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तलघर में डूबता लाचार विकास

08:07 AM Aug 07, 2024 IST
तलघर में डूबता लाचार विकास
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तीरथ सिंह खरबंदा

विकास जब तक गांव छोड़कर दिल्ली तक न पहुंचा था तब तक उसे इस बात की खबर न थी कि विकास का रास्ता तलघर से होकर गुजरता है।
वह इस बात से भी बेखबर था कि कंक्रीट के जंगलों में, गगनचुम्बी इमारतों के नीचे जगह-जगह गाजर घास की मानिंद तलघर उग आए थे जो समय के साथ कोचिंग सेंटर्स में तब्दील हो गए थे।
कई तलघर असमय प्रतिभाओं को लील रहे थे। जो उनसे उम्मीद लगाए बैठे थे उन्हें उम्मीदों के बदले कुछ मुआवजा और खोखली शाब्दिक सांत्वना मिल रही थी। रस्मी कार्रवाई के लिए शासन- प्रशासन सक्रिय हो जाता था। किसी कमजोर को चिन्हित कर बलि का बकरा बनाया जाता। उसके बाद दुनिया किसी नई घटना के इंतजार में फिर जैसी चल रही थी वैसी की वैसी ऐसे चल पड़ती जैसे कहीं कुछ हुआ ही न था।
विकास के पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही थी। वह जहां-तहां बाढ़ के पानी में गले-गले फंसा हुआ था। उसकी ट्रेन आए दिन पटरी से उतर रही थी। उसकी लगाई बागड़ उसके ही खेतों को खा रही थी। चौकीदारों ने लुटेरों से हाथ मिला लिए थे।
विकास के नाम के नारे लगाते नेता वोटों की फसल काटने में व्यस्त थे। वे दूसरों की कमीज पर कीचड़ उछाल खुद की कमीज को उजला बता रहे थे।
सड़कों पर खड़े वाहन कागज की नाव की मानिंद पानी में तैर रहे थे। कहने को सड़कें थीं और नालियां भी फिर भी जगह-जगह जल भराव था।
कंक्रीट के दानव, बच्चों के पार्क और खेल एरिया तक निगल गए थे। स्कूल हैं किन्तु खेल के मैदान नदारद थे। सड़कें पार्किंग स्थली बनी हुई थीं। खेल के मैदानों और बगीचों पर नई इमारतें तन गई हैं। स्कूल-कॉलेज से ज्यादा कोचिंग में भीड़ मची है। उधर नए भवन तो इधर आए दिन परीक्षा के पेपर लीक हो रहे हैं।
राजनीति के दलदल में हर तरफ फिसलन ही फिसलन है। एक कदम आगे चलते हुए दो कदम पीछे फिसल रहे हैं। भाई-भतीजावाद तो जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा किन्तु सारे ठेके कथित जीजा और सालों के नाम हो रहे हैं।
माफिया की नई फसल मंडी में आ गई है। जिसमें माफियाओं की तरह-तरह की नई-नई किस्में आ गई हैं। रेत-माफिया, भू-माफिया, पेपर- माफिया, और अब कोचिंग-माफिया। नदियों पर खड़े पुल अचानक भरभरा कर गिर रहे हैं। पहली ही बारिश में सड़कों की पसलियां झांकने लगती हैं। कानून के राज में बुलडोजर त्वरित न्याय कर रहे हैं।
कबीर के लाख मना करने के बावजूद साधु की जात पूछी जा रही है। कुर्सी पर बैठे निरक्षर तक ज्ञान बांटने में लगे हैं। अपराधी नैतिकता की दुहाई और बेईमान ईमानदारी की नसीहतें दे रहे हैं।
विकास का हमशक्ल येन-केन प्रकारेण कुर्सी हासिल करने की जुगाड़ में लगा है। असल विकास तलघर में गले-गले पानी में फंसा, कीचड़ से सराबोर हो रहा है।

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