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फिर-फिर बेशर्मी की हदें लांघते सिरफिरे

06:29 AM Aug 08, 2024 IST
फिर फिर बेशर्मी की हदें लांघते सिरफिरे
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शमीम शर्मा

सिर फिर जाना हिंदी का प्रचलित मुहावरा है जिसका अर्थ है- दिमाग उलटा हो जाना। इसी मुहावरे से सिरफिरा शब्द बना होगा। सिरफिरा का प्रयोग आमतौर पर सनकी, झक्की या विकृत सोच वाले व्यक्ति के लिए किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिये भी किया जाता है जो धुन के पक्के हैं या कुछ दीवाने या बावले से हों। पहले सिरफिरों की संख्या इक्का-दुक्का हुआ करती थी पर अब इनकी पूरी जमात पैदा हो गई है। कोई सेल्फी लेते-लेते जान गंवा रहा है तो कोई सड़कों पर स्टंट दिखाने में ही शान समझ रहा है। कोई कर्ज लेकर दिखावे की सनक में फंस जाता है। बाद में चाहे इन्हें सिर धुनना पड़े पर एक बार तो ये सिर ऊंचा करने के ख्वाब में सिर बिना बात ही सींगों में फंसा लेते हैं।
सच्चाई यह है कि सिरफिरे समाज के लिये सिरदर्द भी बन जाते हैं। पड़ोसी देश में अराजकता का जो तांडव देखने में आया है, उससे तो यही लगता है कि बुद्धि उल्टी होते देर नहीं लगती। बांग्लादेश की महिला प्रधानमंत्री के अन्तःवस्त्रों की अशोभनीय झांकी निकालने का युवाओं की बेरोजगारी या आरक्षण से क्या ताल्लुक है? अपने ही देश की खिल्ली उड़ाना और लोकतंत्र को क्षत-विक्षत करना सिरफिरा होना नहीं तो क्या है। पत्थरबाजी और आगजनी का पक्ष कौन सिरफिरा लेगा? युवाओं के हुजूम द्वारा महिलाओं और बच्चों से क्रूर व्यवहार, मंदिरों में तोड़फोड़, मॉल व दुकानों की लूट को युवा शक्ति का आंदोलन नहीं कहा जा सकता। युवा शक्ति अगर आग लगाने और तोड़फोड़ कर तहस-नहस करने को ही शक्ति प्रदर्शन मानते हैं तो यही कहा जायेगा कि ये युवा नहीं सिरफिरे हैं। लाखों लोगों का दिमाग एकदम काम करना बंद कर जाये तो क्या कहेंगे? यही न कि जब सिर फिरता है तो बेशर्मी की हदें अपने आप खत्म हो जाती हैं। नैतिकता की धज्जियां उड़ जाती हैं और मर्यादा व अनुशासन जैसे शब्द पानी भरने लगते हैं। एक मनचले का कहना है कि—
हम जैसे सिरफिरे इतिहास रचते हैं,
समझदार तो सिर्फ इतिहास पढ़ते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि विविध क्षेत्रों में युवा ही इतिहास रचते हैं। देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं, खेलों में मेडल लाते हैं पर लाखों सिरफिरे युवा तख्ता पलट के ख्वाब में कितने हिंसक हो सकते हैं, यह भी आज पता चल गया।
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एक बर की बात है अक पेपरां के दिन थे अर नत्थू बैठ्या टीवी पै ‘शीला की जवानी’ देखण मैं बावला हो रह्या था। उसका बाब्बू गुर्राते होये बोल्या- बेटा! पढ ले, शीला तो पेपरां पाच्छै भी जवान रहवैगी अर जै तूं पास नीं होया तो हम इस महंगाई मैं तेरी फीस भरते-भरते कती बुढ्ढे-फूस हो ज्यांगे।

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