For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

पहचान के बाद सजगता से काबू रखें जटिल रोग पर

07:28 AM Apr 17, 2024 IST
पहचान के बाद सजगता से काबू रखें जटिल रोग पर
Advertisement

हीमोफीलिया आनुवांशिक रक्तस्राव विकार है जो आजीवन चलता रहता है। यूं तो हीमोफीलिया किसी भी उम्र में और महिला-पुरुष दोनों को हो सकता है। लेकिन उन बच्चों में ज्यादा होता है जिनकी हीमोफीलिक फैमिली हिस्ट्री है। कई बार परिस्थितिवश सर्जरी होने या ब्लड ट्रांसफ्यूजन की स्थिति में भी ब्लड डिसआर्डर देखने को मिलता है और व्यक्ति को हीमोफीलिया हो सकता है।

क्या है हीमोफीलिया

यह रोग शरीर में रक्त को जमाने वाले प्लाज़्मा प्रोटीन फैक्टर की कमी होने की वजह से होता है जिससे रक्त में थक्के बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में आमतौर पर प्रोटीन के 13 फैक्टर होते हैं। ये फैक्टर लिम्फ नोड्स के साथ मिलकर रक्त में थक्के बनाने और अत्यधिक रक्तस्राव को रोकने का काम करते हैं। हीमोफीलिया के मरीजों में यह प्रोटीन फैक्टर नहीं होता जिसकी वजह से चोट लगने या दुर्घटना होने पर उनके शरीर में रक्त जम नहीं पाता और असामान्य रूप से बहता रहता है। मरीजों में यह रक्तस्राव बाहरी ही नहीं, अंदरूनी भी होता है जो ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि अक्सर इसका पता नहीं चल पाता। इसमें त्वचा पर नीले रंग के चकत्तों को प्रायः चोट लगने से पड़े निशान मान कर नजरअंदाज कर दिया जाता है। अगर समुचित इलाज न किया जाए यह जोड़ों की विकलांगता की वजह भी बन सकता है।

Advertisement

कई किस्में हैं रोग की

हीमोफीलिया मूलतः रक्त में प्रोटीन के 3 फैक्टर की कमी से होता है। जिसके आधार पर हीमोफीलिया को 3 श्रेणियों में बांटा गया है- ए, बी और सी। हीमोफीलिया ए प्रोटीन के फैक्टर-8 की कमी से होता है। हीमोफीलिया बी फैक्टर -9 की कमी से और हीमोफीलिया सी फैक्टर-11 की कमी से होता है। हीमोफीलिया ए सबसे ज्यादा होता है। हीमोफीलिया के तीन स्तर होते हैं- माइल्ड हीमोफीलिया जिसमें प्रोटीन के फैक्टर-8 का स्तर सामान्य है यानी 5-40 प्रतिशत है। माइल्ड इफेक्ट होने के कारण हीमोफीलिया देर से पकड़ में आता है। ऐसे व्यक्ति समुचित उपचार के साथ काफी सामान्य जीवन जी सकते हैं। मॉडरेट हीमोफीलिया व सीवियर हीमोफीलिया अन्य लेवल हैं।

Advertisement

कौन आता है ज्यादा चपेट में

हीमोफीलिया आनुवंशिक विकार है जो मां के हीमोफीलिया इंफेक्टिड एक्स क्रोमोसोम के माध्यम से पुरुष भ्रूण में आता है और जिंदगी भर बना रहता है। हीमोफीलिया के लक्षण बचपन में ही देखने को मिल जाते हैं। हीमोफीलिया रोग 99 प्रतिशत पुरुषों या लड़कों में ही पाया जाता है। दुनिया में हर 5 हजार पुरुष बच्चों पर एक को हीमोफीलिया है।

ये हैं लक्षण

छह महीने के शिशु या छोटे बच्चों में भी हीमोफीलिया की पहचान हो जाती है। आंतरिक रक्तस्राव शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। मुख्य रूप से घुटनों, टखनों , कोहनियों, कूल्हों में होता है। इससे जोड़ और उसके आसपास के टिशूज को काफी नुकसान पहुंचता है-सूजन आ जाती है, गांठें बन जाती हैं, दर्द रहता है और उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है। बाहरी त्वचा नीली भी पड़ जाती है। कभी-कभी यह रक्तस्राव पेट, मुंह, मस्तिष्क में भी होता है जो काफी घातक है। हीमोफीलिया में रक्तस्राव बाहरी कारणों से भी होता है जिसमें मरीज का खून बहना रोकना काफी मुश्किल हो जाता है। जैसे- नाक से बेवजह खून आना, चोट लगने पर, दांत टूटने या मसूड़ों में खराबी आने पर, चलना सीखने या खेलते समय। बीमारी का अंदेशा होने पर हीमोटोलॉजिस्ट को कंसल्ट करना चाहिए।

उपचार का ढंग

हीमोफीलिया का कोई परमानेंट उपचार नहीं है, सिर्फ नियत समय पर दवाओं से कंट्रोल किया जा सकता है। मरीजों को नियमित सप्ताह में 2-3 बार एंटी-हीमोफिलेक क्लॉटिंग प्रोटीन फैक्टर इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इसे जीन थेरेपी कहा जाता है और यह आजीवन दी जाती है। अगर मरीज ये इंजेक्शन नियमित नहीं ले तो इन्हें रक्तस्राव के समय तो जरूर लगवाया जाए। वरना परिणाम घातक हो सकते हैं। अगर किसी की फैमिली में हीमोफीलिया मरीज है या फिर मां हीमोफीलिया कैरियर है तो गर्भावस्था के दौरान कैरियर डिटेक्शन एंड प्री नेटल टेस्ट किए जाते हैं। वहीं 10वें-11वें सप्ताह में सीवीएस टेस्ट किया जाता है। इससे गर्भ में बच्चे में हीमोफीलिया जीन का पता चल जाता है। 15वें-20वें सप्ताह के दौरान एम्नियोटिक फ्ल्यूड का परीक्षण भी किया जाता है। अगर टेस्ट से बच्चे में हीमोफीलिया बीमारी की पुष्टि हो जाती है तो डॉक्टर महिला को गर्भपात की सलाह देते हैं।
देश में राष्ट्रीय स्तर पर पर हीमोफीलिया फेडरेशन और हीमोफीलिया सोसाइटी का गठन किया गया है। इसके तहत देश भर में कई सरकारी हीमोफीलिया सेंटर शुरू किए गए हैं। जिनमें हीमोफीलिया की रोकथाम के लिए मरीजों को गर्भावस्था के दौरान सीवीएस टेस्ट और मरीज जीन थेरेपी मुफ्त मुहैया कराई जाती है। इसमें उन्हें एंटी-हीमोफिलेक क्लॉटिंग प्रोटीन फैक्टर इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। कई एनजीओ भी ये इंजेक्शन कम दामों पर उपलब्ध करा रहे हैं। लेकिन हीमोफीलिया पर काबू पाने के लिए आवश्यकता जन जागरुकता लाने की है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×