लड़कियों के विवाह की उम्र
जन संसद की राय है कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाना प्रगतिशील कदम है। इससे जहां परिपक्वता आएगी, वहीं पढ़ाई व करिअर बनाने का समय मिलेगा। वहीं छोटी उम्र में मां बनने से होने वाली कुपोषण की समस्या दूर होगी। लोगों को पहले मानसिक तौर पर तैयार करना होगा।
राष्ट्र हित में
राष्ट्रहित को ध्यान में रख समय की जरूरत अनुसार सामाजिक रीति-रिवाज, परंपराओं में भी परिवर्तन करना होता है, तभी राष्ट्र सही दिशा में गतिशील बना रहता है। लड़कियों की विवाह की उम्र 21 वर्ष करना भी ऐसा ही राष्ट्र व समाज हितकारी कदम है। इससे लड़कियों की शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का विकास होगा, ताकि वे सहज रूप से मातृत्व धर्म ग्रहण करने का उत्तरदायित्व वहन कर सकें। इस उम्र में उनकी समझदारी भी विकसित होने लगती है। इससे वे उच्च शिक्षा भी प्राप्त कर सकेंगी। इसके साथ ही बढ़ती आबादी में भी कमी आयेगी।
दिनेश विजयवर्गीय, बूंदी, राजस्थान
सोच बदलना जरूरी
लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। इस तरह के कानून केवल कागजों तक सिमट कर रह जाते हैं, धरातल पर लागू नहीं होते। देश में क्या कोई ऐसी संस्थाएं हैं जो 137 करोड़ जनसंख्या वाले देश में होने वाले प्रत्येक विवाह की जांच कर सकें? विवाह पंजीकरण अनिवार्य होने के बावजूद अब भी वे केवल शहरों में ही पंजीकृत करवाये जाते हैं। मात्र विवाह की आयु बढ़ाने से महिलाओं के जीवन में कोई अंतर नहीं आने वाला, जब तक कि हमारी सोच नहीं बदलती तथा शिक्षा, स्वाबलम्बन के प्रति दिशाएं सकारात्मक नहीं होतीं।
कविता सूद, पंचकूला
आर्थिक विषमता
केंद्र सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से 21 वर्ष करने का फैसला किया है लेकिन सामाजिक मान्यताओं, गरीबी व विसंगतियों के चलते यह कानून प्रभावी होगा इसमें संदेह है। आज भी भारत की आबादी का बहुत बड़ा भाग ऐसा है जो कि सामाजिक व आर्थिक कारणों से लड़कियों की शादी कम उम्र में करने के लिए विवश है। जरूरत उनकी सोच में परिवर्तन लाने की है। उन्हें प्रेरित किया जाए कि वह बेटियों को पढ़ा-लिखा कर स्वाबलंबी बनाएं। ऐसे लोगों की सोच में परिवर्तन लाने पर ही यह कानून कारगर होगा।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना
बेटियों का सशक्तीकरण
लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष करने का केंद्र का निर्णय स्वागतयोग्य है। इससे बेटियों का सशक्तीकरण होगा। वे अपनी पढ़ाई और करिअर के उचित अवसर प्राप्त कर पाएंगी। उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे सही निर्णय ले पाएंगी। वे अपने आप को और अपने बच्चों को कुपोषण से बचा पाएंगी। वहीं शिशु व मातृ मृत्यु दर में कमी आएगी। जनसंख्या वृद्धि की दर में भी कमी आएगी, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम होगा। इसके साथ ही जीवन साथी का सही चुनाव कर पाने से पारिवारिक झगड़ों में कमी आएगी। परिवारों का आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक स्तर ऊंचा उठेगा। इसके लिए शिक्षा और सामाजिक जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
शेर सिंह, हिसार
समय की मांग
सरकार द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाना आज के समय की मांग है। शारीरिक रूप से मजबूत और मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति देश के विकास में मददगार साबित हो सकता है। लड़कियों की वैवाहिक आयु 18 वर्ष होने के कारण उन पर बेहतर करिअर के बजाय ज़ल्द विवाह करने का दबाव ज़्यादा रहता है। वे न ढंग से पढ़ाई कर पाती हैं और न ही मनचाहे क्षेत्र में अपना भविष्य बना पाती हैं। स्वास्थ्य समस्याएं अलग होती हैं। वैवाहिक उम्र 21 वर्ष होने से वे न केवल अधिक सक्षम हो पाएंगी बल्कि मां बनने संबंधी निर्णय भी परिपक्वता के साथ ले पाएंगी। वहीं जनसंख्या विस्फोट पर लगाम लगेगी।
अनिल कुमार पाण्डेय, पंचकूला
क्रांतिकारी बदलाव
लड़कों के समान लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष करना एक क्रान्तिकारी कदम है। वर्तमान में लड़कियों का सशक्तीकरण करने के लिये उनका न केवल शिक्षित होना बल्कि अपने पांवों पर खड़ा होना भी आवश्यक है। इसके लिए उनको अपना करिअर चुनना और उसमें उत्कृष्ट होना अत्यावश्यक है। यदि लड़कियों को 18 वर्ष में ही शादी के बंधन में बांध दिया जाये तो उनके लिए अपना करिअर चुनने और उसमें आगे बढ़ने की संभावनाएं कम हो जाएंगी। सरकार के इस क्रांतिकारी कदम का स्वागत किया जाना चाहिए।
अनिल कुमार शर्मा, चंडीगढ़
पुरस्कृत पत्र
तार्किक आधार
विवाह के लिए 21 वर्ष की आयु लड़कियों को शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता के साथ एक स्वस्थ सोच भी प्रदान करती है। यही परिपक्वता और स्वस्थ सोच ही मजबूत एवं खुशहाल वैवाहिक जीवन का आधार बनती है। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि वह अपने उच्च शिक्षा प्राप्त करने और स्वावलंबी बनने के सपनों को साकार कर पाएंगी। वहीं उसका स्वालंबन परिवार को आर्थिक सहायता भी प्रदान करेगा। कम उम्र में मातृत्व की जिम्मेदारी उन्हें कुपोषण का शिकार बना देती है। लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने का निर्णय पूर्णत: तर्कसंगत एवं उचित है।
योगिता शर्मा, सुधोवाला, देहरादून