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मुट्ठी में खिलौना... इंसान इससे भी बौना

07:08 AM Apr 05, 2024 IST
प्रतिकात्मक चित्र

धर्मेंद्र जोशी

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मोबाइल मनुष्य का मीत है, जीवन का गीत है, बजता हुआ मधुर संगीत है, रिश्तों को निभाने की आधुनिक रीत है, घर के एक कमरे में समाहित समग्र प्रकृति है, चेहरे का नूर और शरीर की शक्ति है, सामाजिक स्तर को नापने की इकाई और मन की तृप्ति है। मोबाइल लाइक, कमेंट्स न मिले तो करारी हार और सैकड़ों में इनायत हो जाए तो बड़ी जीत है। अफवाह और बिना प्रमाण खबरें फैलाने की फैक्टरी तो झूठ परोसने की प्रबल युक्ति है। जब एक बार रील देखने के लिए व्यक्ति बैठ जाये तो मनोरंजन की मिसाल और विरोध करने पर आ जाए तो आदर्श अभिव्यक्ति है। इतना ही नहीं, जब लोग हाथ का काम छोड़ इसके आदी हो जायें तो वर्तमान की प्रगति है। मोबाइल फिसलन भरी राह है, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक का उत्साह है। मोबाइल परिजन-सा अपना है, हमेशा संग रहे बस यही सपना है। मोबाइल सबका संगी है साथी है, यह एक खर्चीला हाथी है। मोबाइल लाड है, दुलार है, यह ज़न-ज़न के मन की पुकार हैं।
मोबाइल से फैली चहुंओर खामोशी है। घरों के कमरे सुनसान हैं, न बच्चों का शोर न हंसी मजाक है। मोबाइल पर घंटों गुफ़्तगू करते मगर मन के कोने अभी भी खाली हैं, सूखी होली और सूनी दिवाली है।
मोबाइल ध्यान है, अकेलेपन में बिखरी मुस्कान है। आम आदमी के लिए पैसे खर्च करने की महंगी दुकान है। दो दूर बैठे दिलों को मिलने का अरमान है। घर की हालत भले ही पतली हो, मगर लखटकिया मोबाइल हाथों की शान है। नये-नये प्रेमियों के लिए सारा जहान है। घंटों कानों में ईयर फोन लगाए बतियाना समाज में मान है, सम्मान है, मोबाइल मनभावन राग है, स्नेह का अनुराग है, वसंत है, फाग है।
मोबाइल यूं तो बहुत जहीन है, लेकिन वैचारिक कचरे का डस्टबीन है। सामाजिकता का दुश्मन है, इससे सम्मोहित ज़न-ज़न है। छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई से विरक्त हैं, फिर भी मोबाइल के बहुतेरे भक्त हैं। दफ्तर में बैठा बाबू न जाने कब मोबाइल में खो जाता है और मेरा देश तरक्की की राहों में सो जाता है। मोबाइल दिखता खिलौना है, मगर इसके आगे आज आदमी खिलौना है, बहुत ही संकुचित और बौना है।
मोबाइल फरिश्ता है, अनजाने लोगों से प्रगाढ़ रिश्ता है। मोबाइल महबूब का भेजा गुलदस्ता है। मोबाइल एक उमंग है। किसी गहरे नशे-सी तरंग है। मोबाइल उम्मीद है, आस है, बौनी तरक्की का बड़ा अहसास है। मोबाइल एक आदत है, लत है। इससे गहरा जुड़ाव आज का अंतिम सत्य है। मोबाइल जादू है, करिश्मा है, इसकी बदौलत आंखों पर चश्मा है।
मोबाइल जीने का जुनून है। रात सिरहाने रखा हो तो पुर सुकून है। मोबाइल इल्म है, एक जीती-जागती फिल्म है। मोबाइल को एकांत भा गया, यह हमारे बच्चों का बचपन खा गया। यह सबके मन-मस्तिष्क पर घने कोहरे-सा छा गया। मोबाइल से प्रीत बढ़ी तो खेल छूट गए। बच्चे पढ़ाई से हुए विमुख और भाग्य रूठ गए। मोबाइल एक गम्भीर बीमारी, आज मेरी तो कल तुम्हारी बारी है। मोबाइल एक तिलस्मी यंत्र है। ये रिश्तों में दूरी बढ़ाने का आधुनिक षड्यंत्र है। मोबाइल दिमाग फिरा देता है, यह चलते राह लोगों को नीचे गिरा देता है। मोबाइल दुनिया जहां से रिश्ते जोड़ लेता है मगर स्नेह के नाजुक धागों को तोड़ देता है। मोबाइल से गलतफहमी भी बढ़ी है। न जाने किसने क्या लिखा, न जाने किसने क्या पढ़ा और न जाने किसने क्या कहानी गढ़ी है।

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