सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक दृष्टि
आलोक पुराणिक
संपत सरल ने व्यंग्य के वाचन में इन दिनों कमाल के रिकॉर्ड कायम किए हैं। मोदी विरोधी व्यंग्यकार के तौर पर उन्होंने अपनी ख्याति स्थापित की है। राजनेताओं पर व्यंग्य लेखन का एक खतरा यह है कि उसकी दीर्घजीविता बहुत ज्यादा नहीं होती। हरिशंकर परसाई ने जो भी व्यंग्य लेख नेताओं के नाम लेकर लिखे हैं, उन्हें आज समझना भी मुश्किल होता है, क्योंकि उनके संदर्भ प्रसंग गायब हैं। राजनारायण और चौधरी चरण सिंह के नाम लेकर लिखे गए व्यंग्य आज समझना मुश्किल है उनके लिए, जिन्हें उसके संदर्भ प्रसंग पता नहीं हैं। इसके लिए इतिहास का अध्ययन जरूरी है। यानी, राजनेताओं के नाम पर लिखे गए व्यंग्य कुछ समय बाद सहज समझ में नहीं आते। परसाई आज भी याद किए जाते हैं, उन व्यंग्य कहानियों के लिए जिनका महत्व शाश्वत है, जैसे ‘इंसपेक्टर मातादीन चांद पर’ और ‘भोलाराम का जीव’।
व्यंग्य संग्रह ‘तीखी नजर के ऑपरेशन’ में ज्यादातर व्यंग्य राजनेताओं पर केंद्रित हैं। कुछेक व्यंग्य हैं, जो दूसरे विषयों पर हैं। ‘दो देवता संकट में’ ऐसा ही व्यंग्य है। इसमें संपत सरल लिखते हैं: ‘मंदिर से मूर्ति शनिदेव की चोरी हुई और पुलिस जिसे खोजबीन कर लाई, वह यमराज निकले। पुजारी ने उसे यह कहकर लेने से इनकार कर दिया कि वह शनि की नहीं, यमराज की मूर्ति है। पुलिस ने यमराज की उस मूर्ति को थाने के मालगोदाम में जमा करा दिया। शनिदेव मिले नहीं और यमराज पुलिस के मालगोदाम में बंद हैं।’ यह व्यंग्य पुलिस की कार्यशैली पर तीखा प्रहार करता है।
‘जिओ मस्क जिओ’—व्यंग्य के बहाने संपत सरल ने सोशल मीडिया पर प्रहार किया है। संपत सरल लिखते हैं : ‘ब्लू टिक ले लेने से बड़ा लाभ यह होगा कि फर्जी ट्वीट करते रहने पर भी ट्वीट करने वाला फर्जी नहीं कहलाएगा और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं होती।’
पुस्तक : निठल्ले बहुत बिजी हैं व्यंग्यकार : सम्पत सरल प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 224 मूल्य : रु. 299.