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परिसीमन के बाद दोबारा बनी गुड़गांव सीट पर मेवात का वर्चस्व घटा

09:47 AM Apr 26, 2024 IST
परिसीमन के बाद दोबारा बनी गुड़गांव सीट पर मेवात का वर्चस्व घटा
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* देश के पहले शिक्षा मंत्री ने भी किया गुड़गांव का संसद में प्रतिनिधित्व
* 1952 में यूपी के रामपुर और 1957 में गुड़गांव से सांसद बने मौलाना अबुल कलाम आजाद
* परिसीमन के बाद से गुड़गांव में राव इंद्रजीत सिंह का दबदबा, जीत की लगा चुके हैट्रिक
* भाजपा टिकट पर तीसरी बार चुनावी रण में, कांग्रेस में टिकटों को लेकर फंसा पेंच
* मिलेनियम सिटी की सीट पर सभी की नज़र, प्रदेश में सबसे अधिक मतदाता इसी क्षेत्र में

विवेक बंसल/हमारे प्रतिनिधि
गुरुग्राम, 25 अप्रैल
गुरु द्रोणाचार्य की नगरी गुरुग्राम (रिकार्ड में गुड़गांव) और आज की मिलेनियम सिटी का नाम विश्व के मानचित्र पर अव्वल दर्जे के शहरों में दर्ज है। बेशक, गुरुग्राम को साइबर सिटी भी कहा जाता है, लेकिन प्रदेश की मौजूदा और पूर्व सरकारों ने भी गुरुग्राम को उसका बनता हक आज तक नहीं दिया। टैक्स कलेक्शन में पूरे प्रदेश में अव्वल इस इलाके में आज भी मूलभूत सुविधाओं का संकट देखने को मिल रहा है। अब एक बार फिर यह इलाका चुनावी रंग में रंगा हुआ है। ज्वाइंट पंजाब के समय भी गुड़गांव संसदीय सीट रही है लेकिन बीच में इसे खत्म करके महेंद्रगढ़ के साथ मिला दिया गया। 2009 के चुनावों से लागू हुए परिसीमन में यह सीट फिर से अस्तित्व में आई। ‘रामपुरा हाउस’ का पहले महेंद्रगढ़ और अब गुड़गांव पर दबदबा बना हुआ है। फिर से अस्तित्व में आने के बाद से 2019 तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में इस सीट से राव इंद्रजीत सिंह का कब्जा बना हुआ है। 2009 में उन्होंने कांग्रेस और इसके बाद 2014 और 2019 में भाजपा टिकट पर जीत हासिल की।
राव इंद्रजीत सिंह गुड़गांव में जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं लेकिन भाजपा टिकट पर जीत की हैट्रिक के लिए वे इस बार फिर से चुनावी रण में हैं। अभी तक लगातार चार बार लोकसभा पहुंचने वाले राव इंद्रजीत सिंह प्रदेश के दूसरे नेता हैं। हालांकि उन्हाेंने सीट बदल कर यह रिकार्ड बनाया है। एक ही संसदीय क्षेत्र से चार बार एमपी बने का रिकार्ड अभी भी पंडित चिरंजी लाल शर्मा के नाम दर्ज है। वे करनाल से लगातार चार बार सांसद रहे।
गुड़गांव सीट के साथ एक रोचक पहलू यह भी है कि देश के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद भी गुड़गांव का संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 1952 में उन्होंने पहला चुनाव यूपी के रामपुर से जीता था और इसके बाद 1957 में वे गुड़गांव से सांसद रहे। गुड़गांव सीट पर 1952 का पहला चुनाव कांग्रेस के ठाकुर दास ने जीता। दरअसल, 1952 में जब गुड़गांव लोकसभा सीट बनी तो उसमें फरीदाबाद, गुरुग्राम और महेंद्रगढ़ भी शामिल थे।
1977 में गुड़गांव सीट खत्म हो गई और फरीदाबाद तथा महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आए। गुड़गांव जिले की तीन विधानसभा सीटें फरीदाबाद में और 6 विधानसभा सीटें महेंद्रगढ़ में मिला दी गई। 2004 में परिसीमन हुआ और 2008 में नोटिफिकेशन में गुड़गांव फिर से संसदीय सीट बनी। इसमें पांच विधानसभा सीटें फरीदाबाद से और चार विधानसभा सीटें महेंद्रगढ़ से मिलकर गठन हुआ था।

