ शिक्षण और प्रशिक्षण में एआई की भूमिका बढ़ रही है। रोग पहचान हेतु परीक्षण, दवा खोज और दवा-दवा के बीच सामंजस्यपूर्ण या फिर प्रतिकूल प्रभावों की भविष्यवाणी करने में एआई का उपयोग पहले से हो रहा है। एआई के कुछ आगामी अनुप्रयोगों में, गूगल की स्वास्थ्य एलएलएम सुविधा शामिल है, जो उपयोगकर्ताओं को उनकी नींद की अवधि, व्यायाम की तीव्रता और हृदय गति की परिवर्तनशीलता आदि के आधार पर व्यक्तिगत स्वास्थ्य परामर्श संदेश देगा। अन्य विकास खोज क्रम में, आईबीएम का वाटसन ऑनकोलॉजी, गूगल का डीपमाइंड प्लेटफ़ॉर्म और माइक्रोसॉफ्ट का हैनोवर प्रोजेक्ट शामिल हैं। दक्षिण अफ्रीका में मेडसोल एआई सॉल्यूशंस नामक एक कंपनी ने स्तन कैंसर का शीघ्र पता लगाने के लिए एक अत्याधुनिक, वाई-फाई-सक्षम अल्ट्रासाउंड जांच विकसित की है।
हालांकि, स्वास्थ्य सेवा में जेनरेटिव एआई का उपयोग करने में एक बड़ी चिंता ‘मानव स्पर्श’ और सहानुभूति की अनुपस्थिति है। दूसरी बड़ी समस्या है विश्वसनीय डेटा की अनुपलब्धता। इसके प्रभावी उपयोग के लिए भारी मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है, जो कि विभिन्न जातीय समूहों और अल्पसंख्यकों या वे समुदाय जिन का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, उनके प्रति पूर्वाग्रहों के कारण विश्लेषण त्रुटिपूर्ण हो सकता है। वर्तमान में, अधिकांश एआई एल्गोरिदम श्वेत पुरुष के डेटा पर आधारित हैं। फिर, रोगी की गोपनीयता और डेटा बेचने को लेकर भी चिंता है। एल्गोरिदम का सही काम न करना या इलाज की गलत दिशा बता देना या फिर पारदर्शिता में कमी या सही व्याख्या न कर पाने वाली कमी और ‘ब्लैक बॉक्स’ स्थिति जैसी अन्य समस्याएं हैं। साथ ही, जीनोमिक जानकारी एकत्र करने में नैतिकता बरतना और एआई को आईटी तंत्र के साथ एकीकृत करना, चिकित्सक का विश्वास हासिल करना और सरकारी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने संबंधी चिंताएं हैं।
भारत में एआई उपयोग की अपार संभावनाएं हैं। पोषण, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, प्रशिक्षित जनशक्ति और स्वास्थ्य सुविधाओं में घोर असमानताओं वाले परिदृश्य में यह एक वरदान हो सकती है। इसका उपयोग रोग प्रवृत्तियों और महामारी विशेष के वैज्ञानिक डेटा के आधार पर उसका महामारी रूप धरने की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, डेंगू बुखार, मलेरिया और एन्सेफलाइटिस के प्रकोपों की भविष्यवाणी वर्षा, आर्द्रता और पिछले रुझानों के आधार पर, वेब ट्रैफ़िक का विश्लेषण और मच्छरों के क्रियात्मक पैटर्न की मॉडलिंग करके की जा सकती है। इससे भी महत्वपूर्ण है कि इसके उपयोग से समुदाय स्तर पर, मधुमेह, फैटी लीवर और हृदय रोगों जैसी गैर-संचारी बीमारियों की स्थिति बनने का पूर्वानुमान लगाया सकता है।
हालांकि, भारत इस विषय में दुनिया के साथ कदमताल बनाने में धीमा है। फिर भी पीजीआईएमईआर-चंडीगढ़, एम्स-नई दिल्ली, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी-हैदराबाद और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल-मुंबई जैसे प्रमुख अस्पतालों ने भारत-केंद्रित शोध शुरू किया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। पूरे देश में डिजिटल रिकॉर्ड रखने की शुरुआत और अपडेट रखना एक बहुत बड़ा काम है, जिसके लिए बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता है। भारत में, दूरदराज के इलाकों में टेलीमेडिसिन प्रदान करने के अलावा एआई के उपयोग का मुख्य फोकस बीमारियों की रोकथाम, जांच और निगरानी पर हो।

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लेखक पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के पूर्व प्रोफ्रेसर हैं।

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