सुगंधित ‘राल’ वाला अगर का पेड़
वीना गौतम
अगर का पेड़ यानी अगरवुड जिसे आमतौर पर औध या गहरु के नाम से भी जाना जाता है, वास्तव में यह अपनी राल यानी सुगंधयुक्त रेजिन या गीली गोंद के लिए जाना जाता है। इसे और आसानी से इस तरह समझिये कि हमारे घरों में जो सुगंधित अगरबत्तियां और धूपबत्तियां जलायी जाती हैं, वे अगरवुड की ‘राल’ से ही बनती हैं। इसी कारण इस पेड़ का पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा कॉमर्शियल महत्व है। मूलरूप से यह सुदूर पूर्वी एशिया का पेड़ है। भारत में प्राकृतिक रूप से यह उत्तर पूर्व के हिमालयी इलाकों में खासकर त्रिपुरा, नागालैंड, असम और मणिपुर में पाया जाता है। भारत में इसके कई नाम हैं जैसे संस्कृत में इसे अगरु कहते हैं, हिंदी में अगर, असमिया में सांचीगाछ, बांग्ला में अगर, गुजराती में अगर, तेलुगू में अगर, मलयालम में अकिल और अंग्रेजी में ईगलवुड कहते हैं। इस पेड़ से निकलने वाली राल या सुगंधित रेजिन की बहुत ज्यादा मांग है। इस वजह से पूरी दुनिया में इसकी कीमत बहुत है, यहां तक कि एक किलो राल की कीमत कई लाख रुपये हो सकती है। एक किलो अगरवुड के तेल की कीमत तो 40 हजार पाउंड यानी 35-40 लाख रुपये तक हो सकती है।
वास्तव में इस पेड़ की लकड़ी सुगंधित तब बनती है, जब इस पेड़ की लकड़ी एक खास तरह की फफूंद लगने के कारण संक्रमित हो जाती है और इसमें एक सुराख बन जाता है। इस सुराख के कारण अगरवुड का पेड़ वाष्पशील यौगिकों के जरिये सुगंधित राल बनाता है, जो फफूंद को बढ़ने से रोकता है। यही वजह है कि अगर इस पेड़ में फफूंद ज्यादा बढ़ती है, तो यह पेड़ अपने लिए राल का भी ज्यादा उत्पादन करता है। दरअसल, अगरवुड का पेड़ वह सुगंध अपने जिंदा रहने या फफूंद से बचाव के लिए बनाता है। इस तरह देखा जाए तो कुदरत ने अगर के पेड़ को संक्रमण से बचाव के लिए जो एक विशिष्ट किस्म की राल बनाने की सहूलियत दी है। सभी धर्मों में अगर से बनने वाली सुगंधों का इस्तेमाल धार्मिक कर्मकांडों के लिए भी किया जाता है तथा आधुनिक लाइफस्टाइल मंे वातावरण को साफ और सुगंधमय बनाने के लिए भी विभिन्न उत्पादों में इसका उपयोग होता है।
भारत में चार-पांच प्रजातियों के अगरवुड पेड़ पाये जाते हैं। अगर, त्रिपुरा का राजकीय वृक्ष है। राल के अलावा इस पेड़ की पत्तियों और लकड़ी में भी काफी हद तक सुगंध रची-बसी होती है। इसलिए जहां पर अगरवुड पाया जाता है, दूर तक इसकी खुशबू आती रहती है। अगर का सही से विकास हो जाए तो अगरवुड पेड़ की ऊंचाई 18 से 30 मीटर तक होती है। इसके तने की परिधि 1.5 मीटर से 2.5 मीटर तक होती है। इसके तने की छाल भोजपत्र जैसे होती है और इस छाल का आयुर्वेद में विभिन्न औषधियों में इस्तेमाल होता है। तने के ऊपर अगरवुड गरुण के पंखों की तरह अपना विस्तार करते दिखता है, इसलिए इसे ईगलवुड भी कहते हैं, वैसे इसके और भी कई नाम हैं। जैसे ऊद, एलोवुड, हर्टवुड साथ ही इसे देवताओं की लकड़ियों वाला पेड़ भी कहते हैं। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर