श्रीहरि आराधना का विशिष्ट अवसर
चेतनादित्य आलोक
देवशयनी एकादशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व होता है। देवशयनी एकादशी का व्रत हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। यह व्रत जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी को ही भगवान श्रीविष्णु चार महीनों के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि का संचालन देवों के देव महादेव करते हैं। इन चार महीनों की अवधि को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। चातुर्मास में शुभ एवं मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। धार्मिक दृष्टि से ये चार महीने भगवान श्रीविष्णु का निद्रा काल माने जाने के कारण इन दिनों में तपस्वी एक ही स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। इन दिनों केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है, क्योंकि सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार इन चार महीनों में भू-मण्डल (पृथ्वी) के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। ऐसे में देवशयनी एकादशी को भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा के लिए विशेष अवसर माना जाता है। देवशयनी एकादशी के दिन साधक नियमपूर्वक भगवान श्रीविष्णु संग माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं।
इस वर्ष 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। देवशयनी एकादशी को तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए। इस दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने व मन में गलत विचार धारण न करने से बचना चाहिए, किंतु भगवान श्रीहरि विष्णु के भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य शामिल करना चाहिए। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार इस व्रत के शुभ प्रभाव से साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उसके सभी पाप, ताप, शाप और संताप नष्ट होते हैं। इस दिन उपवास रखकर भगवान श्रीविष्णु की प्रतिमा का षोडशोपचार विधि से पूजन-अर्चन करके उन्हें पीताम्बर यानी पीत वस्त्रों एवं पीले दुपट्टे से सजाया जाता है। तत्पश्चात भगवान का पंचामृत से स्नान करवाकर, धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करने के बाद आरती उतारी जाती है।
रात्रि में भगवान के मंदिर में ही शयन करना चाहिए किंतु स्वयं सोने से पूर्व भगवान को शयन कराना चाहिए। इनके अतिरिक्त इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करना भी सुनिश्चित कराना चाहिए। मधुर स्वर के लिए गुड़ का, दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का, सौभाग्य के लिए मीठे तेल का और स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का त्याग करने की मान्यता है।
इस दिन अन्न और जल का दान करने से भगवान श्रीविष्णु की अनुकंपा बरसती है। देवशयनी एकादशी के दिन जरूरतमंद लोगों को उनके जरूरत का सामान और धन का दान करने से जीवन में सुखद बदलाव आता है। भगवान श्रीविष्णु को पीला रंग अति प्रिय है। इसलिए पीले रंग के वस्त्र, केला आदि चीजें दान करके श्रद्धालु भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
व्रत-पर्व
15 जुलाई : भढली नवमी, गुप्त नवरात्र समाप्त, मेला शरीक भवानी (कश्मीर)।
16 जुलाई : श्रावण संक्रांति (45 मुहूर्ति) निरयण दक्षिणायन प्रारंभ, मेला नागनी (नूरपुर) गिरिजा पूजा, पुनर्यात्रा (उल्टा रथ)।
17 जुलाई : हरिशयनी एकादशी व्रत, चातुर्मास्य-व्रत नियमादि प्रारंभ, श्री विष्णु शयनोत्सव रविनारायण एकादशी (उड़ीसा), मेला हरिप्रयाग (बनी)।
18 जुलाई : वामन द्वादशी, श्रीकृष्ण द्वादशी।
19 जुलाई : प्रदोष व्रत।
20 जुलाई : मेला ज्वालामुखी देवी (कश्मीर), श्री सत्यनारायण व्रत, वायु परीक्षा (सूर्यास्त समय) कोकिला व्रत, शिव शयनोत्सव।
21 जुलाई : आषाढ़ी पूर्णिमा, मेला सिद्ध बाबा शिव्वो (ज्वाली), गुरु पूर्णिमा, व्यास-पूजा, श्री साईं बाबा उत्सव (शिरड़ी), चातुर्मास्य नियम शुरू, मेला काहनूवाल (गुरदासपुर, पं.) मेला रुद्रगंगा (चंद्रेणीदेसा, डोडा)।
- सत्यव्रत बेंजवाल