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जल धाराओं संग निरंतर बहता अनूठा वाणकृमि

08:07 AM Apr 26, 2024 IST
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के.पी. सिंह
वाणकृमि एक अद्भुत समुद्री कृमि है। अंग्रेजी में इसे ऐरो वार्म कहते हैं। समुद्री जीवों का अध्ययन करने वाले जीव वैज्ञानिकों के लिए वाणकृमि एक अत्यंत महत्वपूर्ण कृमि है। इसके द्वारा जीव वैज्ञानिक सागर के पानी की गति और बहाव की दिशा सरलता से मालूम कर लेते हैं। वाणकृमि कभी भी एक स्थान पर नहीं रहता इसका संपूर्ण जीवन पानी के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहते हुए व्यतीत होता है। प्लेंकटन के अन्य जीवों के समान, वाणकृमि के तैरने की गति आसपास के पानी के बहाव की गति से कम होती है। यह विश्व के प्रायः सभी सागरों और महासागरों में तट से लेकर गहरे पानी तक में पाया जाता है। इसके बहुत से परिवार, वंश, जातियां एवं उपजातियां हैं। अधिकांश जातियों के वाणकृमि सागर तटों पर अथवा कम गहरे पानी में पाए जाते हैं, किंतु कम से कम तीन जातियों के वाणकृमि ऐसे हैं जो गहरे पानी की जलधाराओं में भी मिलते हैं। वाणकृमि लंबी-लंबी दूरियां हमेशा सागर की जलधाराओं के साथ बहते हुए तय करता है।
वाणकृमि एक बहुत छोटा कृमि है। इसकी लंबाई सामान्यतः एक सेंटीमीटर से भी कम होती है, किंतु कभी-कभी 5 सेंटीमीटर तक लंबे वाणकृमि भी देखने को मिल जाते हैं। इसका शरीर चपटा होता है। इसके शरीर के दोनों ओर के सिरे नुकीले और पतले होते हैं एवं मध्य भाग चौड़ा होता है। वाणकृमि के शरीर के तीन भाग होते हैं। इनमें पहले और अंतिम भाग को छोड़ कर शेष शरीर पारदर्शी होता है। इसके शरीर पर आगे की ओर सिर होता है, जिसमें एक छोटा-सा मुंह होता है। इसके मुंह के दोनों ओर हुक जैसे दो कड़े बाल होते हैं, जो जबड़ों का काम करते हैं। वाणकृमि के सिर पर दो गोल आंखें होती हैं। यह अपने पारदर्शी शरीर के कारण अपनी आंखों से एक ही समय पर सभी ओर देख सकता है। इससे इसे भोजन करने और शत्रुओं से बचने में बहुत अधिक सुविधा रहती है। वाणकृमि के दूसरे अर्थात‌् मध्य भाग में इसकी भोजन नली होती है, जो शरीर से बाहर साफ दिखाई देती है। इसके साथ ही इस भाग में कुछ अन्य महत्वपूर्ण अंग भी होते हैं। वाण कृमि के अंतिम अर्थात‌् पूंछ वाले भाग में इसके प्रजनन अंग होते हैं। इसके शरीर पर दोनों ओर के चपटे किनारों पर बहुत छोटे-छोटे मीनपंख जैसे अंग होते हैं। वाणकृमि की पूंछ पर भी एक मीनपंख होता है। ये सभी मीनपंख इसे तैरने में सहयोग प्रदान करते हैं।
वाणकृमि का प्रमुख भोजन प्लेंकटन के अन्य जीव हैं। यह एक छोटा जीव होते हुए भी बहुत अच्छा शिकारी है। वाणकृमि का प्रजनन बड़ा रोचक और आकर्षक होता है। वाणकृमि उभयलिंगी होता है, अर्थात‌् इसमें एक ही जीव में नर और मादा दोनों के प्रजनन अंग होते हैं। इसके प्रजनन अंग एक-दूसरे के ठीक सामने होते हैं। वाणकृमि की दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि इसके शरीर में शुक्राणु पहले तैयार हो जाते हैं और अंडे बाद में तैयार होते हैं, अतः अंडों के निषेचन के लिए इसे अपने शुक्राणु कुछ समय तक रोक कर रखने पड़ते हैं। कभी-कभी यह अपने शुक्राणुओं को रोक नहीं पाता। ऐसी स्थिति में यह अपने शुक्राणु किसी ऐसे वाणकृमि को दे देता है जो अपने शुक्राणु किसी तीसरे वाणकृमि को दे चुका हो और जिसके अंडे तैयार हो चुके हों। जो वाणकृमि अपने शुक्राणु सफलतापूर्वक रोक लेते हैं, उनके अंडे तैयार होने पर उनके अपने ही शुक्राणुओं से निषेचित हो जाते हैं। इस प्रकार इसमें दो प्रकार का आंतरिक निषेचन पाया जाता है।
वाणकृमि प्रायः उथले पानी में प्रजनन करता है, किंतु अंटार्कटिक महासागर में पाए जाने वाले वाणकृमि प्रजनन काल में गहरे पानी में चले जाते हैं। वाणकृमि में आंतरिक निषेचन पाया जाता है। इसकी बगल में एक थैली होती है, जिसमें अंडे रहते हैं। इस थैली के सामने शुक्राणु उत्पन्न करने वाला अंग होता है। इसके साथ ही इस थैली की संरचना इस प्रकार की होती है कि एक वाणकृमि की आगे वाली थैली में दूसरा वाणकृमि अपने शुक्राणु डाल सकता है। वाणकृमि के अंडे इसकी थैली में ही परिपक्व होकर फूटते हैं और इसी में इसके बच्चे जन्म लेते हैं। इसके नवजात बच्चे भी अपना कुछ समय थैली के अंतर व्यतीत करते हैं और फिर छोटे से बच्चा कृमि के रूप में खुले सागर में आ जाते हैं और कुछ समय बाद नव वयस्कों की तरह जीवन जीवन व्यतीत करने लगते हैं।
वाणकृमि एक उपयोगी कृमि है। विश्व के अधिकांश समुद्र वैज्ञानिक सागर के पानी के बहाव का अध्ययन करने के लिए इसकी सहायता लेते हैं। इसके द्वारा तटीय और तट से दूर के पानी का मूल स्रोत जानने में बड़ी सहायता मिलती।
इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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