ओवर स्पीडिंग पर नियंत्रण से थमेंगे हादसे
मधुरेन्द्र सिन्हा
भारत में हर दिन औसतन 400 लोग सड़क दुर्घटनाओं में काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें से औसतन 42 बालक होते हैं और 31 किशोर। कई, समय पर चिकित्सा सुविधा न मिल पाने के कारण घटनास्थल पर ही दम तोड़ देते हैं। मौतों के आंकड़ों को कम करने व दुर्घटनाओं को घटाने और एक जिम्मेदार नीति बनाने के लिए देश में कई आयोग बन चुके हैं, लेकिन फिर भी कुछ खास होता दिख नहीं रहा है। इनकी रिपोर्ट धूल खाती दिख रही है। इस दुखद और भयावह स्थिति को राष्ट्रीय महत्व देकर इसके समाधान का युद्धस्तरीय प्रयास होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
इस तरह के हादसों के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से पहला और सबसे बड़ा कारण है तयशुदा रफ्तार से कहीं ज्यादा रफ्तार से वाहन चलाना। इससे न केवल अपनी जान को खतरा होता है, बल्कि दूसरों की जान भी जोखिम में पड़ जाती है। लापरवाही सबसे बड़ा कारण है। एक गलती अपने अलावा दूसरों पर भी भारी पड़ सकती है। वाहन सही ढंग से न चलाने के अलावा हेल्मेट न पहनना मौत का कारण बनता है। देश में दुर्घटनाओं में मरने वालों में बिना हेल्मेट के चालकों की संख्या सबसे ज्यादा है। मशीनों का फेल हो जाना या टूटी-फूटी सड़कों का होना भी दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ के एक एक्सपर्ट के अनुसार बहुत सारी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है जैसे कानून का पालन करना तथा दोपहिया वाहन चालकों द्वारा नियमित रूप से हेल्मेट पहनना। अगर वाहन चालक निर्धारित गति से वाहन चलाता है, तो वह दुर्घटनाओं की चपेट में नहीं आता है। ओवर स्पीडिंग जान ले सकती है। दोपहिया सवारों के मामले में यह अक्सर देखा जाता है। यूनिसेफ के मुताबिक, देश में दुर्घटनाओं की संख्या में 10 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है, जो चिंताजनक है।
डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों के अनुसार भारत की सड़कों पर 30 तरह के वाहन चलते हैं और सभी का अपना तरीका है, और यह सड़कों पर भ्रम पैदा करते हैं। उन्होंने कहा कि दुर्घटनाओं में इतने लोगों का बेवजह मरना दुखद तो है, लेकिन इनसे जुड़े विश्वसनीय आंकड़े न होने से ठोस समाधान की दिशा में काम करना मुश्किल है। इस दिशा में कई आयोगों का गठन हुआ ताकि इस दिशा में काम हो सके, लेकिन सरकारों की ओर से कोई खास प्रगति नहीं हुई। ओवर स्पीडिंग के मसले को गंभीरता से देखा जाना चाहिए और उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।
दरअसल, आज के नौजवान आवेग में आकर काम करते हैं और वाहन तेज रफ्तार से चलाना उन्हें रोमांचित करता है। देश में सबसे ज्यादा लोग ओवर स्पीडिंग के कारण ही मरते हैं, और दुर्घटनाओं में मरने वालों के 72 प्रतिशत के लिए यही जिम्मेदार है। वाहन चालक ट्रैफिक पुलिस की यह चेतावनी भूल जाते हैं— ‘स्पीड थ्रिल्स बट किल्स’। हमारा यही रवैया देश को दुनिया के नक्शे में दुर्घटनाओं और मौतों की संख्या में सबसे ऊंचे नंबर पर पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है। हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि थोड़ी-सी सावधानियां, जैसे गति सीमा का पालन करना, सीटबेल्ट पहनना और हेल्मेट का सही इस्तेमाल करना, कई जिंदगियों को बचा सकती हैं।
दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र और डब्ल्यूएचओ ने एक दशक की योजना के अंतर्गत कई तरह की सिफारिशें की हैं। इसके तहत भारत सरकार ने भी 2030 तक देश में दुर्घटनाओं की संख्या को 50 प्रतिशत तक घटाने की मंशा रखी है। उल्लेखनीय है कि पश्चिमी देशों ने दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों पर काफी हद तक काबू पा लिया है। भारत में दुनिया के कुल 1 प्रतिशत वाहन हैं, जबकि दुर्घटनाओं में उसकी हिस्सेदारी 11 प्रतिशत की है।
भारत में कम उम्र के बच्चों और किशोरों की जान अक्सर खतरे में पड़ जाती है। इसमें गलती दोनों पक्षों की होती है, लेकिन एक पीढ़ी समय से पहले ही खत्म हो जाती है। बच्चे और महिलाएं सड़क पार करते वक्त तेज रफ्तार वाहनों के चपेट में आ जाते हैं। इसके लिए वाहन चालकों के साथ-साथ दोपहिया चालकों को भी शिक्षित करने की जरूरत है। गति सीमा से ऊपर वाहन चलाने वालों के लिए हालांकि कठोर आर्थिक दंड है, लेकिन चालक बाज नहीं आते। देश में सिर्फ गति पर नियंत्रण रखने से ही बड़े पैमाने पर दुर्घटनाओं से मुक्ति मिल सकती है। देश में 15 तरह के विभाग हैं जो सड़क सुरक्षा की दिशा में देखते और काम करते हैं, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है।
यहां पर रोड सेफ्टी पर बजट की बात भी उठती है। इसके लिए विभिन्न राज्यों में कोई निश्चित बजट नहीं है और न ही कोई योजनाबद्ध तरीके से उसका आवंटन है। हर विभाग के अपने-अपने बजट हैं, जो वे इस पर खर्च करते हैं, जिससे कोई प्रभावी कदम नहीं उठ पाते हैं। अभी बहुत सारे एंबुलेंस और अस्पताल चाहिए ताकि दुर्घटनाओं में घायल को सही समय पर इलाज मिल सके।
कुछ राज्यों ने इस दिशा में मुहिम चलाकर इस दिशा में सफलता पाई है। इसमें तेलंगाना और गुजरात ने कई तरह के प्रयोग किए हैं, जिससे मृत्यु दर में कमी भी आई है। तेलंगाना ने इस दिशा में पहल करते हुए पिछले साल 74 लोगों को मरने से बचाया। उन्होंने इसके लिए बच्चों को ट्रैफिक ट्रेनिंग देने जैसे काम किए, जिनका दूरगामी असर पड़ेगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।