‘काशी के कोतवाल’ की आराधना का पुनीत अवसर
चेतनादित्य आलोक
प्रायः प्रत्येक महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान भोलेनाथ शिवशंकर के उग्र अथवा रौद्र स्वरूप भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। दरअसल, कालाष्टमी का पर्व भगवान शिव के रुद्र अवतार भगवान कालभैरव के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान कालभैरव को ‘काशी का कोतवाल’ भी कहा जाता है। काल भैरव के आठ स्वरूप होते हैं। इनमें से ‘बटुक भैरव’ स्वरूप की पूजा गृहस्थ एवं अन्य सभी भैरव भक्तों द्वारा इस विशेष तिथि के अवसर पर की जाती है, जो बेहद ही शुभ फलदायी और मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी जाती है। बटुक भैरव स्वरूप भगवान काल भैरव का सौम्य स्वरूप होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान काल भैरव भगवान शिव के पांचवें आवतार हैं। भगवान काल भैरव के भक्त वर्ष की प्रायः सभी कालाष्टमी तिथियों को उनकी विधिवत् पूजा एवं उनके लिए उपवास करते हैं। इस दिन शिवालयों और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान शिव के रूप में काल भैरव का आह्वान किया जाता है। मान्यता है कि बाबा काल भैरव की पूजा-आराधना करने से सभी तरह के रोग, कष्ट, दोष, पाप आदि नष्ट हो जाते हैं। कालाष्टमी की पूजा के दौरान दीपक जलाकर भगवान की आरती करनी चाहिए। उसके बाद उन्हें मीठी रोटी का भोग लगाना चाहिए।
माना जाता है कि इस उपाय के करने से घर-परिवार से तमाम प्रकार की नकारात्मक शक्तियाें आदि का भय समाप्त होता है और भक्त के सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास डोल गया हो या समाप्त हो गया हो उसे भगवान काल भैरव की विधिवत् पूजा-आराधना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति पूरे वर्ष के सभी मासिक कालाष्टमी तिथियों को पूर्ण भक्तिभाव के साथ तथा निर्मल मन से भगवान काल भैरव का व्रत-उपवास और पूजा-आराधना करता है तो इसके शुभ प्रभाव से उसका खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आ जाता है।
गौरतलब है कि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के लिए भगवान काल भैरव दंडनायक अर्थात् दंड देकर न्याय करने वाले, जबकि निर्मल मन वाले सदाचारी भक्तों के लिए ये रक्षा-कवच की तरह हर बाधा और मुश्किल से बचाव करने वाले माने जाते हैं। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के मंदिर में कपूर और काजल का दान करना अत्यंत ही शुभ फलदाई माना जाता है। नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव के साथ-साथ मां दुर्गा, भगवान गणेश एवं भगवान शिव-पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए। इनके अतिरिक्त कालाष्टमी तिथि की रात्रि को मां काली की भी विशेष पूजा करने का विधान है।
शास्त्र बताते हैं कि शक्ति पूजा करने से काल भैरव की पूजा का पूरा फल मिलता है। गौरतलब है कि भगवान भैरव का वाहन कुत्ता होता है, इसलिए इस दिन कुत्ते को पेट भर खाना खिलाने से विशेष फल मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान काल भैरव खुश होते हैं और सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए। वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष आषाढ़ माह में मासिक कालाष्टमी का व्रत 28 जून को रखा जाएगा।
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होने के बाद सूर्योदय होने पर भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य अर्पित करें। तत्पश्चात् अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध करें। इस अवसर पर भगवान काल भैरव की पूजा कर उन्हें जल अर्पित करें। पूजा के दौरान काल भैरव कथा अथवा मासिक कालाष्टमी कथा का पठन या श्रवण करें। पूजा के दौरान भगवान काल भैरव के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
व्रत-पर्व
25 जून : अङ्गारकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत, बुध पश्चोदय।
27 जून : मेला चमलियाल (ज.क.)।
29 जून : शीतलाष्टमी व्रत, इन्द्राणी पूजा, त्रिलोचन पूजा।
- सत्यव्रत बेंजवाल