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फैसले से किसानों व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव

06:30 AM Sep 21, 2023 IST
फैसले से किसानों व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव
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डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठर

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पंजाब और हरियाणा में पर्यावरण हितैषी सीधी बिजाई धान को प्रोत्साहन देने के लिए सरकारी खरीद समय रहते करना चाहिए। किसानों का कहना है कि केन्द्र सरकार द्वारा पहली अक्तूबर से धान की सरकारी खरीद शुरू करने का फैसला अव्यावहारिक है। जो प्रदेश सरकार द्वारा प्रोत्साहन देने वाली भूजल बचत व पर्यावरण हितैषी सीधी बिजाई धान के हित में नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों से, भूजल संरक्षण के लिए हरियाणा और पंजाब सरकार कम अवधि वाली धान किस्मों (पीआर-126 आदि) के साथ सीधी बिजाई धान तकनीक को प्रोत्साहन देती रही है। जिसे हरियाणा के किसानों ने इस वर्ष खरीफ-2023 सीजन में तीन लाख एकड़ से ज्यादा यानी लगभग आठ प्रतिशत धान क्षेत्र पर सफलतापूर्वक अपनाया है, जिसमें धान की बुआई 20 मई से 15 जून तक अनुशंसित की जाती है और जल्दी पकने वाली पीआर-126 आदि किस्में लगभग 115 दिन में पक कर 20 सितम्बर तक मंडियों में बिकने के लिए आ जाती है। लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा पहली अक्तूबर से धान की सरकारी खरीद शुरू करने के अव्यावहारिक फैसले के कारण, किसानों को मजबूरन समर्थन मूल्य से कम पर, अपनी फसल उपज बिचौलियों को बेचनी पड़ती है, ज़िससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है।
धान के कटोरे के रूप में प्रसिद्ध हरियाणा के करनाल ज़िले की अनाज मंडियों में पिछले वर्षों की भांति, इस वर्ष भी 17 सितम्बर, 2023 तक 32,000 क्विंटल से ज्यादा धान उपज पहुंच चुकी है और पंजाब-हरियाणा राज्यों में 30 सितम्बर तक सीधी बिजाई विधि से बोयी गई जल्दी पकने वाली सभी धान किस्मों की कटाई हो जाने की संभावना है, जिसकी वजह से किसानों को घोषित समर्थन मूल्य 2203 रुपये प्रति किवंटल की बजाय अपनी धान उपज लगभग 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर मजबूरन बेचनी पड़ रही है। ज़िससे किसानों को दस-बारह हजार रुपये प्रति एकड़ का भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर भ्रष्ट बिचौलिये व आढ़ती इस धान उपज को कुछ दिन बाद शुरू होनी वाली सरकारी खरीद में दिखाकर, करोड़ों रुपये का चूना सरकार को लगायेंगे। ज़िससे देश में कालाबाजारी बढ़ेगी। इसके अलावा बिचौलियों और आढ़तियों की मिलीभगत वाली गैर-कानूनी समानांतर अर्थव्यवस्था बनती जा रही है।
रोपाई धान भूजल बर्बादी के लिए बदनाम रही है। इसीलिये सरकार, एक-तिहाई लागत, भूजल, ऊर्जा, लेबर बचत वाली तथा ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जन कम करने वाली सीधी बिजाई धान तकनीक को प्रोत्साहन दे रही है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार की वेबसाइट के अनुसार, वर्ष 2022 में किसानों ने 72 हजार एकड़ कृषि भूमि पर सीधी बिजाई धान उगाकर 31500 करोड़ लीटर भूजल की बचत की है। यानी प्रदेश के कुल धान क्षेत्र 36-38 एकड़ पर रोपाई धान की बजाय सीधी बिजाई धान उगाकर 14-16 बीसीएम भूजल वार्षिक की बचत हो सकती है! ज़िससे लगभग एक हजार करोड़ रुपये वार्षिक की कृषि उपयोग सब्सिडी वाली बिजली की भी बचत होगी।
महत्वपूर्ण तथ्य है कि सीधी बिजाई धान की फसल मध्य सितम्बर में पकने से पराली जलाने की घटनाएं और गंभीर वायु प्रदूषण में भी कमी आयेगी। इसकी वजह यह है कि धान फसल जल्दी पकने से किसानों को पराली संभालने के लिए ज्यादा समय मिलेगा। दरअसल, किसान धान कटाई और गेहूं की बुआई के बीच 40 दिन अंतराल के समय में हरी खाद के लिए ढैंचा आदि फसल भी ले सकते हैं। ज़िससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में मदद मिलेगी और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी। अत: किसान व पर्यावरण हित में धान की खरीद सितंबर के मध्य में तार्किक है।
निस्संदेह, धान की फसल हमारी खाद्य शृंखला व किसानों की आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है। हरियाणा सरकार के डीएसआर-2023 पोर्टल के अनुसार, कपास बहुल सिरसा जिले में 74,000 एकड़ भूमि पर सीधी बिजाई धान की बुआई हुई है! प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तालिका के अनुसार, धान फसल किसानों को वार्षिक 101,190 रुपये प्रति हेक्टेयर शुद्ध लाभ देती है जो दूसरी खरीफ फसलों मक्का के मुकाबले दुगना लाभदायक है! ज़िसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भी प्रमाणित किया, जिसके चार संस्थानों द्वारा पंजाब और हरियाणा में फसल प्रणालियों के विविधीकरण पर जून-2021 में एक नीति पत्र लाया गया, जिसमें माना गया कि धान-गेहूं के मुकाबले किसानों को अन्य फसलों पर अपेक्षाकृत कम फायदा मिलता है! इसलिए फसल विविधीकरण आर्थिक तौर पर किसान हितैषी नहीं है और तकनीकी तौर पर अव्यावहारिक भी है क्योंकि खरीफ सीजन के वर्षा मौसम में शिवालिक हिमालय से लगते इन प्रदेशों में जलभराव एक गंभीर समस्या है। ज़िससे इन क्षेत्रों में मक्का, बाजरा, मूंग आदि फसलें उगाना ऊंचाई वाले कुछ क्षेत्र को छोड़कर लगभग असम्भव है। पंजाब और हरियाणा में जहां इस वर्ष जुलाई महीने में आयी बाढ़ आपदा से 6.87 लाख एकड़ धान फसल खराब होने से किसान पहले से ही परेशान हैं, वहीं सरकारी खरीद समय पर शुरू नहीं होने से उसकी मुसीबतें बढ़ी हैं।

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