विज्ञापन और नैतिकता
जन संसद की राय है कि मशहूर हस्तियों को विज्ञापन करते हुए नैतिक मूल्यों व अपने प्रशंसकों के कल्याण का भी ध्यान रखना चाहिए। केवल अपने आर्थिक लाभ के लिये नकारात्मक तथ्यों को सकारात्मक दर्शाने का मोह घातक हो सकता है। उनकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।
गुणवत्ता का हो प्रचार
बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए विज्ञापनों द्वारा करोड़ों रुपया खर्च करती हैं। वहीं आम जनता इससे प्रभावित होकर उत्पादकों को प्रयोग करती है। कई बार कंपनियां अपने हानिकारक उत्पादों को बड़ी हस्तियों द्वारा विज्ञापित कर भारी-भरकम फीस देकर लाभ कमाती हैं। सितारों को चाहिए कि उन्हें पैसा कमाने के लिए उचित गुणवत्ता न होने वाले या लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालने वाले उत्पादकों का विज्ञापन नहीं करना चाहिए। इससे वे अपने चाहने वालों को धोखा दे रहे हैं। सितारों को चाहिए कि किसी उत्पाद की गुणवत्ता तथा उससे मिलने वाले लाभ को ध्यान में रखकर ही उसका विज्ञापन करें।
शामलाल कौशल, रोहतक
अनुचित कदम
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
नैतिकता का तकाजा
युगल किशोर शर्मा, खाम्बी, फरीदाबाद
आर्थिक प्रलोभन
देश के भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्मश्री, पद्मभूषण अलंकृत महानुभाव जब तेल, पानी, साबुन बेचते दिखते हैं तो सिर शर्म से झुक जाता है। वर्तमान में पैसा और प्रदर्शन इतना हावी है कि नैतिकता ताक पर रख दी गयी है। विज्ञापनों में ही नैतिकता कहां है। अन्तर्वस्त्रों तक के विज्ञापनों के लिए तो ये सितारे संकोच नहीं करते। अमिताभ बच्चन के पान-मसाले के विज्ञापन से हट जाने के बाद क्या मसाला बिकना बंद हो जायेगा? इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि अमिताभ ने अपनी साख बचाने के लिए इस विज्ञापन से अपना नाम वापस ले लिया। क्या अमिताभ विज्ञापन में आने से पहले नहीं जानते थे कि पान-मसाले हानिकारक पदार्थ हैं? आज इन सितारों के लिए पैसा, प्रचार और प्रदर्शन ही सब कुछ रह गया है, और यही इनकी नैतिकता है।
कविता सूद, पंचकूला
सितारों का कर्तव्य
भगवानदास छारिया, सोमानी नगर, इंदौर
कार्रवाई भी हो
फिल्म और राजनीति से जुड़े मशहूर सितारे समाज के लिए एक आदर्श माने जाते हैं। बाजार की प्रतिस्पर्धा में विज्ञापनों के बाजार में सितारों को एक नया मुकाम मिल गया है। बेशक यह परंपरा पुरानी है मगर कभी चुनिंदा विज्ञापनों में ही बड़े सितारों की भूमिका होती थी। आज विज्ञापनों में नामचीन सितारों की मौजूदगी न केवल एक रिवाज़ बना चुका है बल्कि सितारों ने अपनी नैतिक जवाबदेही की धज्जियां उड़ा दी हैं। दौलत की भूख में नैतिकता के चश्मे को उतार फेंकने वाले सितारों ने प्रतिबंधित और नुकसानदेह उत्पादों को प्रोत्साहित किया है। अपने नैतिक कर्तव्य से बेखबर सितारों की जहां जिम्मेदारी तय होनी चाहिए वहीं कड़ी कार्रवाई भी हो।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
दबाव बनेगा
देवी दयाल दिसोदिया, फ़रीदाबाद