सुख-समृद्धि और नागों के भय से मुक्ति का पर्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा-आराधना करने से मनुष्य को सांपों के भय से मुक्ति मिलती तथा पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, घर में सुख-समृद्धि, धन एवं ऐश्वर्य का आगमन भी होता है और मानसिक एवं शारीरिक शक्ति तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है।
चेतनादित्य आलोक
नाग पंचमी नाग देवता को समर्पित होता है। यह प्रति वर्ष सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पूरे भारत में भक्ति-भाव के साथ मनाया जाता है। इस बार सावन शुक्ल पंचमी तिथि 9 अगस्त को है। शास्त्रों के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नाग देवता हैं। पुराणादि शास्त्रों में उल्लेख है कि सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए यह तिथि नाग देवता को पूजन, अर्चन, वंदन, व्रत आदि के द्वारा प्रसन्न करने के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।
सनातन धर्म में इस दिन नाग-नागिन के जोड़े को दूध से स्नान करवाने की परम्परा है। सामान्यतः नाग पंचमी के दिन सनातन धर्मावलंबी नाग देवता की प्रतीकात्मक पूजा करते हैं। वे उनके लिए अपने घर, कार्यालय आदि के कोने-कोने में दूध और धान का लावा छींटते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि नाग देवता यदि प्रसन्न हुए तो वे स्वयं अथवा उनके प्रतिनिधि सर्प आकर दूध और लावा ग्रहण करेंगे। इसके अतिरिक्त मंदिरों और शिवालयों में जाकर लोग नाग देवता को अलग से दूध और लावा चढ़ाते हैं। वहीं, नाग पंचमी के शुभ अवसर पर मठों, मंदिरों, शिवालयों आदि में विशेष रूप से वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय नामक अष्टनागों एवं शिवलिंग की विशिष्ट पूजा-उपासना की जाती है। पुराणों में बताया गया है कि अष्टनागों की पूजा-आराधना व्यक्ति के लिए उत्तम फलदायी होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा-आराधना करने से मनुष्य को सांपों के भय से मुक्ति मिलती तथा पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, घर में सुख-समृद्धि, धन एवं ऐश्वर्य का आगमन भी होता है और मानसिक एवं शारीरिक शक्ति तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। गौरतलब है कि धन की देवी माता लक्ष्मी की रक्षा नाग देवता ही करते हैं। इसलिए इस दिन नाग देवता एवं शिवलिंग के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नाग देवता को दूध और धान का लावा चढ़ाने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने नाग यज्ञ किया था, जिसमें नागों की अनेक जातियां भस्म हो गईं। भय से आतुर तक्षक नाग देवराज इंद्र के आसन में लिपट गए, जिससे इंद्रदेव के लिए भी आसन समेत यज्ञ की अग्नि में भस्म होने का खतरा मंडराने लगा। तत्पश्चात ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश के रक्षार्थ यज्ञ को रोका था। हालांकि इससे नागों की प्रजाति पूरी तरह से भस्म होने से तो बच गई, किंतु जलने से बने घावों के कारण नागों का जीवन संकट में देख उनके ऊपर दूध और लावा चढ़ाया गया। उसके बाद ही उनके घाव ठंडे हुए और उनके प्राण बच सके।
इसीलिए सनातन धर्मावलंबियों के बीच यह मान्यता है कि नागपंचमी के दिन जो लोग नागों को दूध और लावा अर्पित करेंगे, उन्हें सर्पदंश का भय नहीं रहेगा।
हालांकि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति की चिकित्सा के सूत्र आयुर्वेदाचायों ने अपने अनुभवों के आधार पर ग्रन्थों में बताए हैं। इतना ही नहीं, हिंदू धर्म शास्त्रों में सर्प दंश से बचाव के भी अनेक उपाय बताए गए हैं। यदि आस्तिक मुनि के नाम का स्मरण कर लिया जाए अथवा उनको समर्पित मंत्र का जाप कर लिया जाए तो व्यक्ति के मन से नागों का भय भी मिट जाता है और सर्पदंश से बचाव भी हो जाता है।
ऐसा माना जाता है कि आस्तिक मुनि नाग वंश के पूजनीय हैं। इन्होंने महाभारत काल में किए गए नाग यज्ञ के दौरान नागों की रक्षा की थी। इसीलिए इनके नाम की इतनी व्यापक महिमा है। बहरहाल, सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय पृथ्वी पर सब तरफ जल की अधिकता होने के कारण भू-गर्भ से नाग देवता निकलकर भू-तल पर आ जाते हैं। ऐसे में नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए नाग पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है।