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1977 में धर्मबीर वशिष्ठ बने थे सांसद

जनता पार्टी की लहर में सबसे पहले 1977 में धर्मवीर वशिष्ठ फरीदाबाद (पुरानी लोकसभा) से पहली बार सांसद बने थे। इसके बाद 1980 में कांग्रेस से चौधरी तैयब हुसैन, 1984 में कांग्रेस के चौधरी रहीम खान, 1988 में लोकदल के खुर्शीद अहमद और 1989 में कांग्रेस के चौधरी भजनलाल ने जीत हासिल की। कांग्रेस से 1991 के अवतार सिंह भडाना ने चुनाव जीता तो 1996, 1998 और 1999 में भाजपा के रामचंद्र बैंदा ने जीत हासिल की। 2004 में अवतार सिंह भड़ाना फिर से सांसद बने। परिसीमन के बाद 2009 के पहले लोकसभा चुनावों में अवतार सिंह भड़ाना ने फिर कांग्रेस टिकट पर जीत हासिल की।

जब निर्दलीय प्रकाश वीर ने जीता चुनाव

1958 के उपचुनाव में निर्दलीय प्रकाश वीर शास्त्री ने जीत हासिल की। इसके बाद 1962 में कांग्रेस के गजराज सिंह, 1967 में निर्दलीय अब्दुल गनी और 1971 में कांग्रेस के तैयब हुसैन ने जीत हासिल की थी। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी से मनोहर लाल सैनी ने मौजूदा सांसद राव बीरेंद्र सिंह को चुनाव हराया। 1971 में राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी से चुनाव जीता था। इसके बाद राव वीरेंद्र सिंह ने 1980, 1984, 1991 में कांग्रेस टिकट पर तथा 1989 में जनता दल की टिकट पर जीत हासिल की। राम सिंह ने 1991 में कांग्रेस और 1996 में भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर जीत दर्ज की है 1998 में कांग्रेस की टिकट पर राव इंद्रजीत सिंह ने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। हालांकि अगले साल यानी 1999 में कारगिल युद्ध के बाद भाजपा लहर और भाजपा टिकट पर डॉक्टर सुधा यादव के सामने वे चुनाव हार गए। 2004 में राव इंद्रजीत ने कांग्रेस टिकट पर फिर से जीत दर्ज की। भूतपूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह और राम सिंह केंद्र में मंत्री भी रहे। वहीं राव इंद्रजीत सिंह पार्टी और टिकट बदलने के बावजूद 2009 से केंद्र में मंत्री बने हुए हैं।

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इस तरह मेवात का वर्चस्व हुआ कम

परिसीमन के राजनीतिक खेल में फिर से गुड़गांव लोकसभा 2008 में बनी। लेकिन इसके लिए मेवात की हथीन विधानसभा को फरीदाबाद में और फिरोजपुर-झिरका तथा तावड़ू विधानसभा क्षेत्र को तोड़ दिया गया। इस तरह से फिरोजपुर-झिरका, पुन्हाना, नूंह विधानसभा क्षेत्र नया नाम पड़ा और उन्हें गुड़गांव में मिला दिया गया। पहले हथीन, फिरोजपुर-झिरका, नूंह व तावड़ू फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र में थे। इस कारण से मेवात के मतदाताओं का वर्चस्व कम हुआ। पुन्हाना नयी विधानसभा बनी और तावड़ू खत्म हो गई। तावड़ू का आधा हिस्सा नूंह में और आधा सोहना में मिला दिया गया।

हैट्रिक के लिए उतरे केपी गुर्जर

वहीं फरीदाबाद से इस बार केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर जीत की हैट्रिक के लिए चुनावी मैदान में हैं। 2014 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था। मोदी लहर में वे 2019 में भी जीत हासिल करने में कामयाब रहे। भाजपा नेतृत्व ने एक बार फिर गुर्जर पर विश्वास जताया है। अब रोचक पहलू यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा दोनों संसदीय क्षेत्रों – गुरुग्राम व फरीदाबाद में अपने प्रत्याशी घोषित कर चुकी है लेकिन कांग्रेस में दोनों सीटों पर पेंच फंसा हुआ है। गुरुग्राम में पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव और फिल्म अभिनेता राज बब्बर में टिकट को लेकर लॉबिंग चल रही है। इसी तरह फरीदाबाद में पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह और करण सिंह दलाल में से किसी एक को टिकट मिलने की उम्मीद है।

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