ठंडी तासीर का टॉनिक जो रोगों से बचाये
राहुल कुमावत
आयुर्वेद में मटके के पानी को सर्वश्रेष्ठ एवं गुणकारी बताया गया है। इसकी वजह यह है कि मटके का पानी शीतल, हल्का, स्वच्छ और अमृत के समान माना गया है; क्योंकि यह प्राकृतिक जल का स्रोत है जो उष्मा से भरपूर होता है और शरीर की गतिशीलता को बनाए रखता है। इस पानी को पीने से थकान दूर होती है तथा शरीर में फुर्ती का संचार हो जाता है। दरअसल मिट्टी में क्षारीय गुण मौजूद होते है जिसकी अम्लता के असर से पर्याप्त व सही पीएच संतुलन प्रदान करता है। इसे पीने से एसिडिटी पर अंकुश लगता है और पेट के दर्द से राहत मिलती है। यूं भी मटके के पानी की मटियाली सुगंध श्वासों को सुवासित कर देती है। गर्मियों में प्राकृतिक ठेंडक का तो जवाब ही नहीं।
रोगों से लड़ने में मददगार
मटके का पानी सेवन करने से विविध रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है। आयुर्वेद में स्पष्ट लिखा है कि प्रातःकाल के समय मटके का पानी पीना हृदयरोग एवं आंखों की रोशनी बढ़ाने में मददगार साबित होता है।
घड़े की मिट्टी है कीटाणुनाशक
आयुर्वेद के मुताबिक मटके की मिट्टी कीटाणुनाशक होती है। अतः यह पानी में पनपने वाले दूषित पदार्थों एवं रोगाणुओं को खत्म करने का काम करती है। इसके अलावा इस पानी को पीने से पेट में भारीपन की समस्या नहीं होती। गले में अथवा भोजन की नली में व पेट में जलन होने पर मटके का पानी पीना लाभदायक रहता है।
कौन नहीं पिए मटके का पानी
जिन लोगों को अस्थमा की बीमारी है, उन्हें भूलकर भी घड़े का पानी नहीं पीना चाहिए; क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होने के कारण कफ तथा खांसी उग्र रूप ले सकती है। जिन लोगों को जुकाम, खांसी, बुखार, पसलियों में दर्द, पेट में अफारा हों, वे मटके का पानी नहीं पिएं। इसके अलावा तेल या घी में तली अथवा भुनी हुई चीजों का सेवन करने के पश्चात भी इस पानी का सेवन नहीं कर करें वरना खांसी, जुकाम, बुखार की शिकायत उग्र हो सकती है।
घाव से रक्तस्राव रोकने में उपयोगी
मटके का पानी सिर्फ प्यास ही नहीं बुझाता, वह शरीर में चोट लगने अथवा किसी अन्य कारण से रक्तस्राव होने पर चोटग्रस्त भाग पर या घाव पर मटके का पानी डालने से रक्तस्राव बंद हो जाता है।
मटके को अंदर से घिसें नहीं
ध्यान रहे, मटके पानी को रोजाना बदलते रहना चाहिए। हां, मटके को साफ करने के लिए उसके अंदर हाथ डाल घिसें नहीं वरना मटके के छिद्र बंद हो जाएंगे और फिर पानी ठंडा नहीं हो पाएगा।
जल एक प्राकृतिक टॉनिक
आयुर्वेद में जल को जीवन कहा गया है। इसलिए जल जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि हम इसका सेवन सही प्रकार से करें तो जल एक प्राकृतिक टॉनिक के समान कार्य करता है। इसके सेवन से विविध रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है। आयुर्वेद के ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है :-‘सवितु हृदयकाले प्रसृतः सलिलस्ययः पिवेदष्टो, रोगराज परि मुक्तो जीवेव्दत्सरशतं साग्रहम।
अभ्यस: प्रसृतोरष्टौ खरवनुदितेमिबेत,
वातपित्तकफान्क जित्वा जीवेव्दर्षशंत सुखी।’ (धन्वंतरि)
अर्थात्त जो मनुष्य सूर्योदय से पहले जल की आठ अंजलि पीता है, वह वृद्धावस्था से मुक्त होकर सौ साल तक जीवित रहता है। सूर्योदय से पूर्व अर्थात प्रातःकाल चार से पांच बजे के बीच उठकर पानी पीने से पित्त, कफ की विकृति दूर होकर व्यक्ति सौ साल तक जीने का वरदान प्राप्त करता है।
जल पीने के कुछ नियम भी
जल पीने के कुछ नियम होते हैं जिन्हें अपना कर शरीर को निरोग एवं चेहरे को सुंदर बनाए रखा जा सकता है। जैसे, प्रातःकाल नाक से जल पीने से बुद्धि तेज होती है तथा नेत्र ज्योति बढ़ती है। जल के सेवन से विविध रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।
तासीर भी महत्वपूर्ण
जल का पाचन जल की तासीर के अनुसार होता है। जैसे; शीतल जल दो प्रहर में, गर्म करके ठंडा किया हुआ जल एक प्रहर में तथा गुनगुना जल चार घड़ी में पच जाता है।
भोजन के मध्य में जल का सेवन
लोक में प्रसिद्ध है कि भोजन के पहले जल का सेवन दुर्बलता बढ़ाता है, अंत में जल पीना मोटापा बढ़ाता है तथा मध्य में जल पीना अमृत तुल्य माना जाता है। अत: भोजन के मध्य में जल का सेवन श्रेष्ठ है। भोजन के बाद घंटे भर तक जल का सेवन नहीं किया जाना हितकर होता है।