मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

भारत विरोध के बाद घर में ही घिरने लगे हैं मुइज्जू

08:17 AM Feb 10, 2024 IST

हरीश मलिक

मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के भारत विरोधी अभियान के बाद दिल्ली में पिछले दिनों आयोजित सचिव स्तरीय बातचीत में भारत ने अपने सैनिकों को मई तक वापस बुलाने एवं उनकी जगह सिविलियन तकनीशियनों की तैनाती करने की बात कही है। लेकिन एक बात तो तय है कि ‘इंडिया आउट’ की अपनी भारत विरोधी नीति के चलते मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अपने घर में ही घिर गए हैं। भारत को आंख दिखाने की कोशिश करने वाले मुइज्जू को लगातार अपनों से ही करारा झटका मिल रहा है। विपक्षी दलों के पास मुइज्जू के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए पर्याप्त समर्थन है, यदि वे इस पर अमल करेंगे तो राष्ट्रपति संकट में आ जाएंगे।
दरअसल, मोइज्जू अब तक भारत विरोध का ही झंडा बुलंद कर रहे थे, लेकिन अब उनका मालदीव में भी तानाशाही रवैया सामने आया है। उन्होंने विपक्षी दलों को संसद में घुसने से ही रोकने का प्रयास किया है। वहीं कैबिनेट के चार सदस्यों को लेकर विपक्ष की मंजूरी न मिलने की वजह से मालदीव की संसद में जमकर हंगामा हुआ। यहां तक कि सांसदों के बीच मारपीट तक हो गई। इसमें मुइज्जू के समर्थक सांसद भी चपेट में आए हैं। इससे पहले राष्ट्रपति मुइज्जू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस यानी पीएनसी राजधानी माले में ही बड़ा चुनाव हार गई। माले में मेयर चुनाव में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी यानी एमडीपी के एडम अजीम को जीत मिली, जो भारत समर्थक माने जाते हैं। इस जीत के साथ ही माले की जनता ने भी भारत के समर्थन और मुइज्जू की नीति के विरोध पर मुहर लगा दी।
दरअसल, मुइज्जू मालदीव की जनता को यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अपने ‘इंडिया आउट’ के चुनावी वादे को अमलीजामा पहना रहे हैं। भारत और मालदीव आपसी संबंधों की बात करें तो 1965 में मालदीव की आजादी के बाद से सैन्य, रणनीतिक, पर्यटन, आर्थिक, औद्योगिक, चिकित्सकीय और सांस्कृतिक जरूरतों के लिए वह भारत पर आश्रित रहा है। मालदीव का फैलाव भारत के लक्षद्वीप की उत्तर-दक्षिण दिशा में है। कई दशकों से हमारे संबंध घनिष्ठ, सौहार्दपूर्ण और बहुआयामी रहे हैं। सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई। दरअसल, मालदीव में पिछले साल सितंबर में राष्ट्रपति पद के चुनाव से कड़वाहट के अंकुर फूटे। मालदीव का राष्ट्रपति निर्वाचित होने से पहले मुइज्जू ने चुनाव प्रचार के दौरान ही ‘इंडिया आउट’ नाम से अभियान चलाया था, जिसमें वहां मौजूद भारतीय सैनिकों को वापस भेजने का वादा शामिल था। मालदीव के विदेश मंत्रालय ने दावा किया है कि भारत इस साल मई तक मालदीव से अपने सैनिक हटा लेगा। अधिकारियों ने कहा कि हिंद महासागर द्वीपसमूह में तैनात लगभग 80 सैनिकों की जगह भारतीय सिविलियन तकनीशियन ले लेंगे। मालदीव ने द्विपक्षीय सहयोग से संबंधित कई मुद्दों पर दिल्ली में एक उच्चस्तरीय बैठक में बनी सहमति का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय सैनिकों का पहला समूह 10 मार्च तक और बाकी 10 मई तक देश से रवाना हो जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले चीन-तुर्की से दोस्ती बढ़ाते हुए मालदीव ने भारत का हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौता रद्द कर दिया था। मुइज्जू के इस भारत विरोधी रवैये को लेकर मालदीव के विपक्षी नेता खासे चिंतित हैं। यही वजह है कि जब से मुइज्जू और भारत आमने-सामने आए हैं, मालदीव के विपक्षी नेता सत्तारूढ़ पीएनसी के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रुख दिखा रहे हैं। दरअसल, पिछले साल राष्ट्रपति बनते ही चीन समर्थक मुइज्जू ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। भारत के बजाय पहला दौरा तुर्की का करने, ‘हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते’ को रद्द करने और चीन के साथ समझौते करने जैसे भारत विरोधी कदम मुइज्जू लगातार उठा रहे हैं। इसके अलावा मुइज्जू और एमडीपी व विपक्षी दलों के बीच कैबिनेट मेंबर्स की मंजूरी को लेकर भी मतभेद हैं। एमडीपी और डेमोक्रेट्स ने चार सदस्यों को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद मुइज्जू के सांसदों ने संसद में प्रदर्शन शुरू कर दिया। मतभेद इतना बढ़ा कि मुइज्जू सरकार के समर्थक और विपक्षी सांसदों के बीच हाथापाई तक हो गई। मालदीव की संसद में इस झड़प का वायरल वीडियो भी सामने आया।
लेकिन एक हकीकत यह भी है कि मालदीव में विपक्ष के एकजुट रहने पर मुइज्जू की कुर्सी को खतरा पैदा हो सकता है। इस बीच मालदीव की संसद में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने पहले संबोधन में एक बार फिर भारत विरोधी रुख दोहराया। उन्होंने भारत का नाम लिए बिना कहा कि किसी भी देश को मालदीव की संप्रभुता में हस्तक्षेप करने या उसे कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके साथ ही मालदीव भारत के साथ पानी पर रिसर्च करने वाले एग्रीमेंट को भी रिन्यू नहीं करेगा। मालदीव की मुख्य विपक्षी पार्टी एमडीपी और डेमोक्रेट ने मुइज्जू के रुख का विरोध किया है। एमडीपी ही राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रही है। उसने महाभियोग के लिए जरूरी सांसदों का समर्थन लिखित तौर पर हासिल कर लिया है। कहा जा रहा है कि महाभियोग लाने की तारीख पर जल्द ही फैसला होगा।
दरअसल, मालदीव में मुइज्जू की गठबंधन सरकार है और उसे पद पर बने रहने के लिए पर्याप्त सांसदों के समर्थन की दरकार है। विपक्ष के एकजुट रहने पर मुइज्जू की कुर्सी जा सकती है। संसद में मुइज्जू की पार्टी को इन झटकों से पहले भी राजधानी माले के मेयर के चुनाव में करारी शिकस्त मिली है। जनवरी में हुए मेयर के चुनाव में राष्ट्रपति मुइज्जू की पार्टी को हार झेलनी पड़ी थी। मेयर का चुनाव भारत समर्थक एमडीपी उम्मीदवार एडम अजीम ने जीता। यानी राजधानी माले की जनता ने भी भारत विरोधी राष्ट्रपति मुइज्जू की पार्टी को बुरी तरह से खारिज कर दिया।
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भारत-मालदीव के विवाद को हवा देने के पीछे चीन की भूमिका है। भारत-मालदीव के इस विवाद को बढ़ावा देने में चीन के निजी हित भी छिपे हैं। चीन एक रणनीति के तहत मालदीव में आर्थिक सहयोग बढ़ा रहा है ताकि वो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हिंद महासागर में पहुंच और ताकत बढ़ाने के मंसूबों में सफल हो सके। उसकी मालदीव में ज्वाइंट ओशन ऑब्जर्वेशन स्टेशन बनाने की बहुत पुरानी मंशा किसी से छिपी नहीं है। लेकिन फिलहाल तो भारत ने अपनी कूटनीतिक चाल से यह साफ संकेत दे दिए हैं कि मालदीव अगर चीन की चाल में फंसा तो उसका हश्र भी श्रीलंका और पाकिस्तान जैसा हो सकता है। ऐसे कठिन हालात का अंदेशा मालदीव के विपक्षी दलों को भी है। इसलिए वे मान रहे हैं कि भारत के साथ जारी तनाव के चलते अगर भारतीय पर्यटक मालदीव की ओर से मुंह मोड़ेंगे तो मालदीव की अर्थव्यवस्था इतनी चरमरा जाएगी कि उससे उबरना मुश्किल हो जाएगा। हाल ही में अंतरिम बजट में भारत द्वारा मालदीव को दिये जाने वाले बजट में कटौती का निहितार्थ निश्चित रूप से मोइज्जू काे जल्द समझ में आ जाना चाहिए।

Advertisement

लेखक वरिष्ठ संपादक हैं।

Advertisement
Advertisement